सम्पादकीय

मंदिरों में आदर्श आचार संहिता

Rani Sahu
2 July 2023 6:52 PM GMT
मंदिरों में आदर्श आचार संहिता
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By: divyahimachal
मंदिर की परंपराएं अपने शुद्धिकरण या माहौल की शुचिता में प्रयास करें तो इससे सामाजिक ताने बाने का अनुशासन और धार्मिक मर्यादाएं सुनिश्चित होंगी। इसी परिप्रेक्ष्य में ऊना जिला के द्रोण महादेव शिव मंदिर अंबोटा के गर्भगृह प्रवेश में एक ड्रैस कोड लागू हो रहा है। मसला कहीं इससे भी बड़ा यानी मंदिर परिसरों में आचार संहिता का है। दरअसल मंदिरों की मान्यता में जबसे पर्यटन की घुसपैठ हुई है, कई परंपराएं विचलित हैं। बेशक आमदनी के लिहाज से धार्मिक पर्यटन का विकसित रूप हिमाचल की आर्थिकी को संबल दे रहा है, लेकिन धार्मिक नगरियों में संगत का सौहार्द न•ार नहीं आता। मंदिर परिसर अपने साथ पर्यटन व शहरी आर्थिकी के साथ-साथ स्वरोजगार के विविध अवसर भी पैदा कर रहे हैं, लेकिन इसका यह अर्थ नहीं कि यह आवारगी के केंद्र भी बन जाएं। पिछले कुछ सालों से यह भी देखा जा रहा है कि श्रद्धालुओं की टोली में तथा सैलानियों के वेश में पड़ोसी राज्यों के आपराधिक तंत्र का आगमन हुआ है। मंदिर स्थलों के समीप हत्याएं, आत्महत्याएं तथा लड़ाई-झगड़ों में बढ़ोतरी का एक कारण यह भी है कि यहां कानून व्यवस्था राम भरोसे चल रही है। आज तक मंदिर आचार संहिता जैसे कोई स्पष्ट निर्देश सामने नहीं आए हैं। प्रदेश को कम से कम प्रमुख मंदिर नगरियों का विकास एक आदर्श मॉडल के तहत करना चाहिए और इन्हें नागरिक समाज के सहयोग से मर्यादित रखना होगा। उदाहरण के लिए चिंतपूर्णी, नैना देवी, बालासुंदरी, ज्वालामुखी, दियोटसिद्ध, कांगड़ा व चामुंडा की मंदिर आय के साथ इनके पांच से दस किलोमीटर दायरे को धार्मिक नगर के रूप में ऐसा आकार देना चाहिए ताकि श्रद्धालु या पर्यटक मन की शांति के लिए ही आएं। मंदिर दर्शन की पद्धति में सुधार की गुंजाइश ऊना के द्रोण महादेव मंदिर प्रबंधन को दिखाई दे रही है, तो कमोबेश इसी तरह हर मंदिर में आदर्श आचार संहिता की सख्त जरूरत है।
विडंबना यह है कि हिमाचल के मंदिरों का संचालन आधे अधूरे संकल्प और काम चलाऊ व्यवस्था के तहत हो रहा है। मूलत: राजस्व और प्रशासन के अधिकारी ही सरकार के अधीन आए मंदिरों को चला रहे हैं, जबकि अब तक कई कार्य और बदलाव हो जाने चाहिए थे। सभी मंदिरों का संचालन एक केंद्रीय ट्रस्ट के तहत होता, तो कार्य पद्धति, पूजा विधि, मंदिरों की व्यवस्था तथा प्रबंधन भी एक जैसा होता। इसके तहत मंदिर प्रबंधन के तहत एक स्थायी कॉडर विकसित हो जाता। ऐसे में मंदिरों के प्रबंधन के लिए एक मंदिर विकास एवं प्रबंधन प्राधिकरण की जरूरत है जिसका मुख्यालय ज्वालाजी जैसे केंद्रीय स्थल पर स्थापित किया जा सकता है। मंदिरों में आरती, पूजा के तौर तरीके, मंत्रोच्चारण के सही प्रयोग जब होंगे, तो हर पर्यटक को श्रद्धालु होने की मान्यता में मंदिर आचार संहिता का पालन करना पड़ेगा। विडंबना यह है कि मंदिरों के आसपास शराब के ठेके, सिगरेट-बीड़ी की दुकानें और मांसाहारी रेस्तरां सरेआम उस भावना का उल्लंघन कर रहे होते हैं, जिसके तहत ऊना के शिवालय को ड्रेस कोड लागू करना पड़ता है। हम किसी बेटी के कपड़ों की निगरानी में मंदिर की रखवाली तो कर लेंगे, लेकिन परिसर के ठीक बाहर ठेकों पर खड़ी शराबियों की पंक्ति में गाली-गलौच को कैसे रोकेंगे। आश्चर्य तो तब होता है जब मंदिरों की पवित्रता का ठेकेदार बन कर कोई विभाग इस पर कब्जा जमाकर आर्थिक लाभ कमा लेता है। धर्मशाला के कचहरी अड्डा में पौराणिक हनुमान मंदिर परिसर पर पुलिस का कब्जा क्यों नहीं आदर्श आचार संहिता का उल्लंघन माना जाए। क्या पूजा के ड्रेस कोड में किसी वर्दीधारी का आधिपत्य कानूनी तौर पर किसी अधिकार का पात्र है। हनुमान मंदिर के स्वामी दरअसल कांगड़ा पुलिस के प्रमुख बन जाते हैं और वही फैसला लेते हैं कि आय का व्यय कैसे हो। सरकार को ऐसे मंदिरों को अपने अधीन लेना चाहिए।
Rani Sahu

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