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वोकल फॉर लोकल की भावना तब और मजबूत होगी जब इसे एक भारत-श्रेष्ठ भारत की भावना की शक्ति मिलेगी
वोकल फॉर लोकल की भावना तब और मजबूत होगी जब इसे एक भारत-श्रेष्ठ भारत की भावना की शक्ति मिलेगी. तमिलनाडु में रहने वाले हरियाणा के बने किसी चीज पर गर्व करे तो हिमाचल में रहने वाले केरल की बनी किसी चीज पर. एक-दूसरे के क्षेत्र के उत्पादों पर गर्व ही उस उत्पाद को लोकल से ग्लोबल उत्पाद बनने की ताकत देगा.
भारत के स्थानीय उत्पादों की खूबी है कि उनके साथ अक्सर एक पूरा दर्शन जुड़ा होता है. यही वजह है कि कोविड काल में 'वोकल फॉर लोकल' का आह्वान आज जन-जन की आवाज बन गई है और देश के लोग लोकल चीजों को खरीदने लगे हैं तो देसी उत्पाद भी ग्लोबल होने लगे हैं क्योंकि दुनिया भी इन स्थानीय उत्पादों की मुरीद हो रही है. स्थानीय वस्तुओं को लेकर जनजागरण का ही परिणाम है कि आजादी के 75वें साल में जब देश अमृत महोत्सव मना रहा है, तब एक बार फिर खादी युवा पीढ़ी को गौरव दे रही है. आज खादी और हैंडलूम का उत्पादन कई गुना बढ़ा है और उसकी मांग भी बढ़ी है.
बीते कुछ वर्षों में ही ऐसे कई अवसर आये हैं जब दिल्ली के खादी शोरूम में एक दिन में एक करोड़ रूपए से ज्यादा का कारोबार हुआ है. इसी को ध्यान में रखते हुए प्रधानमंत्री मोदी ने अपने मन की बात प्रोग्राम में कहा भी, "दिवाली का त्योहार सामने है, त्योहारों के मौसम के लिए खादी, हैंडलूम, कुटीर उद्योग से जुड़ी आपकी हर खरीदारी 'वोकल फॉर लोकल' के इस अभियान को मजबूत करने वाली हो, पुराने सारे रिकॉर्ड को तोड़ने वाली हो."
2014 में ही मोदी ने कर दी थी वोकल फॉर लोकल की शुरुआत
आम तौर पर यह देखने को मिलता है कि कोविड की आपदा के बाद प्रधानमंत्री मोदी ने आत्मनिर्भर भारत अभियान का आगाज किया तबसे ही वोकल फॉर लोकल की मुहिम भी शुरू हुई. लेकिन सनद रहे सो यह याद दिलाना जरूरी हो जाता है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सोच में 'इंडिया फर्स्ट' किस तरह से पहले दिन से महत्वपूर्ण बनी हुई है. प्रधानमंत्री मोदी ने 3 अक्टूबर 2014 को देश की जनता के साथ संवाद के लिए 'मन की बात' का एक अनूठा प्रयोग शुरू किया था. इसी पहले कार्यक्रम में उन्होंने कहा था, "हम जब महात्मा गांधी की बात करते हैं, तो खादी की बात बहुत स्वाभाविक रूप से ध्यान में आती है.
अगर आप खादी का वस्त्र खरीदते हैं तो एक गरीब के घर में दिवाली का दीया जलता है. कोशिश करें कि आपके घर में कम से कम एक चीज खादी की जरूर हो. यह एक छोटी कोशिश है, लेकिन आग्रहपूर्वक इसको करिए और देखिए गरीब के साथ आपको कैसा जुड़ाव का अहसास होता है." प्रधानमंत्री की इस अपील ने तो ब्रांड खादी का ऐतिहासिक कायाकल्प किया ही, अब देश वोकल फॉर लोकल के मंत्र को आंदोलन बना चुका है. आत्मनिर्भर भारत अभियान ने इसे गति दी है.
वोकल फॉर लोकल के प्रभाव का अंदाजा इससे भी लगाया जा सकता है कि 2020 में दिवाली त्योहार के दौरान खादी और अन्य ग्रामोद्योग उत्पादों सहित कई स्थानीय उत्पादों की बिक्री पिछले साल की दिवाली से भी अधिक रही. 2019 की दिवाली के मुकाबले कई कृषि उत्पादों की बिक्री में 2020 में 700 से 900 प्रतिशत से अधिक की वृद्धि दर्ज की गई. खादी इंडिया ने अक्टूबर-नवंबर, 2020 में दिल्ली के कनॉट प्लेस स्थित आउटलेट में प्रति दिन 1 करोड़ रुपये से अधिक की बिक्री की तो खाद्य और कपड़ा वस्तुओं की बिक्री दस गुना तक बढ़ी.
गांधी जयंती पर इस वर्ष भी अक्टूबर में 1 करोड़ रु. से अधिक की रिकॉर्ड बिक्री हुई. लोकल उत्पादों के ग्लोबल होने का खादी एक उम्दा उदाहरण है तो मिट्टी के दीये हो या अन्य उत्पाद, हथकरघा हो या कृषि क्षेत्र, रक्षा क्षेत्र हो या आईटी, मेडिकल क्षेत्र हो या टेक्सटाइल, लौह-अयस्क तमाम क्षेत्रों में भारत का बढ़ता निर्यात आज उसके निरंतर विकास के मार्ग पर अग्रसर होने की कहानी बयां कर रहा है. कृषि उत्पादों से लेकर रक्षा सामग्री तक का निर्यात कर भारत आत्मनिर्भरता की नई पटकथा लिख रहा है.
इसी का परिणाम है कि बीते कुछ वर्षों में 'भारत क्यों से भारत क्यों नहीं' दुनिया की सोच में दिख रहा है. लेकिन संदेह से भरोसे का यह सफर यों ही तय नहीं हो पाया है. कोविड की आपदा के बाद देश नए मोड़ पर आ खड़ा हुआ तो उसने पदले परिवेश में खुद को न सिर्फ ढाला, बल्कि अपनी अद्भूत कौशल क्षमता का प्रदर्शन भी किया है. यही वजह है कि देशभर में कई जगह स्वयं सहायता समूह हो या स्वदेशी खिलौनों के लिए पहल या एमएसएमई से जुड़े उद्योग, आपदा को अवसर में बदलने का अनुकरणीय उदाहरण बनी हैं.
"जब हम त्योहार की बात करते हैं, तैयारी करते हैं, तो, सबसे पहले मन में यही आता है, कि बाजार कब जाना है? क्या-क्या खरीददारी करनी है? खासकर, बच्चों में तो इसका विशेष उत्साह रहता है – इस बार, त्योहार पर, नया, क्या मिलने वाला है? त्योहारों की ये उमंग और बाजार की चमक, एक-दूसरे से जुड़ी हुई है. लेकिन इस बार भी जब आप खरीददारी करने जायें तो 'वोकल फॉर लोकल' का अपना संकल्प अवश्य याद रखें. बाजार से सामान खरीदते समय, हमें स्थानीय उत्पादों को प्राथमिकता देनी है." – नरेंद्र मोदी, प्रधानमंत्री
आत्मनिर्भर भारत अभियान से बढ़े कदम
2020 में आत्मनिर्भरता शब्द ऑक्सफोर्ड की डिक्शनरी का हिस्सा बन गया, जो भारत की शक्ति को दर्शाता है. लेकिन इस अभियान ने कैसे भारत और यहां के लोगों की सोच को बदला है इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि जब कोविड की आपदा आई तो भारत के पास पीपीई किट, एन-95 मास्क का उत्पादन ना के बराबर होता था. लेकिन आत्मनिर्भर भारत और वोकल फॉर लोकल भारत के भविष्य के लिए स्वाभाविक पहल बन गई है. भारत ऐसी अर्थव्यवस्था का निर्माण कर रहा है जहां गुणवत्तापूर्ण उत्पाद बड़े पैमाने पर बनेगा ताकि देश अधिक से अधिक आत्मनिर्भर हो सके.
भारत में जहा पहले पीपीई किट, मास्क बहुत कम मात्रा में बनाते थे, लेकिन अब उसका निर्यात करने लगा है. कोविड संकट के बाद बदली हुई नई दुनिया में भारत ने अपना रास्ता खुद बनाने का जो संकल्प लिया है, उसका रास्ता है- आत्मनिर्भरता. अगर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के शब्दों में कहें तो जब भारत आगे बढ़ता है तो दुनिया आगे बढ़ती है. भारत जब खुले में शौच से मुक्त होता है तो दुनिया की तस्वीर बदल जाती है. टीबी, कुपोषण, या कोविड जैसी महामारी के खिलाफ जंग, भारत के अभियानों का असर दुनिया पर पड़ता ही पड़ता है.
आज भारत एग्रीकल्चर से एस्ट्रोनॉमी तक, डिसास्टर मैनेजमेंट से डिफेंस टेक्नोलॉजी तक, वैक्सीन से लेकर वर्चुअल रियलिटी तक, बायोटेक्नोलॉजी से लेकर बैटरी टेक्नोलॉजी तक, हर दिशा में आत्मनिर्भर और सशक्त बनना चाहता है. प्रधानमंत्री मोदी के आत्मनिर्भर भारत का विजन पांच स्तंभों- उछाल भरने वाली अर्थव्यवस्था, विश्व स्तरीय बुनियादी ढांचा, तकनीक आधारित व्यवस्था, देश की ताकत बन चुकी विविधता से भरी आबादी और मांग-आपूर्ति की श्रृंखला का पूरी क्षमता के साथ इस्तेमाल पर आधारित है.
ऐसे में कोविड के दौर 12 मई 2020 को प्रधानमंत्री ने राष्ट्र को संबोधित करते हुए आत्मनिर्भर भारत पैकेज के तहत 20.97 लाख करोड़ का पैकेज का एलान किया तो यह महज एक धन राशि नहीं थी, बल्कि एक रोड मैप था, जिस पर भारत चल पड़ा है. सिर्फ त्योहार के मौसम में ही नहीं, रोजमर्रा की खरीददारी में इसकी झलक दिखने लगी है. उस पैकेज का लक्ष्य खास तौर से कुटीर उद्योग, गृह उद्योग, लघु-मंझोले उद्योग यानी एमएसएमई पर था जो करोड़ों लोगों की आजीविका का साधन भी है और भारतीय अर्थव्यवस्था की रीढ़ भी.
ये आर्थिक पैकेज देश के उस श्रमिकों, किसानों को ध्यान में रखकर बनाया गया था हर मौसम में देशवासियों के लिए दिन रात परिश्रम करता है. भारत के आर्थिक सामर्थ्य को बुलंदी देने के लिए संकल्पित उद्योग जगत को जो राह मिली, उसी का नतीजा है कि भारत में निवेश बढ़ रहा है.
लोकल से ग्लोबल भारत भर रहा विश्व का पेट
प्रधानमंत्री मोदी की योजना- एक जिला, एक उत्पाद ने स्थानीय उत्पादों को वैश्विक बनाने में महत्वपूर्ण योगदान दिया है. देश में पहली बार कई कलस्टरों से भी कृषि निर्यात हुए हैं. उदाहरण के तौर वाराणसी से ताजी सब्जियों और चंदौली से काले चावल का पहली बार निर्यात हुआ है. जिससे उस क्षेत्र के किसानों को सीधे लाभ मिला है. इसके अलावा देश के अन्य कलस्टरों जैसे नागपुर से संतरे, अनंतपुर से केले, लखनऊ से आम आदि भी निर्यात हुए हैं. भारतीय कृषि उत्पादों की इस सफलता में पहली बार निर्यात किए जाने वाले उत्पादों ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है.
ये ऐसे उत्पाद हैं जिन्हें पहली बार देश से बाहर भेजा गया और अपनी गुणवत्ता की वजह से विदेशी बाजारों में धूम मचा दी है. पहली बार मई में 4 हजार किलो आर्गेनिक- सांवा चावल और जौ डेनमार्क भेजे गए. इस साल असम से 40 मीट्रिक टन लाल चावल पहली बार अमेरिका को निर्यात किया गया. इसी तरह पूर्वोत्तर का बर्मी अंगूर और त्रिपुरा से दो खेपों में (मई 1.2 मीट्रिक टन और जुलाई में 1.6 मीट्रिक टन) कटहल लंदन भेजे गए. इसी तरह पहली बार नगालैंड की 200 किलो ताजी किंग चिली लंदन भेजी गई है. कानपुर के जामुन ने पहली बार में ही विदेशों में धूम मचा दी है. जून-जुलाई 2021 में जामुन के 10 कंसाइनमेंट ब्रिटेन, ओमान और संयुक्त अरब अमीरात को निर्यात किया गया है.
इसी तरह भागलपुर से जर्दालु आम को भी पहली बार लंदन निर्यात किया गया. पहली बार कश्मीर की मिश्री चेरी दुबई को और हिमाचल प्रदेश के सेब को भी पहली बार बहरीन का बाजार मिला है. छत्तीसगढ़ से 11 अगस्त को 9 मीट्रिक टन सूखा महुआ पहली बार फ्रांस भेजा गया है. अगर इन शुरुआत को देखा जाए तो भारत का किसान अब सिर्फ देश का ही नहीं, विश्व का भी पेट भर रहे हैं. सिर्फ कृषि ही नहीं, रक्षा और अन्य उत्पादों में भी स्वदेशी की गूंज सुनाई देने लगी है. केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह वोकल फॉर लोकल के नारे के तहत केंद्रीय पुलिस कल्याण भंडार के अंदर अब से स्वदेशी चीजें ही मिलने का एलान कर चुके हैं, ताकि आत्मनिर्भर भारत का संकल्प सिद्ध हो और देश 5 ट्रिलियन डॉलर इकोनामी बनने की दिशा में अग्रसर हो.
उद्योगों को प्रोत्साहन बनी क्रांतिकारी पहल
स्थानीय उत्पादों को बढ़ावा देने और देश में ही उसकी मैन्युफैक्चरिंग के लिए केंद्र सरकार ने पहली बार 13 महत्वपूर्ण सेक्टरों की पहचान कर उत्पादन संबद्ध प्रोत्साहन (पीएलआई) की शुरुआत की है, जिन क्षेत्रों में देश को आयात पर ही निर्भर रहना पड़ता था. इस वर्ष के बजट में पीएलआई स्कीम से जुड़ी योजनाओं के लिए करीब 2 लाख करोड़ रुपए का प्रावधान किया गया है. उत्पादन का औसतन 5 प्रतिशत इंसेंटिव के रूप में दिया गया है. यानी सिर्फ पीएलआई स्कीम के द्वारा ही आने वाले 5 सालों में लगभग 520 बिलियन डॉलर का उत्पादन भारत में होने का अनुमान है.
इतना ही नहीं, अनुमान ये भी है कि जिन सेक्टरों के लिए पीएलआई योजना बनाई गई है, उन सेक्टर में अभी जितनी कायर्क्षमता काम कर रही है, वो करीब-करीब दोगुनी हो जाएगी. आत्मबल और आत्मविश्वास से भरे नौजवानों ने आत्मनिर्भरता को संभव कर दिखाया है. देश हर क्षेत्र में तेजी से आत्मनिर्भरता की ओर बढ़ रहा है तो आगे बढ़ते भारत की चमक पूरे दुनिया को रौशन कर रही है. प्रधानमंत्री मोदी की दीर्घकालिक सोच और मजबूत नेतृत्व के फैसलों का असर है कि देश का लोकल अब ग्लोबल बाजार में धाक जमा रहा है.
नए दौर में भारत की ताकत
कोविड के कालखंड में भारत ने अपनी क्षमता का प्रदर्शन करके दिखाया है. भारत के जन सामान्य ने एक आत्मनिर्भर अभियान के रूप में जिस प्रकार से एक के बाद एक ठोस कदम उठाये हैं. यह ठीक उसी तरह का है जैसे दो विश्व युद्ध ने दुनिया को झकझोर दिया था और दुनिया में एक नया आर्डर आकार लिया था.
अब कोविड के बाद भी एक नया वर्ल्ड ऑडर नजर आ रहा है. पोस्ट कोरोना के बाद दुनिया में एक नया संबंधों का वातावरण आकार लेगा. यह तय है कि भारत एक कोने में गुजारा नहीं कर सकता है. वह एक मजबूत खिलाड़ी के रूप में उभरेगा. लेकिन सिर्फ जनसंख्या के आधार पर भारत दुनिया में अपनी मजबूती का दावा नहीं कर रहा, बल्कि वो एक ताकत है. नए वर्ल्ड ऑर्डर में भारत को अपनी जगह बनाने के लिए भारत को सशक्त होना पड़ेगा, समर्थ होना पड़ेगा और उसका रास्ता है आत्मनिर्भर भारत.
निश्चित तौर से बनारसी साडियों में बनारस के बुनकरों का हुनर दिखता है. कहीं हल्दी, कहीं मसाले, कहीं आम, कहीं सेब, मखाना या अन्य कृषि उत्पाद. यूपी का आम, कश्मीर का केसर, आंध्र प्रदेश की मिर्च, तमिलनाडु की हल्दी फेमस है. लोकल से ग्लोबल हो रहे भारतीय उत्पादों ने देश की जनता को देश के बने उत्पादों और देश में ही निर्माण का संदेश दिया है. कोविड की महामारी पर दीवाली का जुनून भारी पड़ रहा है और व्यापारियों में उत्साह देखने को मिल रहा है तो बाजारों से विदेशी सामानों की जगह भारतीय सामानों की रौनक दिख रही है.
प्रधानमंत्री मोदी के विजन से निकले 'वोकल फॉर लोकल' मुहिम से देश के बाजारों में भारतीय सामान अपनी चमक बिखेर रहा है जो दुनिया को दो टूक संदेश दे रहा है- "भारत की कहानी आज मजबूत है, कल और भी मजबूत होगी."
(डिस्क्लेमर: ये लेखक के निजी विचार हैं. लेख में दी गई किसी भी जानकारी की सत्यता/सटीकता के प्रति लेखक स्वयं जवाबदेह है. इसके लिए जनता से रिश्ता किसी भी तरह से उत्तरदायी नहीं है)
संतोष कुमार वरिष्ठ पत्रकार
लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। रामनाथ गोयनका, प्रेस काउंसिल समेत आधा दर्जन से ज़्यादा पुरस्कारों से नवाज़ा जा चुका है। भाजपा-संघ और सरकार को कवर करते रहे हैं। 2019 के लोकसभा चुनाव पर भाजपा की जीत की इनसाइड स्टोरी पर आधारित पुस्तक "कैसे मोदीमय हुआ भारत" बेहद चर्चित रही है।
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