सम्पादकीय

मोदी जी का 'लव इन टोक्यो'

Rani Sahu
24 May 2022 7:01 PM GMT
मोदी जी का लव इन टोक्यो
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भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जापान के महत्त्वपूर्ण दौरे पर हैं

भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जापान के महत्त्वपूर्ण दौरे पर हैं। इस दौरे ने भारतवासियों को 'लव इन टोक्यो' की याद करा दी है। दोनों देशों के बीच बरसों से प्यार-मोहब्बत के संबंध रहे हैं। पीएम मोदी को लेकर टोक्यो के अख़बार में एक लेख लिखा गया है जो कई बातों का जिक्र करता है। लेख में लिखा गया कि बोधिसेना से लेकर स्वामी विवेकानंद तक, भारत-जापान सांस्कृतिक संबंधों का परस्पर सम्मान और एक-दूसरे से सीखने का एक लंबा और समृद्ध इतिहास रहा है। महात्मा गांधी की कीमती निजी संपत्तियों में मिज़ारू, किकाज़ारू और इवाज़ारू, तीन बुद्धिमान बंदरों की छोटी मूर्तियां थीं। जस्टिस राधा विनोद पाल जापान में एक जाना-पहचाना नाम हैं और गुरुदेव टैगोर की जापान के लिए प्रशंसा और ओकाकुरा तेनशिन के साथ बातचीत दोनों पक्षों के कलाकारों और बुद्धिजीवियों के बीच शुरुआती संबंध बनाने में सहायक थी। इन गहरे संबंधों ने एक आधुनिक भारत-जापान साझेदारी के लिए मजबूत नींव रखी जो औपचारिक राजनयिक संबंधों की स्थापना की 70वीं वर्षगांठ मनाने के बावजूद फल-फूल रही है। इस साझेदारी के बारे में पीएम मोदी जी ने कहा कि, 'मेरा खुद का विश्वास गुजरात के मुख्यमंत्री के रूप में मेरे शुरुआती दिनों में ही शुरू हो गया था। ये न केवल जापानी प्रौद्योगिकी और कौशल का परिष्कार था, बल्कि जापान के नेतृत्व और व्यवसायों की गंभीरता और दीर्घकालिक प्रतिबद्धता भी थी, जिसने जापान को गुजरात का पसंदीदा औद्योगिक भागीदार बनाया और अपनी स्थापना के बाद से वाइब्रेंट गुजरात शिखर सम्मेलन में सबसे प्रमुख उपस्थिति दर्ज की।' पीएम मोदी ने आगे कहा कि विकास और आधुनिकीकरण के पथ पर भारत की यात्रा में जापान भी एक अमूल्य भागीदार साबित हुआ है। ऑटोमोबाइल क्षेत्र से लेकर औद्योगिक गलियारों तक, जापानी निवेश और विकास सहायता का वास्तव में अखिल भारतीय पदचिह्न है। प्रतिष्ठित मुंबई-अहमदाबाद हाई स्पीड रेल परियोजना नए भारत के निर्माण के कुछ सबसे महत्त्वपूर्ण प्रयासों में जापान के व्यापक सहयोग का प्रतीक है। 1952 में राजनयिक संबंध स्थापित करने के बाद से हमने एक लंबी दूरी तय की है। मेरे विचार में हालांकि सबसे अच्छा आना अभी बाकी है। मोदी जी ने यह भी कहा है कि आज, जैसा कि भारत और जापान दोनों ही कोविड के बाद के युग में अपनी अर्थव्यवस्थाओं को फिर से मजबूत और नया रूप देने के लिए देख रहे हैं, व्यापार और निवेश से लेकर रक्षा और सुरक्षा तक पूरे स्पेक्ट्रम में हमारे जुड़ाव को गहरा करने की बहुत गुंजाइश है। पिछले कुछ वर्षों में भारत ने विनिर्माण क्षेत्र, सेवाओं, कृषि और डिजिटल प्रौद्योगिकी बुनियादी ढांचे के लिए एक मजबूत नींव बनाने की यात्रा शुरू की है। मोदी जी ने कहा कि जापान को भारत के निरंतर परिवर्तन में एक अनिवार्य भागीदार के रूप में देखता हूं।

जापान के लिए भारत की गति और पैमाना व्यापार करने में आसानी, आकर्षक प्रोत्साहन, साहसिक सुधार और बेजोड़ अवसर पैदा करने की महत्त्वाकांक्षी योजनाओं के साथ मेल खाता है। हमने भारत में 100 से अधिक यूनिकॉर्न के साथ एक गतिशील स्टार्टअप पारिस्थितिकी तंत्र को भी बढ़ावा दिया है। जापानी राजधानी पहले से ही इस प्रयास में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा रही है। और भी बहुत कुछ होने की संभावना है। हमारे दोनों देशों के लोगों के बीच संबंधों ने हमारी आपसी समझ को गहरा करने में हमेशा महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है। बहुत से भारतीय अब जापान में काम कर रहे हैं और जापानी अर्थव्यवस्था और समाज में योगदान दे रहे हैं, जैसे जापानी अधिकारी भारत में आर्थिक विकास में योगदान दे रहे हैं। मुझे विश्वास है कि इस तरह की पूरकताओं को कई गुना बढ़ाया जा सकता है। लेकिन हमारी साझेदारी की अधिक अनिवार्यता है और यह एक बड़े उद्देश्य की पूर्ति करती है। कोविड महामारी, वैश्विक तनाव और हमारे अपने हिंद-प्रशांत क्षेत्र में स्थिरता और सुरक्षा के लिए विघटनकारी चुनौतियों ने लचीला आपूर्ति श्रृंखला, एक मानव-केंद्रित विकास मॉडल और स्थिर तथा मजबूत अंतरराष्ट्रीय आर्थिक संबंधों के निर्माण की आवश्यकता को रेखांकित किया है, जो जबरदस्ती और शोषण का विरोध करने में सक्षम हैं। हमारी साझेदारी इन लक्ष्यों को आगे बढ़ाने में मदद करेगी। ऐसा करने में, हम एक खुले, मुक्त और समावेशी इंडो-पैसिफिक क्षेत्र के निर्माण में भी योगदान देंगे, जो सुरक्षित समुद्रों से जुड़ा हो, व्यापार और निवेश से एकीकृत हो, संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता के संबंध में परिभाषित हो और अंतरराष्ट्रीय कानून में निहित हो। हिंद-प्रशांत क्षेत्र में रणनीतिक रूप से स्थित दो लोकतंत्रों के रूप में, हम एक स्थिर और सुरक्षित क्षेत्र के महत्त्वपूर्ण स्तंभ हो सकते हैं। यही कारण है कि हमारी साझेदारी व्यापक क्षेत्रों में फैल रही है। अभ्यास और सूचना के आदान-प्रदान से लेकर रक्षा निर्माण तक हमारे रक्षा संबंध तेजी से बढ़ रहे हैं।
हम साइबर, स्पेस और अंडरवाटर डोमेन में अधिक काम कर रहे हैं। सुरक्षा के अलावा एक साथ और क्षेत्र में समान विचारधारा वाले भागीदारों के साथ और क्वाड जैसी संस्थाओं और व्यवस्थाओं में, हम क्षेत्र में विकास, बुनियादी ढांचे, कनेक्टिविटी, स्थिरता, स्वास्थ्य, टीके, क्षमता निर्माण और मानवीय आपदा प्रतिक्रिया के लिए पहल को बढ़ावा दे रहे हैं। संपूर्ण विश्व के बेहतर भविष्य के लिए एक शांतिपूर्ण और समृद्ध हिंद-प्रशांत क्षेत्र महत्त्वपूर्ण होगा। संकट चुनौतियों को बढ़ाते हैं और भविष्य में हमारे संक्रमण को तेज करते हैं। इस कारण से, दुनिया के लिए इस महत्वपूर्ण क्षण में, हमारी साझेदारी को अब बड़ी जिम्मेदारी और अधिक तात्कालिकता का सामना करना पड़ रहा है। हम जो कुछ भी साझा करते हैं और दशकों से हमने जो कुछ भी बनाया है उसके आधार पर भारत और जापान इस आह्वान का जवाब देने के लिए तैयार हैं। भारत और जापान को डेटा स्थानीयकरण के मुद्दे पर भारत की असहमति एवं बुडापेस्ट कन्वेंशन जैसे वैश्विक साइबर सुरक्षा समझौतों के प्रति असहमति के बिंदुओं को हल करने का प्रयास करना चाहिए। आर्थिक मोर्चे पर सुधार ः हालांकि जापान ने पिछले दो दशकों में भारतीय अर्थव्यवस्था में लगभग 34 बिलियन डॉलर का निवेश किया है, फिर भी जापान भारत का 12वां सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार है एवं भारत-चीन द्विपक्षीय व्यापार मूल्य के पांचवें हिस्से के बराबर है। अतः दोनों पक्षों को आर्थिक मोर्चे पर सहयोग बढ़ाने पर ध्यान देना चाहिए। हिंद-प्रशांत क्षेत्र के रणनीतिक महत्त्व को ध्यान मे रखते हुए प्रधनमंत्री ने इस दौरे मे हिंद प्रशांत क्षेत्र को खुला रखने की बात करके चीन को एक बड़ा संदेश दिया है। हिंद-प्रशांत क्षेत्र हाल के वर्षों में भू-राजनीतिक रूप से विश्व की विभिन्न शक्तियों के मध्य कूटनीतिक एवं संघर्ष का नया मंच बन चुका है।
साथ ही यह क्षेत्र अपनी अवस्थिति के कारण और भी महत्त्वपूर्ण हो गया है। वर्तमान में विश्व व्यापार की 75 प्रतिशत वस्तुओं का आयात-निर्यात इसी क्षेत्र से होता है तथा हिंद-प्रशांत क्षेत्र से जुड़े हुए बंदरगाह विश्व के सर्वाधिक व्यस्त बंदरगाहों में शामिल हैं। वैश्विक जीडीपी के 60 प्रतिशत का योगदान इसी क्षेत्र से होता है। यह क्षेत्र ऊर्जा व्यापार (पेट्रोलियम उत्पाद) को लेकर उपभोक्ता और उत्पादक दोनों राष्ट्रों के लिए संवेदनशील बना रहता है। विदित है कि इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में कुल 38 देश शामिल हैं। जानकार मानते हैं कि इस क्षेत्र में उपभोक्ताओं को लाभ पहुंचाने वाले एवं क्षेत्रीय व्यापार एवं निवेश के अवसर पैदा करने हेतु सभी आवश्यक घटक मौजूद हैं। भारत और जापान के लिए इसमें महत्त्वपूर्ण मौके मौजूद हैं। हाल की कुछ घटनाएं इस क्षेत्र में ज़ोर पकड़ रही भू-आर्थिक प्रतिस्पर्द्धा की तरफ संकेत देती हैं, जिसमें दुनिया की सबसे तेज़ी से बढ़ती अर्थव्यवस्थाएं, बढ़ता सैन्य खर्च और नौसैनिक क्षमताएं, प्राकृतिक संसाधनों को लेकर गलाकाट प्रतिस्पर्द्धा शामिल है। इस प्रकार देखें तो वैश्विक सुरक्षा और नई विश्व व्यवस्था की कुंजी हिंद-प्रशांत क्षेत्र के हाथ में ही है। इसके अंतर्गत एक महत्त्वपूर्ण क्षेत्र दक्षिण चीन सागर आता है। यहां आसियान के देश तथा चीन के मध्य लगातार विवाद चलता रहता है। बहरहाल, आशा है मोदी के दौरे से भारत-जापान संबंध और मजबूत होंगे।
डा. वरिंदर भाटिया
कालेज प्रिंसीपल
ईमेल : [email protected]

सोर्स- divyahimachal

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