सम्पादकीय

मोदी सरकार ने नए कृषि कानूनों के जरिये देश के किसानों के हितों की दिशा में उठाया क्रांतिकारी कदम

Neha Dani
8 Dec 2020 2:38 AM GMT
मोदी सरकार ने नए कृषि कानूनों के जरिये देश के किसानों के हितों की दिशा में उठाया क्रांतिकारी कदम
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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सुधारों पर बल देते हुए यह सही कहा कि पुराने पड़ चुके कानूनों के सहारे नई शताब्दी में नहीं चला जा सकता।

जनता से रिश्ता वेबडेस्क| प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सुधारों पर बल देते हुए यह सही कहा कि पुराने पड़ चुके कानूनों के सहारे नई शताब्दी में नहीं चला जा सकता। उनका यह कथन इसलिए अहम हो जाता है, क्योंकि इन दिनों नए कृषि कानूनों के विरोध में विभिन्न किसान संगठनों का एक आंदोलन जारी है और उसके तहत भारत बंद की भी तैयारी की जा रही है, लेकिन इसकी अनदेखी नहीं की जा सकती कि किसानों का आंदोलन वस्तुत: किसानों का ही अहित करने वाला है। इसका संकेत विभिन्न किसान संगठनों की उन मांगों से मिलता है जो कुछ समय पहले की जा रही थीं। उनकी तब की मांगें आज के बिल्कुल उलट थीं। जो किसान संगठन किसानों को आढ़तियों के चंगुल से मुक्त कराने की जरूरत जता रहे थे वे आज यह कहने लगे हैं कि आढ़ती किसानों के हितों के रक्षक हैं। बात ऐसे किसान संगठनों की ही नहीं है।

कांग्रेस के नेतृत्व वाली संप्रग सरकार में कृषि मंत्री के रूप में शरद पवार ने राज्य सरकारों को जो चिट्ठियां लिखी थीं उनसे भी पता चलता है कि मोदी सरकार ने नए कृषि कानूनों के जरिये किसानों के हितों की दिशा में एक क्रांतिकारी कदम उठाया है।
इसकी अनदेखी नहीं की जानी चाहिए कि नए कृषि कानूनों के खिलाफ किसानों को बरगलाने में सबसे अहम भूमिका निभाने वाले पंजाब के मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह आज जो कुछ कह रहे हैं, कुछ समय पहले ठीक इसके उलट बोल रहे थे। इन सब मामलों से यदि कुछ स्पष्ट होता है तो यही कि किसानों के हितों की फर्जी आड़ लेकर अपने-अपने संकीर्ण स्वार्थों को पूरा किया जा रहा है। सबसे खराब बात यह है कि इस प्रक्रिया में किसानों के हितों की परवाह करने के बजाय उन्हें गुमराह करने का काम किया जा रहा है और इस क्रम में यहां तक कहा जा रहा है कि इन कानूनों पर संसद में कोई चर्चा ही नहीं हुई। सच्चाई यह है कि इन पर न केवल दोनों सदनों में चर्चा हुई, बल्कि विपक्षी दलों की आपत्तियों का सरकार की ओर से सिलसिलेवार जवाब भी दिया गया। अब जब इन कानूनों पर संसद की मुहर लग चुकी है तब बहस उनकी खूबियों और खामियों पर होनी चाहिए। ऐसा करते समय सर्वोच्च प्राथमिकता किसानों के हितों को देनी होगी, न कि संकीर्ण राजनीतिक स्वार्थों को।
विपक्षी दल जिस तरह कृषि कानूनों को लेकर दोहरे आचरण का परिचय दे रहे हैं उसे देखते हुए यह आवश्यक हो जाता है कि केंद्र सरकार पूरी गंभीरता और मजबूती से उनके ऐसे रवैये को बेनकाब करे। जितना जरूरी सुधारों को आगे बढ़ाना है उतना ही उनके बारे में लोगों को सही तरह बताना भी।


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