सम्पादकीय

पश्चिम बंगाल में मोदी-शाह का सपना हो रहा चकनाचूर, जानिए ममता बनर्जी के वार से कैसे हाशिये पर जा रही BJP

Rani Sahu
17 April 2022 2:42 PM GMT
पश्चिम बंगाल में मोदी-शाह का सपना हो रहा चकनाचूर, जानिए ममता बनर्जी के वार से कैसे हाशिये पर जा रही BJP
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हालांकि भविष्य में राजनीति किस दिशा में करवट लेगी

अजय विद्यार्थी

साल 2021 के पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव ( West Bengal Assembly Election2021 ) में कमल खिलाने और 'ए बार, दो सौ पार' का नारा देकर ममता बनर्जी (Mamata Banerjee) की सरकार को अपदस्थ करने का शंघनाद करने वाली भारतीय जनता पार्टी को करारी पराजय का सामना करना पड़ा था. पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव के दौरान बंगाल में दिल्ली और बीजेपी (BJP) के केंद्रीय नेताओं के हल्ला बोल के बावजूद ममता बनर्जी तीसरी बार पूर्ण बहुमत से सरकार बनाने में सफल रहीं और सरकार बनाने का सपना देखने वाली बीजेपी के विधायकों की संख्या 77 पर ही सिमट कर रह गयी, जबकि साल 2019 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने राज्य की 42 लोकसभा सीटों में से 18 सीटों पर कब्जा कर ममता बनर्जी की सरकार को जबरदस्त चुनौती देते हुए पूर्वी भारत के इस राज्य में कमल खिलाने का सपना दिखाया था. पर विधानसभा चुनाव में वह सपना बिखर गया था. अब विधानसभा चुनाव के बाद पिछले एक साल के दौरान हुए उपचुनावों और बंगाल की राजनीतिक गतिविधियों से यह साफ दिख रहा है कि विधासनभा चुनाव में बीजेपी का सपना बिखरा था, लेकिन अब बंगाल में बीजेपी को अपने अस्तित्व को बचाने के लिए संघर्ष करना पड़ रहा है
हालांकि भविष्य में राजनीति किस दिशा में करवट लेगी. यह बता पाना बहुत ही कठिन है, लेकिन पिछले एक साल में राज्य में हुए विधानसभा-लोकसभा उपचुनावों, निकाय और नगरपालिका चुनावों में बीजेपी का प्रदर्शन बहुत ही निराशाजनक रहा है. विधानसभा चुनाव में नंबर दो पर रहने वाली बीजेपी को वामपंथी पार्टी माकपा से करारी टक्कर मिल रही है. बंगाल में बीजेपी के उत्थान के बाद 34 सालों तक शासन करनी वाली माकपा के बारे में कहा जा रहा था कि अब इस राज्य में माकपा का उत्थान संभव नहीं है, लेकिन उपचुनावों के परिणाम ने यह साबित कर दिया है कि माकपा फिनिक्स पक्षी की तरह अपनी राख से ही फिर से जीवित होने की कोशिश कर रही है, जबकि बंगाल में संभावनाओं के बावजूद केवल दो साल में ही बीजेपी बंगाल की राजनीति में बिखरती नजर आ रही है. यह शनिवार को आसनसोल लोकसभा और बालीगंज विधानसभा उपचुनाव के परिणामों से और भी साफ दिख रहा है.
आसनसोल में टीएमसी उम्मीदवार शत्रुघ्न सिन्हा ने रिकॉर्ड वोट से हासिल की जीत
बता दें कि आसनसोल लोकसभा की सीट टीएमसी कभी भी नहीं जीत पाई थी. आसनसोल की सीट जीतना ममता बनर्जी का सपना हुआ करता था. प्रतिकूल परिस्थितियों और ममता बनर्जी की लहर के बावजूद पूर्व केंद्रीय मंत्री और तात्कालीन बीजेपी नेता ने बाबुल सुप्रियो ने आसनसोल में टीएमसी उम्मीदवारों को शिकस्त देकर यह सीट बीजेपी की झोली में डाली थी. बीजेपी से बाबुल सुप्रियो के नाता तोड़ने और उनके टीएमसी में जाने के बाद आसनसोल सीट पर सत्तारूढ़ पार्टी तृणमूल कांग्रेस ने जीत का नया रिकॉर्ड बनाया है. साल 2011 में ममता बनर्जी की सत्ता में आने के बाद इस बार संसदीय चुनाव में पहली बार पार्टी के उम्मीदवार के तौर पर दिग्गज अभिनेता शत्रुघ्न सिन्हा ने जीत दर्ज की है. वह भी तीन लाख से अधिक मतों के अंतर से. चुनाव परिणामों के मुताबिक शत्रुघ्न सिन्हा ने अपने निकटवर्ती भाजपा उम्मीदवार अग्निमित्र पॉल के मुकाबले तीन लाख 534 वोटों के अंतर से जीत दर्ज की है. शत्रुघ्न सिन्हा को छह लाख 52 हजार 586 वोट मिले, जबकि बीजेपी उम्मीदवार अग्निमित्र पॉल को महज तीन लाख 52 हजार 083 वोट मिले. कांग्रेस उम्मीदवार की जमानत जब्त हुई.
बालीगंज विधानसभा उपचुनाव में तीसरे नंबर पर रहीं बीजेपी की उम्मीदवार
खैर, आसनसोल में तो बीजेपी ने टीएमसी के उम्मीदवार शत्रुघ्न सिन्हा को टक्कर दी, लेकिन बालीगंज विधानसभा उपचुनाव में बीजेपी की उम्मीदवार केया घोष तीसरे नंबर पर रहीं और बीजेपी छोड़ कर टीएमसी में शामिल हुए बाबुल सुप्रियो 20 हजार 38 वोटों से जीत गए बालीगंज विधानसभा उपचुनाव के परिणाम में सबसे महत्वपूर्ण है कि यहां बीजेपी नहीं, बल्कि माकपा की उम्मीदवार सायरा शाह हलीम दूसरे नंबर पर रहीं. माकपा उम्मीदवार सायरा शाह सलीम को 30 हजार 940 वोट मिले हैं, जबिक भाजपा उम्मीदवार केया घोष को महज 13 हजार 174 वोटों वोट मिले. जीत के बाद बाबुल सुप्रियो ने आसनसोल और बालीगंज में टीएमसी की जीत को बीजेपी के मुंह पर तमाचा करार दिया.
अंदरूनी कलह से जूझ रही है बंगाल बीजेपी
ऐसा नहीं है कि केवल चुनावी मोर्चा पर ही बीजेपी लगातार विफल रह रही है, बल्कि बंगाल की राजनीति में भी बीजेपी लगातार हाशिये पर सिमट रही है. साल 2021 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी के विधायकों की संख्या 77 थी, लेकिन चुनाव के बाद से बीजेपी के नेताओं का टीएमसी में पलायन जारी है. पूर्व केंद्रीय मंत्री बाबुल सुप्रियो, पूर्व केंद्रीय मंत्री मुकुल रॉय सहित पांच निर्वाचित विधायक बीजेपी छोड़कर टीएमसी का दामन थाम चुके हैं. प्रत्येक दिन किसी ने किसी बीजेपी नेता के इस्तीफे की सुर्खियां बनती रहती हैं. केंद्रीय राज्य मंत्री और मतुआ समुदाय के नेता सांसद शांतनु ठाकुर पार्टी नेतृत्व के खिलाफ खुलकर नाराजगी जता चुके हैं. दार्जिलिंग में गोरखा जनमुक्ति मोर्चा बीजेपी का साथ छोड़ चुकी है. आज ही बीजेपी के मुर्शिदाबाद के विधायक गौरी शंकर घोष ने पार्टी के सभी पदों से इस्तीफा दे दिया है. एमपी सौमित्र खान ने बंगाल पार्टी नेतृत्व के खिलाफ आवाज उठायी है. विधानसभा उपचुनावों और नगरपालिका चुनावों में केंद्रीय राज्य मंत्री निसिथ अधिकारी, बीजेपी के वर्तमान अध्यक्ष सुकांत मजूमदार, बीजेपी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष दिलीप घोष सहित अन्य बीजेपी नेताओं के बूथ पर बीजेपी उम्मीदवारों को करारी शिकस्त मिली है.
ममता बनर्जी को टक्कर देने में बीजेपी के नेता हैं नाकाम, नहीं है कोई चेहरा
अब यह सावल उठता है कि आखिर दो सालों में ही बंगाल में बीजेपी का ग्राफ क्यों गिरने लगा है और बीजेपी क्यों हाशिये पर जाने लगी है. वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक पार्थ मुखोपाध्याय का कहना है कि बंगाल में बीजेपी की लड़ाई ममता बनर्जी जैसी सशक्त नेता के साथ है, जिनके पास 30 फीसदी मुस्लिम वोट का पक्का समर्थन है और जिनका मोदी और बीजेपी विरोधी नेता के रूप में एक कट्टर छवि है, लेकिन बंगाल में दिलीप घोष को अध्यक्ष पद से हटाये जाने के बाद बंगाल बीजेपी में कोई स्वीकार्य और जमीन पर लड़ने वाला चेहरा नहीं है. बंगाल बीजेपी के नेता अंदरूनी कलह के शिकार हैं. पार्टी विभिन्न गुटों में विभाजित हो गयी है. पार्टी की अंदरूनी राजनीति के कारण ही पार्टी बिखर रही है और ममता बनर्जी की सरकार के खिलाफ एकजुट होकर आंदोलन नहीं कर पा रही है. दिलीप घोष, सुकांत मजूमदार, शुभेंदु अधिकारी, अर्जुन सिंह, लॉकेट चटर्जी, राहुल सिन्हा सहित कई चेहरे हैं, जो एकजुट नहीं हैं और सभी अपनी डफली में अपनी राग बजा रहे हैं, जब तक बीजेपी का केंद्रीय नेतृत्व किसी एक बंगाली अस्मिता से ताल्लुक रखने वाले और ममता बनर्जी को जमीन पर टक्कर देने वाले नेता को जिम्मेदारी नहीं देता है, तब-तक बंगाल में बीजेपी को अपना कुनबा संभालना मुश्किल होगा.
बंगाल में संगठन को मजबूत बनाने में बीजेपी रही है विफल
आसनसोल और बालीगंज में पराजय के बाद सांसद सौमित्र खान, बीजेपी नेता अनुपम हाजरा ने भी फिर से बंगाल नेतृत्व के खिलाफ आवाज उठानी शुरू कर दी है. पराजय के बाद आसनसोल से बीजेपी की उम्मीदवार अग्निमित्रा पॉल ने खुद स्वीकार किया था कि साल 2024 के लोकसभा चुनाव को देखते हुए केंद्रीय नेतृत्व को बंगाल की स्थिति को लेकर मंथन करने की जरूरत है. बीजेपी नेता लगातार टीएमसी नेताओं के अत्याचार और चुनाव में धांधली का आरोप लगाते हैं. बंगाल बीजेपी के नेता हार के लिए पूरी तरह से ममता बनर्जी और उनकी पार्टी की जोर-जबरदस्ती की नीति को जिम्मेदार ठहराते हैं, लेकिन बंगाल बीजेपी के नेता अनौपचारिक बातचीत में स्वीकार करते हैं कि बंगाल में बीजेपी संगठन नहीं बना पा रही है. कार्यकर्ताओं का लगातार पार्टी से मोहभंग हो रहा है. बूथ और मतदान केंद्र पर पार्टी पोलिंग एजेंट तक नहीं दे पाती है. ऐसी स्थिति में चुनाव परिणाम बेहतर कैसे हो सकते हैं ? केंद्र में शासन के कारण और आरएएस का समर्थन होने के कारण ही बीजेपी कुछ वोट ले पा रही है, नहीं तो बंगाल में बीजेपी की हालत माकपा और कांग्रेस जैसे होते.
Rani Sahu

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