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- मोदी-बाइडन बातचीत
नवभारत टाइम्स: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन के बीच सोमवार को हुई वर्चुअल बातचीत का सबसे बड़ा संदेश यही है कि दोनों देश आपसी रिश्तों की अहमियत समझते हैं। वे भविष्य में इसे और मजबूत करना चाहते हैं। अगर कोई गांठ आई भी तो दोनों उसे सुलझा लेंगे। हाल में यूक्रेन को लेकर अमेरिका की ओर से कुछ ऐसे बयान आए थे, जिनसे संबंधों में तल्खी का संकेत मिला था। पहले तो बाइडन ने यह कहा कि यूक्रेन मामले में भारत का रुख 'थोड़ा हिला हुआ है।' इसके बाद अमेरिका के डेप्युटी एनएसए दलीप सिंह भारत आए। उन्होंने कहा कि रूस को लेकर भारत का जो रुख है, वह उसे महंगा पड़ सकता है। खासतौर पर भारत के रूस से तेल-गैस सौदे को लेकर अमेरिका की ओर से दबाव था। आखिर, इस मामले में भारत को यह कहना पड़ा कि यूरोपीय देश अभी रूस से कहीं ज्यादा तेल-गैस खरीद रहे हैं। इन सबके बीच अगर मोदी, बाइडन के बीच सोमवार को अच्छी बातचीत हुई तो वह मायने रखती है। मोदी ने अपनी तरफ से बूचा हिंसा का मुद्दा उठाया। उन्होंने भारत का यह रुख भी दोहराया कि बूचा हिंसा की निष्पक्ष जांच करवाई जाए।
मोदी ने कहा कि उन्होंने रूस और यूक्रेन के राष्ट्रपति से सीधी बातचीत की अपील की है। एक और लिहाज से यह वार्ता खास थी। दोनों नेताओं के बीच विदेश और रक्षा मंत्री स्तर की 2 प्लस 2 वार्ता से पहले यह चर्चा हुई। अक्सर मंत्री और अधिकारी शीर्ष नेताओं के बीच वार्ता की जमीन तैयार करने के लिए मिलते हैं। खैर, इस माहौल में बाइडन और मोदी ने बात की। दोनों ने यूक्रेन पर एक दूसरे का पक्ष समझा। मतभेदों को स्वीकार किया और उन्हें दूर करने की जरूरत दिखाई। साथ ही, एक दूसरे को बताने से परहेज किया कि किसे क्या करना चाहिए। इसके बाद उनका रुख आपसी रिश्तों को और गहरा करने की प्रतिबद्धता की ओर मुड़ गया। बाइडन ने भारत के साथ पार्टनरशिप को अमेरिका के सबसे महत्वपूर्ण रिश्तों में एक बताया तो प्रधानमंत्री मोदी ने दोनों देशों को नैचरल पार्टनर करार दिया। अमेरिका इस तथ्य को अच्छी तरह समझता है कि युद्ध के बाद चीन की आक्रामकता पर अंकुश लगाने के अभियान में भारत का साथ उसके लिए अहम साबित होने वाला है। इसके साथ ही यह बात भी है कि रक्षा समेत तमाम क्षेत्रों में भारत के साथ सहयोग की जो व्यापक संभावनाएं हैं उनकी अनदेखी करना अमेरिका के हित में नहीं होगा। भारत में भी एक वर्ग यह समझ रहा है कि रूस आगे चलकर चीन का जूनियर पार्टनर बन जाएगा। इसलिए भारत को रूस से दूरियां बनानी होंगी। यानी लंबी अवधि के लिहाज से देखें तो भारत और अमेरिका वाकई नैचरल पार्टनर हैं।