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उच्च स्तर पर ले जाने के लिए बड़े राष्ट्रीय निवेश और निर्माण जोन बनाएगा। इसने 2022 तक दस करोड़ रोजगार तैयार करने की बात की।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश को आत्मनिर्भर बनाने की बात कही है। इसे वह भिन्न ढंग से पहले भी कह चुके हैं।
2014 में केंद्र में पहली बार अपनी सरकार का गठन करने के बाद उन्होंने मेक इन इंडिया कार्यक्रम की घोषणा की थी। उनकी इस दृष्टि को खूब वाहवाही मिली थी और काफी मीडिया कवरेज भी मिला था। उद्योगपतियों में इसकी प्रशंसा करने की होड़ लगी थी और उनलोगों ने बड़े-बड़े निवेश के वायदे किए थे जिनमें से कुछ ही अगले पांच साल में जमीन पर उतर पाए। योजनाओं पर सतर्क निगाह रखने वाले कुछ लोगों ने तब ही कहा था कि मोदी ने जो भी घोषणाएं की हैं, वे, दरअसल, यूपीए सरकार की 2011 की नई निर्माण (मैन्युफैक्चरिंग) नीति है जिन्हें नए प्रोडक्ट के तौर पर मुलम्मा चढ़ाकर पेश कर दिया गया है।
यह संभवतः समझने योग्य था कि प्रधानमंत्री ने मेक इन इंडिया कार्यक्रम के तौर पर पुरानी यूपीए योजना को सिर्फ रीपैकज क्यों किया। नई सरकार ने तुरंत कार्यभार संभाला ही था और वह इतनी जल्दी नई योजना तैयार नहीं कर सकती थी। इसलिए वह घोषणा कर, आकर्षक नारा गढ़कर काम चला रही थी। लेकिन उसे बाद में ऐसी योजना विकसित करने के लिए अपना दिमाग लगाना था जो महत्वपूर्ण पहलुओं के साथ निबटे। लेकिन तथ्य यह है कि अपने लक्ष्यों के अनुरूप नई अद्यतन योजनाएं लाने की जगह छह साल में यूपीए युग के औद्योगिक और निर्माण नीतियों को ही कई मर्तबा कलई चढ़ाकर पेश कर दिया गया है।
भारत की पहली उद्योग नीति 1991 में तैयार की गई थी। उस वक्त की सरकार ने आर्थिक सुधारों की शुरुआत की थी। 1991 में पीवी नरसिंहराव के नेतृत्व वाली सरकार ने बिल्कुल नए किस्म की आर्थिक नीति की शुरुआत की थी जिसने बदनाम लाइसेंस राज की समाप्ति और सभी सेक्टरों को खोलने की परिकल्पना की थी। उद्योग नीति ने इसकी ही विस्तृत संरचना रखी थी। बाद में बनी सरकारों ने, कुल मिलाकर, उन्हीं आर्थिक सुधारों की संरचना को आगे बढ़ाया और विभिन्न सेक्टरों को खोला। चाहे वह अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार हो या डाॅ. मनमोहन सिंह की दोनों यूपीए सरकारें हों, 1991 की उद्योग नीति ने अर्थव्यवस्था के सुधार की कदम-दरकदम संरचना ही उपलब्ध कराई।
लीमैन ब्रदर्स के धाराशायी होने और सबप्राइम मोर्टगेज संकट के कारण वैश्विक वित्तीय मंदी से जूझते हुए यूपीए सरकार ने 2011 में उद्योग और निर्माण में भी ऐसी 'जिंदादिली' फिर से कायम करने के रास्ते खोजने शुरू किए जिसने आर्थिक सुधारों के बाद सेवाओं को दूसरा हथियार बनाने में महत्वपूर्ण भमिू का निभाई। सेवाओं ने अर्थव्यवस्था में तेजी से विकास लाया, पर यूपीए 2 टीम जानती थी कि इसने निर्माण की गति खो दी है। चीन ने सस्ते श्रम और दुनिया भर के खयाल से काफी उच्च स्तर के प्रभावी निर्माण की बदौलत अपने विकास का फैलाव कर लिया है और योजनाकारों ने महसूस किया कि भारत की निर्माण कमजोरियों को दूर किए जाने की जरूरत है। निर्माण बढ़ाना रोजगार के लिए भी फायदेमंद होगा।
2011 की नई निर्माण नीति (एनएमपी) में 2022 तक भारत के जीडीपी में 25 प्रतिशत निर्माण हिस्सेदारी जोड़ने की बड़ी दृष्टि थी। निर्माण का हिस्सा लगभग 15-16 प्रतिशत था। इस नई नीति ने परिकल्पना की कि भारत निर्माण अर्थव्यवस्थाओं को उच्च स्तर पर ले जाने के लिए बड़े राष्ट्रीय निवेश और निर्माण जोन बनाएगा। इसने 2022 तक दस करोड़ रोजगार तैयार करने की बात की।
सोर्स: navjivanindia
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