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- परीक्षा का ढंग
Written by जनसत्ता: परीक्षाएं इसलिए कराई जाती हैं कि विद्यार्थियों के सीखने की क्षमता और उनकी योग्यता का मूल्यांकन किया जा सके। हालांकि परीक्षाओं का विरोध भी होता रहा है। अनेक विशेषज्ञों का मानना है कि परीक्षाएं विद्यार्थियों में भय पैदा करती हैं और वे किसी की प्रतिभा के मूल्यांकन का अंतिम उपाय नहीं मानी जा सकतीं। इसलिए सतत मूल्यांकन आदि की व्यवस्था भी की गई। मगर दुनिया भर में अभी तक कोई ऐसा उपाय नहीं तलाशा जा सका है, जिसके जरिए विद्यार्थियों की पढ़ाई-लिखाई को उचित ढंग से जांचा जा सके।
पिछले साल जब कोरोना की दूसरी लहर चरम पर थी, देश में चौतरफा हाहाकार की स्थिति थी, तब शिक्षा बोर्डों के सामने चुनौती खड़ी हो गई थी कि वे विद्यार्थियों का मूल्यांकन कैसे करें। आखिरकार इंटरनेट के माध्यम से परीक्षा कराने का उपाय तलाशा गया। इस साल भी कुछ लोग मांग कर रहे थे कि परीक्षाएं पहले की तरह केंद्रों पर न करा कर इंटरनेट माध्यम से ही कराई जाएं। इसके पीछे उनका तर्क था कि चंूकि पिछले डेढ़ साल से अधिक समय से बच्चे स्कूल नहीं जा पाए हैं, उनकी पढ़ाई-लिखाई ठीक से नहीं हो पाई है। इसके अलावा कोरोना का भय अभी समाप्त नहीं हुआ है और बहुत सारे बच्चों का टीकाकरण नहीं हो सका है, इसलिए इस साल भी घर बैठे परीक्षा की व्यवस्था होनी चाहिए।
घर बैठे परीक्षा कराने की मांग करने वालों ने सर्वोच्च न्यायालय में गुहार लगाई। इस पर न्यायालय ने याचिकाकर्ताओं को फटकार लगाते हुए परीक्षा के मामले में किसी भी तरह की सुनवाई करने से इनकार कर दिया। अदालत का कहना है कि पिछले साल के अनुभवों को आधार नहीं बनाया जा सकता। इस तरह की मांग विद्यार्थियों में भ्रम पैदा करती है। इस तरह की याचिकाओं से छात्र गुमराह होंगे। इस तरह घर बैठे परीक्षा देने की मांग को विराम लग गया है। विद्यार्थियों को स्पष्ट हो गया है कि उन्हें परीक्षा के लिए तैयारी करनी है।
यों पहले ही केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड ने कोरोना की स्थितियों को देखते हुए इस साल होने वाली बोर्ड परीक्षाओं की रूपरेखा काफी आसान बना दी है। उसे दो सत्रों में विभाजित कर दिया है। पहले सत्र की परीक्षा बहुविकल्पीय प्रश्नों के आधार पर कराई गई, जिसे विद्यार्थी अपने स्कूलों में ही दिया। वह एक तरह से गृह परीक्षा ही थी। अंतिम परीक्षा परीक्षा केंद्रों पर कराई जानी है, जिसमें लघुत्तरीय और दीर्घ उत्तरीय प्रश्न होंगे। दोनों परीक्षाओं के अंक जोड़ कर विद्यार्थी का मूल्यांकन होगा। ऐसी ही व्यवस्था राज्य बोर्डों ने भी कर रखी है। इस तरह इस बार पहले के सालों की तुलना में काफी आसान परीक्षा होने वाली है। उसके बावजूद घर बैठे परीक्षा कराने की मांग समझ नहीं आती।
अब कोरोना के मामले काफी कम हो गए हैं। पहले जैसी खतरनाक स्थितियां नहीं हैं, जिसमें संक्रमण का भय हो। फिर परीक्षा केंद्रों पर समुचित दूरी बना कर बैठने, संक्रमणरोधी उपायों की भी व्यवस्था होगी। इसलिए इसे लेकर किसी प्रकार के हिचक की बात नहीं। हां, अनेक अध्ययनों से पता चला है कि कोरोना काल में घर बैठे पढ़ाई करने से छात्रों में सीखने की क्षमता प्रभावित हुई है और पढ़ाई-लिखाई से उनका मन उचटा है। मगर इस आधार पर मूल्यांकन की पद्धति बदलने की छूट नहीं मिल जाती। फिर, अब स्कूल खुल गए हैं, बच्चों को परीक्षा का मानस बनाने में अभिभावकों का भी सहयोग मिले तो परीक्षा में कोई कठिनाई नहीं आनी चाहिए।