सम्पादकीय

आधुनिक खेती

Rani Sahu
1 Aug 2022 6:56 PM GMT
आधुनिक खेती
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प्रकृति की अपनी एक व्यवस्था है जिसमें भरपूर उत्पादन होता है, वह भी बिना रासायनिक खाद और कीटनाशक का इस्तेमाल किए हुए

प्रकृति की अपनी एक व्यवस्था है जिसमें भरपूर उत्पादन होता है, वह भी बिना रासायनिक खाद और कीटनाशक का इस्तेमाल किए हुए, परंतु इस उत्पादन को वही व्यक्ति प्राप्त कर सकता है जिसके पास प्रकृति के नियम-कायदों, कानूनों को समझने का नजरिया हो। लालच और अहंकार में डूबे व्यक्तियों को यह उत्पादन दिखेगा ही नहीं क्योंकि ये लोग प्रकृति के सहायक हैं ही नहीं। इन लालची व्यक्तियों को प्रकृति के अमूल्य तत्त्वों का सिर्फ दोहन करना आता है, बेहिसाब खर्च करना आता है। इसके चलते जब ये तत्त्व रीत जाते हैं और प्रकृति का संतुलन बिगडऩे लगता है तो ये लालची लोग इसका ठीकरा किसी और पर फोडऩे लगते हैं। वर्तमान में जलवायु परिवर्तन सुविधाभोगी आधुनिक इनसान के लिए एक बहुत बड़ी चुनौती बनकर सामने आ रहा है। दिन-ब-दिन यह समस्या बढ़ती ही जा रही है, पर मजाल है कि किसी व्यक्ति के कान पर जूं भी रेंग जाए।

व्यक्ति तो छोडि़ए, सरकारों के कानों पर भी जूं नहीं रेंग रही है, सिर्फ बड़ी-बड़ी घोषणाएं हो रही हैं, पर जमीनी स्तर पर सब निल बटे सन्नाटा ही पसरा हुआ है। तो हमें क्या करना चाहिए? यहां हम इस पर बात नहीं करेंगे कि दुनिया भर की सरकारों को क्या करना चाहिए क्योंकि वह हमारे हाथ में नहीं है। हम तो इस पर बात करेंगे कि किसान होने के नाते, भू-स्वामी होने के नाते और एक धरतीवासी होने के नाते हम क्या कर सकते हैं। अव्वल तो हमको अपनी भूलने की आदत सुधारनी होगी, बारम्बार आ रहीं आपदाओं को खतरे की घंटी मानना होगा और भविष्य में इन आपदाओं की तीव्रता और न बढ़े, इसके लिए अपने लालच पर लगाम लगाना सीखना होगा। प्राकृतिक संसाधनों का अंधाधुंध दोहन बंद करते हुए हमें आवश्यक और अनावश्यक में अंतर करना सीखना होगा। हमें अपने उपभोग की गति का प्रकृति के पुनर्चक्रण की गति से सामंजस्य बैठाना होगा। दूसरे, हमें प्रकृति के पुनर्चक्रण में सहयोग करना होगा। यानी हम प्रकृति से जितना ले रहे हैं, उतना ही वापस लौटाने का संकल्प करना पड़ेगा। पहले जमाने में यदि कोई रिश्तेदार या पड़ोसी कोई वस्तु आपको देने घर आता था तो लोग उसको खाली हाथ नहीं जाने देते थे, बल्कि उसी के बर्तन में कुछ न कुछ भरकर वापस देते थे।
प्रकृति के साथ हमें भी यही करना है। यदि हम प्रकृति से 100 प्रतिशत तत्त्व ले रहे हैं, तो कम से कम 70 प्रतिशत तो उसे लौटाएं, तब जाकर संतुलन बनेगा और तब हम भी खुश रहेंगे और प्रकृति भी खुश रहेगी। कृषि उत्पादन के लिए हम प्रकृति से जो दो चीज़ें, पानी और पेड़, सबसे अधिक ले रहे हैं। उन्हें प्रकृति को वापस लौटाना होगा। पानी की सबसे ज्यादा खपत खेती में होती है और खेती के लिए साल-दर-साल अधिकाधिक जंगल साफ किए जा रहे हैं। इन दो चीजों की भरपाई कैसे करेंगे? इसके लिए हमें अपने-अपने खेतों में छोटे-छोटे तालाब एवं कुंए बनवाने होंगे और खूब सारे पेड़ लगाने होंगे। किसानों को कुल जमीन के 10 प्रतिशत हिस्से में बागवानी और 10 प्रतिशत हिस्से में तालाब या कुंए की व्यवस्था करनी चाहिए। तालाब और कुंए बनाने से जहां एक ओर सिंचाई के लिए भरपूर पानी उपलब्ध होगा, वहीं खेत की मिट्टी और हवा में नमी बढऩे से उत्पादन में वृद्धि होगी। साथ ही भू-जल स्तर भी बढ़ेगा। बागवानी से पेड़ों की संख्या में इज़ाफा होगा, जिससे तापमान कम होगा, वातावरण में कार्बन का स्तर घटेगा और बारिश बढ़ेगी। मिट्टी का क्षरण रुकेगा, जमीन अधिक उपजाऊ बनेगी।
पवन नागर
स्वतंत्र लेखक

By: divyahimachal

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