सम्पादकीय

मौत के कुएं में धकेलते मोबाइल ऐप्स

Gulabi
26 Dec 2020 5:24 AM GMT
मौत के कुएं में धकेलते मोबाइल ऐप्स
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आजकल सभी के हाथों में एंड्रायड फोन है। सभी नई प्रौद्योगिकी को अपना रहे हैं लेकिन

जनता से रिश्ता वेबडेस्क। आजकल सभी के हाथों में एंड्रायड फोन है। सभी नई प्रौद्योगिकी को अपना रहे हैं लेकिन नई प्रौद्योगिकी का इस्तेमाल सावधानी से करना बहुत जरूरी है। लोग ठगी का शिकार हो रहे हैं। साइबर जालसाज अब नए-नए तरीके से लोगों को ठगते जा रहे हैं। अब तो बिना ओटीपी की जानकारी लिए ही शातिर बैंक खातों से रकम निकाल रहे हैं। कोरोना काल में लोगों ने जमकर मोबाइल ऐप का इस्तेमाल किया। लोग घर बैठे मोबाइल बैंकिंग कर रहे हैं।

इसका लाभ साइबर जालसाज उठा रहे हैं। अब तक तो शातिर लोग मोबाइल पर कॉल कर लोगों से बैंक से आए ओटीपी पूछकर ठगी कर रहे थे। लोग जागरूक हुए तो उन्होंने ऐसे फोन कॉलों पर सतर्कता बरतनी शुरू कर दी। अब जालसाज ठगी का तरीका बदल रहे हैं। अब मोबाइल पर व्हाट्स अप पर लिंक आता है, फिर अनजान नम्बर से काॅल आती है। कॉलर खुद को बैंक का अधिकारी बताकर लिंक पर​ क्लिक करने को कहता है। अगर आप सतर्क नहीं हैं और आप उस लिंक पर क्लिक करते हैं तो आपका बैंक खाता साफ हो सकता है। अब तो ऐसे मैसेज की भरमार है, आप का इतने हजार का पुरस्कार निकला है, आप इस लिंक पर जाइये। डे​बिट कार्ड आपकी जेब में होता है लेकिन उस पर खरीददारी सिंगापुर या किसी अन्य देश में हो जाती है। आपको मिलता है सिर्फ मैसेज।


डिजिटल लेंडिंग प्लेटफार्म्स और मोइबाइल ऐप्स के जरिये बिना किसी दस्तावेज के झटपट लोन देने के नाम पर धोखाधड़ी की जा रही है। लोगों को मौत के मुंह में धकेला जा रहा है। मोबाइल ऐप्स के जरिये फटाफट लोन लेने वाले तीन लोगों द्वारा आत्महत्या किए जाने के बाद हैदराबाद पुलिस ने जब जांच-पड़ताल की तो मामले की गहराई का पता चला। पुलिस ने कुछ लोगों को गिरफ्तार कर कम्पनी के 75 खातों को फ्रीज किया है, इनमें 423 करोड़ रुपए जमा हैं। रिजर्व बैंक आैर पुलिस बार-बार लोगों को आगाह करते रहते हैं लेकिन लोग फिर भी लापरवाही बरतते हैं। हैदराबाद का मामला 30 ऐसी मोबाइल एप्स से जुड़ा हुआ है जो लोगों को 35 फीसदी ब्याज पर लोन देने की बात करता था। लोग अपनी जरूरतों को पूरा करने के ​िलए फटाफट लोन ले भी लेते थे। 35 फीसदी ब्याज दर का अर्थ तीन महीने में पैसे दोगुना होना है।
जब लोग समय पर किश्त नहीं चुकाते तो यह मोबाइल एप्स कर्जदारों को डराते-धमकाते थे। कर्जदारों के ​परिवारों को तंग करते थे और यहां तक कि उनके दोस्तों तक को परेशान किया जाता था। इन धमकियों और उत्पीड़न से परेशान होकर जब तीन लोगों ने आत्महत्या कर ली तो यह मामला सामने आया। इस मामले में पुलिस ने अवैध तरीके से लोन देने का धंधा चलाने वाले गिरोह के सरगना को गिरफ्तार कर लिया है। क्रेडिट कम्पनियों के नाम पर फर्जीवाड़ा करने के लिए हैदराबाद और गुरुग्राम में कॉल सेंटरों में एक हजार के लगभग कालेज ग्रेजुएट युवा काम कर रहे थे। फटाफट लोन लेने के लिए छोटे कारोबारी, छोटे दुकानदार हर समय लालायित रहते हैं। ऐप्स कम्पनियां इसी का फायदा उठा रही हैं। इन कम्पनियों के जाल में सबसे ज्यादा युवा फंस रहे हैं, जो अपनी छोटी-मोटी जरूरतें पूरा करने के लिए इन ऐप्स का सहारा लेते हैं। ऐसी ऐप्स कम्पनियों को विदेशों से संचालित किया जाता है। चिंता की सबसे बड़ी बात तो यह है कि भारत में डिजिटल लैंडर्स के लिए कोई रेगुलेशन नहीं है। इन ऐप्स के जरिये यह भी पता नहीं चलता कि उनका स्ट्रक्चर क्या है? इंडस्ट्री से जुड़े लोगों का कहना है कि डिजिटल लेंडिंग स्पेस में कई चीन ऐप सक्रिय हैं जो लोन लेने वालों के व्यक्तिगत डाटा के सहारे उन्हें प्रताड़ित करते हैं। यह इकाइयां कई तरीकों से पैसा जुटाती हैं, इनमें अधिकतर धन व्यक्तिगत तौर पर जुटाए गए होते हैं, इन्हीं पैसों को सात से पन्द्रह दिनों के लिए अत्यधिक ब्याज पर लोगों को लोन के तौर पर बांटा जाता है। लोन की रकम तीन हजार से लेकर 50 हजार के बीच होती है। इन पर ब्याज की दर काफी ऊंची होती है। आमतौर पर रेगुलर माइक्रोफाइनैंसिंग के लिए ब्याज दर 20 से 25 फीसदी के बीच होता है, बैंक लोन तो 7 से 12 फीसदी तक होता है।

ये ऐप्स लोगों को अपने जाल में फंसाने के लिए कई तरह के हथकंडे अपनाते हैं, जैसे पब्लिक प्लेस पर विज्ञापन देना, बल्क में ईमेेल और मैसेज करना। लोन लेने से पहले डॉक्युमेंट और केवाईसी प्रक्रिया का पालन करना अनिवार्य होता है लेकिन इस ऐप्स को डाउन लोड करने और लोन के लिए अप्लाई करने के कुछ मिनट में भी पैसे मिल जाते हैं। हैरानी की बात तो यह है ​कि ये ऐप लोन लेने वालों की इनकम संबंधी कोई जानकारी नहीं लेता। दोनों पक्षों में बस इस बात की सहमति होती है कि कुछ सप्तह में ब्याज के साथ इस रकम को चुका दिया जाएगा। इनका खेल लोन डिफाल्ट होने पर शुरू होता है। जो लोग फंसे हुए होते हैं, वह मूल रकम से कहीं ज्यादा इन्हें लौटा देते हैं। इसी वर्ष नवम्बर में गूगल ने अपने प्ले स्टोर से ऐसे 5 ऐप को हटाया था। पहले तो आरबीआई के संज्ञान में ही नहीं था कि ऐप्स कर रही है लेकिन फ्रॉड के मामले सामने आने पर आरबीआई भी सतर्क हो गया है। उसने बैंकों और गैर बैंकिंग वित्तीय संस्थानों को कहा है कि डिजिटल प्लेटफार्म के जरिये उधार देने के ​लिए नियमों का पालन करें। आरबीआई को ऐसी धोखाधड़ी रोकने के लिए ठोस रेगुलेशन बनाने चाहिएं ताकि ऐसी ऐप्स काम ही नहीं कर सके, अन्यथा यह फर्जी कम्पनियां लोगों का शोषण करती रहेंगी और लोग आत्महत्याएं करने को विवश होंगे।


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