सम्पादकीय

Modi Cabinet Expansion: क्या देश का पहला मंत्रिमंडल है जो भारत के हर कोने को रिप्रजेंट कर रहा है?

Tara Tandi
9 July 2021 7:10 AM GMT
Modi Cabinet Expansion: क्या देश का पहला मंत्रिमंडल है जो भारत के हर कोने को रिप्रजेंट कर रहा है?
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नरेंद्र मोदी सरकार के कैबिनेट विस्तार में 36 नए चेहरों को जगह देकर 78 सदस्यों वाले एक ऐसे संतुलित मंत्रिमंडल का गठन करने की कोशिश की गई है

जनता से रिश्ता वेबडेस्क | संयम श्रीवास्तव | नरेंद्र मोदी सरकार के कैबिनेट विस्तार (PM Modi Cabinet Expansion) में 36 नए चेहरों को जगह देकर 78 सदस्यों वाले एक ऐसे संतुलित मंत्रिमंडल का गठन करने की कोशिश की गई है, जिसमें पूरे देश को समान प्रतिनिधत्व मिल सके. देश के 24 राज्यों के प्रतिनिधियों को मंत्रिमंडल में जगह देकर पूरे देश का मंत्रिमंडल बनाया गया है. अगर आप ध्यान से देखेंगे तो पाएंगे कि मंत्रियों की सूची राज्यों के हिसाब से तय की गई है, ताकि देश की सरकार में हर राज्य का योगदान रहे. यही नहीं राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के अंतर्गत आने वाले विभिन्न क्षेत्रों का भी ध्यान रखा गया है. उदाहरण के लिए यूपी में पूर्वांचल, रुहेलखंड, बुंदेलखंड, पश्चिमी यूपी, अवध क्षेत्र, विंध्य क्षेत्र (मिर्जापुर) से अलग-अलग लोगों को मंत्रिमंडल में जगह देकर कोशिश की गई है कि यूपी के हर क्षेत्र के लोगों को प्रतिनिधित्व मिल सके.

इसी तरह दूसरे राज्यों के हर क्षेत्रों को प्रतिनिधित्व देने की भी कोशिश की गई है. इस तरह के क्षेत्रिय संतुलन का ध्यान इसके पहले नरसिम्हा राव की सरकार में ही देखने को मिला था. नरसिम्हा राव सरकार ने करीब 26 राज्यों के नेताओं को अपने मंत्रिमंडल में जगह देकर संतुलन बनाया था. नरेंद्र मोदी सरकार ने 2009 की मनमोहन सिंह सरकार की बराबरी कर ली है. मनमोहन सिंह के मंत्रिमंडल में भी भारत के 24 राज्यों के नेताओं को स्थान दिया गया था.
देश के कोने-कोने से मिनिस्टर
नरेंद्र मोदी कैबिनेट का विस्तार देखकर लगता है जैसे उन्होंने अपनी सरकार में पूरे देश को समायोजित कर लिया हो. दरअसल नरेंद्र मोदी सरकार में इस वक्त मंत्रियों की संख्या 78 हो गई है. हालांकि अधिकतम मंत्री 81 बनाए जा सकते हैं. यानि अभी भी तीन मंत्रियों के लिए जगह खाली है. देश के 24 राज्यों से मंत्री बनाए गए हैं. हालांकि उत्तराखंड और पंजाब जैसे राज्यों को उतनी तरजीह नहीं दी गई है. जबकि चुनाव यहां भी होने हैं. गोवा से श्रीपद येसो नायक पहले भी कैबिनेट में मंत्री थे और अब भी हैं. मणिपुर से जरूर सांसद राजकुमार रंजन सिंह को कैबिनेट में जगह मिली है. इससे पहले मणिपुर से एक भी मंत्री मोदी कैबिनेट में शामिल नहीं था. नरेंद्र मोदी ने अपने कैबिनेट की पहली विस्तार में ही देश के सभी हिस्सों और वर्गों को यह संदेश देने की कोशिश की है कि उनका नारा सबका साथ, सबका विश्वास और सबका विकास केवल जुमला नहीं है बल्कि वह इसी सिद्धांत पर काम भी करते हैं.
यूपी का कोई कोना नहीं छूटा
मिर्जापुर विध्यांचल क्षेत्र से अपना दल की अनुप्रिया पटेल को मंत्रिमंडल में जगह मिली जो ओबीसी वर्ग से आती हैं. अनुप्रिया पटेल को मंत्रिमंडल में जगह देने के साथ ही बीजेपी अपने सहयोगियों को एकजुट रखना चाहती है. अवध क्षेत्र में लखनऊ से कौशल किशोर को मंत्री बनाया गया, जो एससी वर्ग से आते हैं. वह दूसरी बार लोकसभा सांसद बने हैं. रूहेलखंड क्षेत्र से बदायूं के बीएल वर्मा को मंत्री बनाया गया जो ओबीसी वर्ग से आते हैं. पश्चिमि यूपी से आगरा के सांसद एसपी बघेल को मंत्रिमंडल में जगह मिली जो एससी वर्ग से आते हैं. रूहेलखंड क्षेत्र के लिए खीरी से सांसद अजय मिश्र टेनी को मंत्रिमंडल में जगह मिली जो ब्राह्मण हैं. बुंदेलखंड क्षेत्र के जालौन से सांसद भानुप्रताप सिंह वर्मा को मंत्रिमंडल में जगह मिली, जो एससी वर्ग से आते हैं. पूर्वांचल क्षेत्र में महाराजगंज से सांसद पंकज चौधरी को केंद्रीय मंत्रिमंडल में जगह मिली जो ओबीसी वर्ग से आते हैं.
राज्यवार मंत्रियों का ब्योरा
मंत्रियों का चुनाव जिस हिसाब से राज्यों के आधार पर हुआ है उससे साफ जाहिर है कि उनके ऊपर अपने-अपने राज्यों के विकास कार्यभार को संभालने का जिम्मा होने वाला है. उत्तर प्रदेश जो राजनीतिक दृष्टिकोण से देश का सबसे बड़ा सूबा है, वहां के लिए 8 मंत्री, गुजरात से 6 मंत्री, महाराष्ट्र और पश्चिम बंगाल से 4-4 मंत्री, बिहार और कर्नाटक से 3-3 मंत्री और मध्यप्रदेश और ओडिशा से 2-2 मंत्री हैं, जबकि असम, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, नई दिल्ली, राजस्थान, तमिलनाडु, झारखंड, तेलंगाना, त्रिपुरा, अरुणाचल और मणिपुर को एक-एक मंत्री मिले हैं.
मंत्रिमंडल लिस्ट
नारायण तातु राणे – महाराष्ट्र
सर्बानंद सोनोवाल – असम
वीरेंद्र कुमार – मध्यप्रदेश
ज्योतिरादित्य सिंधिया – मध्यप्रदेश
रामचंद्र प्रसाद सिंह – बिहार
अश्विनी वैष्णव – उड़ीसा
पाशुपति कुमार पारस – बिहार
किरण रिजिजू – अरुणाचल प्रदेश
राज कुमार सिंह – बिहार
हरदीप सिंह पुरी – उत्तर प्रदेश
मनसुख मंडाविया – तमिलनाडु
भूपेंद्र यादव – राजस्थान
पुरुषोत्तम रूपाला – तमिलनाडु
जी किशन रेड्डी – तेलंगाना
अनुराग सिंह ठाकुर – हिमाचल प्रदेश
पंकज चौधरी – उत्तर प्रदेश
अनुप्रिया सिंह पटेल – उत्तर प्रदेश
सत्यपाल सिंह बघेल – उत्तर प्रदेश
राजीव चंद्रशेखर – तमिलनाडु
शोभा करंदलाजे – कर्नाटक
भानु प्रताप सिंह वर्मा – उत्तर प्रदेश
दर्शन विक्रम जरदोश – तमिलनाडु
मीनाक्षी लेखी – नई दिल्ली
अन्नपूर्णा देवी – झारखंड
ए नारायणस्वामी – कर्नाटक
कौशल किशोर – उत्तर प्रदेश
अजय भट्ट – उत्तराखंड
बीएल वर्मा – उत्तर प्रदेश
अजय कुमार – उत्तर प्रदेश
देवुसिंह जेसिंगभाई चौहान – गुजरात

भगवंत खुबा – कर्नाटक
कपिल मोरेश्वर पाटिल – महाराष्ट्र
प्रतिमा भौमिक – त्रिपुरा
सुभाष सरकार – पश्चिम बंगाल
भागवत किसनराव कराड – महाराष्ट्र
राजकुमार रंजन सिंह – मणिपुर
भारती प्रवीण पवार – महाराष्ट्र
विश्वेश्वर टुडू – उड़ीसा
शांतनु ठाकुर – पश्चिम बंगाल
मुंजापारा महेंद्रभाई – गुजरात
जॉन बारला – पश्चिम बंगाल
एल मुरुगन – तमिलनाडु
निशीथ प्रमाणिक – पश्चिम बंगाल
नरसिम्हा राव कैबिनेट से मोदी की नई कैबिनेट की तुलना
पीवी नरसिम्हा राव 1991 में सरकार में आए तो उनकी सरकार अल्पमत में थी, लेकिन इसके बावजूद भी उन्होंने अपनी सरकार 5 सालों तक चलाई. इसकी सबसे बड़ी वजह यह थी कि उन्होंने अपने सहयोगी दलों को कभी नाराज नहीं किया और अपने साथ बनाए रखा. इसके लिए उन्हें 26 राज्यों के नेताओं को मंत्रिमंडल में जगह भी देनी पड़ी थी. हालांकि नरसिम्हा राव सरकार में यूपी-बिहार का रिप्रजेंटेशन बहुत कम था. दरअसल तत्कालीन सरकार में साउथ के एमपी ज्यादा थे और कहा जाता है कि नरसिम्हा राव चाहते भी नहीं थे कि नॉर्थ इंडिया में कांग्रेस मजबूत हो. इसलिए भी यूपी से केवल एक कैबिनेट मिनिस्टर और 2 राज्यमंत्री ही लिए गए थे. इस तरह देश की सबसे बड़ी आबादी वाले राज्य के लोगों को सबसे कम रिप्रजेंटेशन मिलने के चलते एक आदर्श स्थिति नहीं बन पाई थी.
2009 में जब मनमोहन सरकार अस्तित्व में आई तो यूपीए के गठबंधन को मजबूत बनाए रखने के लिए उस वक्त भी 24 राज्यों के नेताओं को मंत्री बनाया गया था. दरअसल किसी भी गठबंधन को बनाए रखने के लिए हर पार्टी को मंत्रिमंडल में जगह देना अनिवार्य होता है, नहीं तो एक समय बाद सहयोगी पार्टियों का गठबंधन से मोह भंग हो जाता है और वह गठबंधन से रिश्ता तोड़ लेती हैं. जैसे उत्तर प्रदेश में सुहेलदेव समाज पार्टी के नेता ओमप्रकाश राजभर ने किया था. 3 साल बाद 2024 के लोकसभा चुनाव हैं और 2022 में पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव होने हैं. ऐसे में भारतीय जनता पार्टी को पता है कि अगर उनका गठबंधन एनडीए मजबूत नहीं रहा तो आने वाले चुनाव में पार्टी को इसका खमियाजा भुगतना पड़ सकता है. हालांकि बीजेपी के सामने अभी किसी भी गठबंधन से रिश्ता टूटने की मजबूरी नहीं है. फिर भी चूंकि अभी पार्टी को देश के हर कोने में अपने को मजबूत करना है इसलिए देश के हर कोने से मिनिस्टर बनाए गए हैं.


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