सम्पादकीय

मोदी सरकार को विपक्ष के नकारात्मक और उद्योग विरोधी माहौल की अनदेखी कर बड़े सुधारों की ओर बढ़ना चाहिए

Gulabi
31 Jan 2021 10:10 AM GMT
मोदी सरकार को विपक्ष के नकारात्मक और उद्योग विरोधी माहौल की अनदेखी कर बड़े सुधारों की ओर बढ़ना चाहिए
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वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण की ओर से मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल का दूसरा आम बजट एक फरवरी को आ रहा है।

वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण की ओर से मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल का दूसरा आम बजट एक फरवरी को आ रहा है। इस बजट की ओर लोगों की निगाहें इसलिए अधिक हैं, क्योंकि यह तब आ रहा, जब भारत महामारी कोविड-19 से निपटने में लगा हुआ है। इस महामारी के चलते भारत में करीब चार महीने लॉकडाउन रहा। इस कारण अर्थव्यवस्था पटरी से उतर गई, लेकिन जैसा कि अर्थशास्त्रियों को उम्मीद थी कि उसमें तेज उछाल आएगी, वैसा ही हो रहा है। उम्मीद है बजट में उस नुकसान की भरपाई के विशेष प्रविधान किए जाएंगे, जो कोरोना काल में हुआ। सरकार को यह देखना होगा कि उसका घाटा भी नियंत्रित रहे और सामाजिक योजनाओं के लिए धन की कमी भी न हो। अर्थव्यवस्था को हुए नुकसान की भरपाई के लिए टैक्स की दरें असामान्य रूप से नहीं बढ़ाई जानी चाहिए। ऊंची टैक्स दरें काली कमाई को बढ़ावा देती हैं। बेहतर होगा कि सरकार कोविड काल में हुए घाटे को यथासंभव वहन करे और ज्यादा ध्यान अर्थव्यवस्था को दोबारा पटरी पर लाने पर दे। यह अच्छा है कि आर्थिक सर्वे में खर्च बढ़ाने के संकेत दिए गए हैं, लेकिन सरकार को चाहिए कि वह अपना हाथ उन तमाम उद्योगों से खींचे, जिन्हें वह अभी भी चला रही है। सार्वजनिक उपक्रमों के विनिवेश की प्रक्रिया को गति दी जानी चाहिए, क्योंकि मुक्त बाजार के दौर में इसका औचित्य नहीं कि सरकार खुद उद्योग चलाए। उसका काम तो उद्योगों के संचालन के तौर-तरीके तय करने और उनकी निगरानी तक सीमित रहना चाहिए। यह विडंबना है कि एक के बाद एक सरकारें विनिवेश की बात तो करती रहीं, लेकिन सार्वजनिक उपक्रमों से हाथ खींचने से बचती भी रहीं। इसी का नतीजा है कि सरकार एयर इंडिया जैसे उपक्रम चला रही है। इसी तरह अन्य अनेक उपक्रम केंद्र या राज्य सरकारों के नियंत्रण में हैं।





आम बजट ऐसे समय आ रहा है, जब कृषि कानूनों को लेकर धरना-प्रदर्शन जारी है

आम बजट ऐसे समय आ रहा है, जब कृषि कानूनों को लेकर धरना-प्रदर्शन जारी है। आम किसानों को इन कानूनों से कोई परेशानी नहीं, मगर पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के किसान नेता हठधर्मिता का परिचय दे रहे हैं। इसी कारण गणतंत्र दिवस पर दिल्ली में जगह-जगह जो उपद्रव हुआ और यहां तक कि लाल किले पर भी उत्पात मचाया गया, उसके कारण किसान आंदोलन बहुत बदनाम हुआ। इस बदनामी के बाद भी वे अड़ियल रवैया दिखा रहे हैं। वे कृषि कानूनों को लेकर खुद भी भ्रमित हैं और किसानों को भी भ्रमित कर रहे हैं। चूंकि कोरोना काल में कृषि ने देश को बड़ा सहारा दिया इसलिए यह ठीक ही है कि आर्थिक सर्वे में कृषि और किसानों के लिए खास उपाय करने के संकेत दिए गए। सरकार को बजट में ऐसे उपाय करके राजनीतिक लाभ लेने की भी कोशिश करनी चाहिए, ताकि अफवाह आधारित किसान आंदोलन की धार कुंद हो।
कृषि के अलावा स्वास्थ्य और शिक्षा को मजबूत करने की आवश्यकता

कृषि के अलावा दो और क्षेत्र हैं, जो इस समय विशेष मांग कर रहे हैं-एक स्वास्थ्य और दूसरा शिक्षा। महामारी के दौरान सरकारी अस्पतालों में बेड की संख्या में कमी दिखी। अब जब महामारियां आते रहने का अंदेशा बढ़ गया है तब स्वास्थ्य संबंधी ढांचे की मजबूती पर विशेष ध्यान दिया जाना चाहिए। आर्थिक सर्वे भी यह कहता है कि स्वास्थ्य ढांचे को सुधारने के लिए ठोस कदम उठाने की जरूरत है। स्वास्थ्य के साथ शिक्षा पर भी खर्च बढ़ाया जाना चाहिए। कोरोना काल में पठन-पाठन बुरी तरह प्रभावित हुआ। छात्रों को जिस तरह घर बैठकर पढ़ाई करनी पड़ी, वह उनके लिए अप्रत्याशित अनुभव रहा। पढ़ाई वही जो कक्षा में जाकर की जाए, लेकिन कोरोना काल में ऑनलाइन पढ़ाई के प्रयोग ने यह संभावना बढ़ा दी है कि बड़ी संख्या में छात्रों को इसी तरह शिक्षा प्रदान की जा सकती है। वैसे सरकार ग्रामीण इलाकों में इंटरनेट पहुंचा रही है, लेकिन ऐसे क्षेत्रों में इंटरनेट सुविधा संतोषजनक नहीं।
इंटरनेट ढांचे को और व्यापक करने की जरूरत

सरकार को इंटरनेट ढांचे को और व्यापक करना चाहिए, ताकि डिजिटल इंडिया मुहिम को बल मिले। यह सही है कि नई शिक्षा नीति पर अमल शुरू हो गया है, लेकिन उसे पूरी तरह लागू करने के लिए अच्छे-खासे बजट की आवश्यकता है। देखना है कि बजट में इस आवश्यकता की पूर्ति कैसे होती है? इस समय अर्थव्यवस्था शहरों से चल रही है, लेकिन उनका आधारभूत ढांचा चरमराता जा रहा है। हालांकि स्मार्ट सिटी योजना के जरिये शहरों के आधारभूत ढांचे को ठीक करने की कोशिश हो रही है, लेकिन उन्हें अनियोजित विकास से बचाना आसान नहीं। मेट्रो सेवा शुरू करने या ओवरब्रिज बनाने से ही समस्या का निवारण नहीं होगा। शहरों को बेहतर बनाने के लिए बड़े बजट के साथ ही राजनीतिक इच्छाशक्ति और नागरिकों के सहयोग की भी आवश्यकता है।

राष्ट्रपति के अभिभाषण का बहिष्कार: बजट सत्र में विपक्षी दल सरकार को सहयोग नहीं देंगे

बजट सत्र की शुरुआत होते ही विपक्षी दलों ने राष्ट्रपति के अभिभाषण का बहिष्कार करके यह साफ कर दिया कि वे सरकार को सहयोग नहीं देंगे। विपक्ष का नेतृत्व कर रही कांग्रेस के नेता राहुल गांधी मोदी सरकार को उद्योगपतियों की सरकार बताकर उद्यमशीलता पर जानबूझकर चोट कर रहे हैं। कांग्रेस का मुक्त बाजार विरोधी रवैया यही बताता है कि वह वामपंथी अतिवाद से ग्रस्त हो रही है। वह पहले भी इसी रवैये से ग्रस्त रही और इसी कारण देश वैसी तरक्की नहीं कर सका, जैसी अन्य देश कर गए। यह तो गनीमत रही कि जिस वक्त नरसिंह राव सरकार ने अर्थव्यवस्था खोलने का काम किया, उस समय कांग्रेस का नेतृत्व गांधी परिवार के पास नहीं था, अन्यथा देश की और दुर्दशा होती।

विपक्ष के दुष्प्रचार और दबाव में आकर मोदी सरकार को बड़े सुधारों से हिचकिचाना नहीं चाहिए

कांग्रेस की देखा-देखी अन्य विपक्षी दलों पर भी वामपंथी अतिवाद हावी हो रहा है। वे मुक्त अर्थव्यवस्था के खिलाफ नकारात्मक माहौल बनाकर यह संदेश दे रहे हैं कि लोगों को खुशहाली सिर्फ सरकार दे सकती है। यह लोकलुभावन सोच उद्यमशीलता पर सीधी चोट है। विपक्ष के दुष्प्रचार और दबाव में आकर मोदी सरकार को बड़े सुधारों से हिचकिचाना नहीं चाहिए।

सरकार विपक्ष के नकारात्मक माहौल की अनदेखी कर सुधारों की ओर बढ़े

अच्छा होगा कि सरकार विपक्ष की ओर से बनाए जा रहे नकारात्मक माहौल की अनदेखी कर सुधारों की ओर बढ़े और यह ध्यान रखे कि सुधार तभी कारगार होंगे, जब उन्हें लेकर जनता के बीच व्यापक चर्चा की जाएगी। कृषि कानूनों के मामले में यह काम किसानों के बीच किया जाना चाहिए था। कोई भी बड़ा बदलाव कुछ समस्याएं खड़ी करता है, लेकिन आम जनता तकलीफ सहने को तभी तैयार होगी, जब बड़े सुधारों के मामले में सरकार उसे भरोसे में लेगी।


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