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प्रकृति की अपनी एक व्यवस्था है जिसमें भरपूर उत्पादन होता है, वह भी बिना रासायनिक खाद और कीटनाशक का इस्तेमाल किए हुए, परंतु इस उत्पादन को वही व्यक्ति प्राप्त कर सकता है जिसके पास प्रकृति के नियम-कायदों, कानूनों को समझने का नजरिया हो। लालच और अहंकार में डूबे व्यक्तियों को यह उत्पादन दिखेगा ही नहीं क्योंकि ये लोग प्रकृति के सहायक हैं ही नहीं। इन लालची व्यक्तियों को प्रकृति के अमूल्य तत्त्वों का सिर्फ दोहन करना आता है, बेहिसाब खर्च करना आता है। इसके चलते जब ये तत्त्व रीत जाते हैं और प्रकृति का संतुलन बिगडऩे लगता है तो ये लालची लोग इसका ठीकरा किसी और पर फोडऩे लगते हैं। वर्तमान में जलवायु परिवर्तन सुविधाभोगी आधुनिक इनसान के लिए एक बहुत बड़ी चुनौती बनकर सामने आ रहा है। दिन-ब-दिन यह समस्या बढ़ती ही जा रही है, पर मजाल है कि किसी व्यक्ति के कान पर जूं भी रेंग जाए।
By: divyahimachal