सम्पादकीय

सत्ता का दुरुपयोग: महाराष्ट्र सरकार ने बदले की भावना से अर्नब को गिरफ्तार कर कीं शर्मनाक की सारी हदें पार

Gulabi
5 Nov 2020 2:13 PM GMT
सत्ता का दुरुपयोग: महाराष्ट्र सरकार ने बदले की भावना से अर्नब को गिरफ्तार कर कीं शर्मनाक की सारी हदें पार
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कोई सरकार और उसकी पुलिस किसी के खिलाफ बदले की भावना के तहत कार्रवाई करने के लिए किस तरह सारी हदें पार कर सकती है

जनता से रिश्ता वेबडेस्क। कोई सरकार और उसकी पुलिस किसी के खिलाफ बदले की भावना के तहत कार्रवाई करने के लिए किस तरह सारी हदें पार कर सकती है, इसका शर्मनाक उदाहरण है रिपब्लिक टीवी के प्रधान संपादक अर्नब गोस्वामी की गिरफ्तारी और इस दौरान उनके साथ की गई मारपीट। चूंकि महाराष्ट्र सरकार और पुलिस उन्हें सबक सिखाने पर आमादा थी, इसलिए एक पुराने मामले को नए सिरे से जांच के लिए खोला गया और फिर उन्हेंं एक अपराधी की तरह गिरफ्तार कर लिया गया। इस पुलिसिया कार्रवाई ने यही बताया कि सत्ता में बैठे लोग किसी के पीछे पड़ जाएं तो पुलिस भी उनकी निजी सेना की तरह काम करना पसंद करती है। यह किसी से छिपा नहीं कि महाराष्ट्र सरकार और मुंबई पुलिस एक अर्से से अर्नब से खुन्नस खाए हुए है। वह उन्हेंं और उनके साथियों को हरसंभव तरीके से तंग करने में लगी हुई है। इसके लिए न तो छल-कपट का सहारा लेने में संकोच किया जा रहा है और न इसकी परवाह की जा रही है कि इससे सरकार के साथ पुलिस की भी फजीहत होगी।

अर्नब की गिरफ्तारी से ज्यादा आपत्तिजनक उसका तरीका है। यह मानने के अच्छे-भले कारण हैं कि जब कथित टीआरपी घोटाले से सरकार और पुलिस को मनमानी करने में मुश्किल हुई तो फिर बंद किए जा चुके पुराने मामले का सहारा लिया गया।

अर्नब जिस तरह की टीवी पत्रकारिता करते हैं, वह कुछ लोगों को पसंद नहीं। वास्तव में उनकी पत्रकारिता की शैली से तमाम लोगों की असहमति हो सकती है और है भी, लेकिन क्या इस कारण किसी सरकार को उन्हेंं प्रताड़ित करने का अधिकार मिल जाता है? यदि यही लोकतंत्र है तो फिर फासीवाद किसे कहते हैं? इस सवाल का जवाब राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी न सही, कांग्रेस को अवश्य देना चाहिए, जो महाराष्ट्र की सत्ता में साझीदार है और आए दिन यह कहती रहती है कि देश में आपातकाल सी स्थिति है और बोलने की आजादी खतरे में पड़ गई है। महाराष्ट्र में सत्ता का नग्न दुरुपयोग तो आपातकाल की ही याद दिला रहा है।

यह देखना दयनीय ही नहीं, लज्जाजनक भी है कि अर्नब की गिरफ्तारी पर वामपंथियों, कथित उदारवादियों और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का झंडा उठाने वाले या तो चुप्पी साध गए या फिर किंतु-परंतु की आड़ में उसे जायज ठहरा रहे हैं। ये वही लोग हैं जो अपने किसी साथी के खिलाफ एक रिपोर्ट भी दर्ज हो जाने पर आसमान सिर पर उठा लेते हैं, लेकिन अब ऐसा व्यवहार कर रहे हैं जैसे कुछ हुआ ही न हो। समय ऐसे छद्म तत्वों की तटस्थता का अपराध लिखे या नहीं, उनके मौन की अनदेखी नहीं की जा सकती।

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