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- संयम की मुद्रा
महंगाई की दर निरंतर बढ़ती गई, बाजार सिकुड़ता गया, रोजगार के अवसर कम होते गए तो लोगों की क्रय शक्ति क्षीण हो गई। बहुत सारी छोटी और मंझोली औद्योगिक इकाइयों का फिर से उठ खड़ा होना मुश्किल हो गया। ऐसे में रिजर्व बैंक के सामने सबसे बड़ी चुनौती आर्थिक गतिविधियों को दुबारा पुरानी गति में वापस लाने की थी। बंदी खुलने के बाद अब बाजार में धीरे-धीरे चहल-पहल बढ़ने लगी है, औद्योगिक इकाइयां संभलनी शुरू हो गई हैं, अपने गांव गए मजदूर अब शहरों की तरफ लौटने लगे हैं। इसलिए रिजर्व बैंक की अगले कुछ महीनों में अर्थव्यवस्था के कुछ सुधरने की उम्मीद स्वाभाविक है।
ब्याज दरों में बदलाव आमतौर पर महंगाई पर काबू पाने और बाजार में पैसे की तरलता संतुलित करने के उद्देश्य से किए जाते हैं। फिलहाल सरकार के सामने ये दोनों चुनौतियां हैं। बाजार की गतिविधियों को प्रोत्साहित करने के लिए बैंक पूंजी का प्रवाह लगातार बढ़ा रहे हैं। नई मौद्रिक नीति में भी करीब बीस हजार करोड़ रुपए और डालने का फैसला किया गया है। फिर औद्योगिक क्षेत्र को लगातार प्रोत्साहन दिया जा रहा है। इस तरह बाजार में धीरे-धीरे रौनक लौटनी शुरू होगी। पर महंगाई को संतुलित करने के लिए ब्याज दरों में बदलाव न करके रिजर्व बैंक ने एक तरह से संयम का ही परिचय दिया है।
हालांकि यह ब्याज की निम्नतम दर कही जा सकती है, जिसके चलते बैंकों को कई जगह मुश्किलें उठानी पड़ रही हैं, पर अगर दर बढ़ाई जाती, तो महंगाई पर काबू पाना और कठिन हो जाता। इस वक्त सकारात्मक पक्ष यह भी है कि कच्चे तेल की कीमतें ऊंची नहीं हैं और कृषि क्षेत्र का प्रदर्शन लगातार बेहतर बना रहा है। अगली तिमाही में भी इसे उत्साहजनक रहने का अनुमान है, क्योंकि इस साल मानसून अच्छा रहा है और फसलों की बुआई भी अच्छी हुई है।
हालांकि रिजर्व बैंक इस बात से आश्वस्त जरूर है कि अर्थव्यवस्था अपने ऋणात्मक स्तर से बाहर निकल कर जल्दी ही धनात्मक स्तर पर पहुंच जाएगी, पर जैसा कि पहले अर्थव्यवस्था के बेहतर प्रदर्शन का अनुमान लगाया गया था, उस दृष्टि से इसे उत्साहजनक नहीं माना जा सकता। रिजर्व बैंक ने खुद माना है कि इस साल अर्थव्यवस्था करीब साढ़े नौ फीसद सिकुड़ जाएगी। इसलिए सरकार का सारा जोर औद्योगिक उत्पादन बढ़ाने और बाजार की गति में तेजी लाने पर है। इसी से रोजगार और लोगों की क्रयशक्ति बढ़ने की दिशा में कुछ बेहतरी के रास्ते खुलेंगे। मगर निवेशकों में उत्साह की कमी और अंतरराष्ट्रीय बाजार में सुस्ती की वजह से चुनौतियां लंबे समय तक बनी रहने के कयास लगाए जा रहे हैं। अर्थव्यवस्था के इस जटिल दौर में रिजर्व बैंक के लिए संयम बनाए रखना ही उचित है।