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By: divyahimachal
नक्शे पे पहली बार हिमाचल ने जख्म भर लिए, धरती के दर्द ने कुछ नए रास्ते चुन लिए। कीरतपुर-मनाली फोरलेन से गुजरने की सजा भुगतते पंडोह बांध के करीब का कैंची मोड़, इस सफर की कवायद को अस्थिर बना देता है। कभी लगा कि कीरतपुर से मनाली के बीच उभरा यह फॉल्ट, सदियों के दोष को माथे मढ़ गया, लेकिन फिर विकास का ख्वाब जिंदा निकला। वहीं जहां सडक़ के आंसू निकले थे, एक नई आशा का पहाड़ खड़ा हो गया। एनएचएआई के चेयरमैन संतोष कुमार यादव की मानें, तो कुल्लू दशहरा के मेहमान इसी रास्ते से पहुंचेंगे। अक्तूबर तक फोरलेन पुन: खुद के घाव भर लेगी, लेकिन आपदा के मुआयने ने सडक़ निर्माण की विधा को कई हिदायतें और कई विकल्प तराशने की जरूरत बता दी। जाहिर है फोरलेन निर्माण की गति और पहाड़ पर सडक़ बनाने की मति में कुछ तो सुधार आएगा, ताकि आइंदा बारिशों से घाव की सतह हमारे विकास की कलह न बने। बेशक एनएचएआई ने अपनी प्राथमिकताओं में शुरू की गई तमाम परियोजनाओं की सुध लेते हुए इन्हें वक्त रहते सुधारने की गुंजाइश को पूरा करने की प्रतिबद्धता जाहिर की है। इसी के साथ प्रदेश के लिए आपदा के बाद विकास की अगली सदी को संबोधित करने की हिदायतें बदली हैं।
इन्हीं के प्रारूप में मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू ने केंद्रीय एजेंसी को अपना प्रारूप बदलने की गुजारिश की है। हिमाचल ने परिवहन का रुख बदलने के लिए तीन ऐसी सुरंगें चुनी हैं, जिनके मार्फत सफर का नक्शा बदलेगा। भुभु जोत, चंबा-चुवाड़ी और भावा से पिन घाटी को जोडऩे वाली सुरंगों का निर्माण अगर प्राथमिक आधार पर होता है, तो हिमाचल आज जहां खड़ा है, वहां से कहीं आगे सुरक्षित, सदाबहार और नए तरानों के साथ अपनी पेशकश कर सकता है। चंबा से चुवाड़ी और घटासनी से भुभुजोत सुरंगों के दायरे में दूरियां घटेंगी और साथ ही पर्यटन का एहसास भी बदलेगा। जाहिर है ये दो सुरंगें कहीं न कहीं कांगड़ा के केंद्र में अन्य जिलों से हाथ मिला सकती हैं। भुभुजोत अगर कांगड़ा-मनाली के बीच 55 किलोमीटर सफर घटा रही है, तो चंबा-चुवाड़ी सुरंग से पूरा भूगोल बदल सकता है। सुरंग रास्तों के कई और प्रस्ताव भी सामने आते रहे हैं, लेकिन न योजनाएं बनीं और न ही राज्य की प्राथमिकताएं तय हुईं।
दरअसल हिमाचल के विकास की दृष्टि से चार संसदीय क्षेत्रों में राजनीतिक हसरतें परवान चढ़ती गईं, नतीजतन औद्योगिक विकास के सारे मुहावरे परवाणू के बाद बीबीएन में सिमट गए। फोरलेन की पैमाइश परवाणू-शिमला व कीरतपुर-मनाली तक होती रही, जबकि आठ जिलों की जनता को ढोने वाले मटौर-शिमला ऐसी किसी प्राथमिकता में बहुत देरी से आ रहा है। इसी तरह ऊना रेल की परिधि में अगर मंदिर पर्यटन का खाका बनता तो अब तक अंब-अंदौरा से चिंतपूर्णी, ज्वालाजी, कांगड़ा, चामुंडा, दियोटसिद्ध तथा नयनादेवी तक पटरियों का विस्तार हो जाता। अंब-अंदौरा से मात्र पचास किलोमीटर का सफर ज्वालाजी को हिमाचल में रेल विस्तार का प्रमुख केंद्र बना सकता है। इसी तरह अगर सरकार जल परिवहन पर गंभीरता से विचार करें तो कौल डैम के मार्फत तत्तापानी, गोविंदसागर के मार्फत बिलासपुर से पंजाब तथा पौंग बांध के मार्फत कांगड़ा-हमीरपुर के बीच पर्यटन के कई टापू खड़े कर सकते हैं। दरअसल हिमाचल की महत्त्वाकांक्षा अलग-अलग प्रदेश सरकारों तथा केंद्र सरकारों के बीच बिखरती रही है। ढंग से माल ढुलाई पर ही गौर करते, तो अब तक सेब की ढुलाई के लिए रज्जु मार्गों की एक श्रृंखला बन चुकी होती। हिमाचल को आगे बढ़ाने के लिए स्थायी नीतियों, राजनीतिक सौहार्द, फिजूलखर्ची पर रोक तथा क्षेत्रवाद से ऊपर उठकर समूचे प्रदेश के नक्शे पर क्रांतिकारी उद्घोष को जिंदा रखना होगा।
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