सम्पादकीय

लापता बच्चे

Subhi
24 May 2022 5:00 AM GMT
लापता बच्चे
x
देश भर में गुम हो जाने वाले बच्चों को लेकर लंबे समय से चिंता जताई जा रही है। अमूमन हर साल गायब हुए बच्चों के आंकड़े सामने आते हैं, इससे संबंधित रिपोर्ट पेश की जाती है, इस समस्या के अलग-अलग पहलुओं पर चर्चा होती है और फिर कुछ समय बाद इस मसले पर एक विचित्र शांति छा जाती है।

Written by जनसत्ता: देश भर में गुम हो जाने वाले बच्चों को लेकर लंबे समय से चिंता जताई जा रही है। अमूमन हर साल गायब हुए बच्चों के आंकड़े सामने आते हैं, इससे संबंधित रिपोर्ट पेश की जाती है, इस समस्या के अलग-अलग पहलुओं पर चर्चा होती है और फिर कुछ समय बाद इस मसले पर एक विचित्र शांति छा जाती है। ऐसा लगता है कि शासन से लेकर समाज तक लापता बच्चों की समस्या को लेकर सहज हो जाता है।

जबकि जिस घर से कोई बच्चा गुम हो जाता है, उसमें पसरे दुख का बस अंदाजा ही लगाया जा सकता है। गायब हो गए बच्चों को किन त्रासद हालात से गुजरना पड़ता है, इसकी कल्पना भी किसी भी संवेदनशील इंसान को दहला देगी। इस समस्या को लेकर सरकार और संबंधित महकमों के रुख और उनकी कार्यशैली कैसी रही है, इसे समझना बहुत मुश्किल नहीं है। हर अगले साल लापता होने वाले बच्चों के आंकड़ों में इजाफा बताता है कि इस त्रासदी के प्रति सरकारों और प्रशासन ने एक तरह से अनदेखी की मुद्रा अख्तियार कर रखी है।

गैरसरकारी संगठन 'क्राई' की 'लापता बच्चों पर स्थिति रिपोर्ट' में एक बार फिर ऐसे बच्चों को लेकर जो आंकड़े और तथ्य सामने आए हैं, वे यह बताने के लिए काफी हैं कि तमाम चिंताओं के बावजूद यह समस्या विकराल और जटिल होती जा रही है। रिपोर्ट के मुताबिक, उत्तर भारत के चार प्रमुख राज्यों में बच्चों के लापता होने का मामलों में काफी बढ़ोतरी हुई है। 2021 में मध्यप्रदेश में हर रोज औसतन उनतीस और राजस्थान में चौदह बच्चे लापता हुए। इसके अलावा, दिल्ली के आठ पुलिस जिलों में इसी साल हर दिन पांच बच्चे गायब हुए।

उत्तर प्रदेश के अट्ठावन जिलों में प्रतिदिन औसतन आठ बच्चे लापता हो गए। एक त्रासद तथ्य यह है कि मध्यप्रदेश और राजस्थान में लापता हुए बच्चों में लड़कियों की संख्या लड़कों की तुलना में पांच गुना अधिक है। पूरे देश में कमोबेश यही हालत है। सरकारों की ओर से हर अगले रोज यह दावा किया जाता है कि वह कानून-व्यवस्था में सुधार और आम लोगों की सुरक्षा के मोर्चे पर आधुनिक तकनीकों के माध्यम से पहले के मुकाबले ज्यादा शिद्दत से काम कर रही है। लेकिन हकीकत इसके उलट दिखती है। राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो के आंकड़ों के मुताबिक 2020 के मुकाबले 2021 में ज्यादा बच्चे गुम हो गए। सवाल है कि यह सुधार की किस तस्वीर को रेखांकित करता है!

यह अंदाजा लगाना मुश्किल नहीं है कि लापता हो गए बच्चों को किस त्रासदी का सामना करना पड़ता है। मानव तस्करी के दायरे में कैसी की वीभत्सताएं पलती हैं और उसमें गायब करके लाए गए बच्चों को किस तरह झोंका जाता है, इसकी सच्चाई भी अक्सर सामने आती रही है। क्राई की रिपोर्ट में ही यह बताया गया है कि लड़कों के मुकाबले पांच गुना ज्यादा लड़कियां लापता हुर्इं।

यह कोई छिपा तथ्य नहीं है कि मानव तस्करों के जाल में फंसाई गर्इं बच्चियों को कैसे देह-व्यापार की आग में झोंक दिया जाता है। ज्यादातर बच्चे भीख मांगने, घरेलू नौकर के रूप में काम करने और अन्य जगहों पर बाल मजदूरी करने से लेकर दूसरे अमानवीय हालात में फंस जाते हैं। उन्हें यौन शोषण के अड्डों या अंगों के कारोबारियों को भी बेच दिया जाता है। इस संबंध में सुप्रीम कोर्ट ने भी सरकारों को कई मौकों पर फटकारा है और इस समस्या पर काबू पाने के लिए तंत्र बनाने का निर्देश दिया है। लेकिन ऐसा लगता है कि सरकारों की प्राथमिकता सूची में यह समस्या कोई महत्त्व नहीं रखती!


Next Story