- Home
- /
- अन्य खबरें
- /
- सम्पादकीय
- /
- सेवा में बदइंतजामी

Written by जनसत्ता; शारीरिक रूप से अक्षम लोग किसी भी तरह से खुद को हीन न समझें और उनके विशेष गुणों का समाज को लाभ मिल सके, इसलिए दिव्यांगों के सम्मान की रक्षा के लिए कानूनी प्रावधान हैं। उन्हें सार्वजनिक वाहनों में यात्रा करते समय विशेष सुविधाएं उपलब्ध कराना जरूरी है। इसीलिए हर सार्वजनिक भवन में सीढ़ियों आदि की बनावट उनकी सुविधा को ध्यान में रखते हुए तय की जाती है।
दिल्ली में नीची सतह वाली बसें इसी मकसद से चलाई गई थीं कि उनमें चढ़ने-उतरने में दिव्यांगजनों को किसी प्रकार की असुविधा न हो। मगर इन सबके बीच रांची से हैदराबाद जा रही इंडिगो विमान सेवा में एक दिव्यांग को यात्रा करने की अनुमति न देना स्वाभाविक ही विवाद का विषय बन गया। हालांकि इस घटना के बाद इंडिगो के प्रबंधन ने माफी मांगी और उस दिव्यांग किशोर को एक विद्युत चालित पहिएदार कुर्सी भेंट करने की पेशकश की है। इंडिगो प्रबंधन का कहना है कि वे चाहते थे कि उस परिवार को सफर करने दिया जाए, मगर वह किशोर विमान में चढ़ने को लेकर इस कदर घबराया हुआ था कि उन्हें रोकना पड़ा। मगर इस तर्क से नागरिक उड््डयन नियामक प्राधिकरण यानी डीजीसीए संतुष्ट नहीं है और उसने संबंधित घटना की जांच के आदेश दे दिए हैं।
अक्सर पहली बार हवाई यात्रा करने वालों में घबराहट देखी जाती है। संभव है, संबंधित किशोर कुछ अधिक ही घबराया रहा हो। हालांकि ऐसी स्थिति इंडिगो प्रबंधन के सामने नई नहीं होनी चाहिए थी। ऐसी स्थिति से निपटने के लिए विमानन सेवाओं के कर्मी अनेक तरह के उपाय अपनाते और मुसाफिर को सामान्य अवस्था में लाने का प्रयास करते हैं।
हो सकता है कि संबंधित किशोर में हवाई यात्रा का भय अधिक पैदा हो गया हो और यात्रा के दौरान उसके विमान संचालन में बाधा पैदा करने की आशंका हो, इसलिए प्रंबंधन ने उसे जहाज में चढ़ने से रोक दिया। पर यह जांच का विषय है कि इंडिगो कर्मियों ने संबंधित किशोर को सामान्य अवस्था में लाने, उसका भय दूर करने के क्या उपाय आजमाए। हो सकता है, विमान कर्मियों की बात सही हो कि वे किसी भी तरह संबंधित परिवार को यात्रा करने की अनुमति देना चाहते थे। पर इसके बावजूद इंडिगो कर्मियों की दक्षता और विमान सेवा की साख पर सवालिया निशान तो लगता ही है।
यह छिपी बात नहीं है कि दिव्यांगों के प्रति हमारे समाज का नजरिया प्राय: तंग है। जन जागरूकता संबंधी तमाम प्रयासों के बावजूद आज भी ऐसे लोगों को समाज से वह सम्मान नहीं मिल पाता, जिसकी अपेक्षा की जाती है। अगर कहीं कुछ लोगों के प्रति सम्मान दिखता भी है, तो उसमें दया का ही भाव अधिक होता है। इसलिए पूरी संभावना है कि इंडिगो कर्मियों का संबंधित किशोर के प्रति वही नजरिया रहा हो।
समझ से परे है कि अगर एक विमान कंपनी इस तरह के लोगों को सफर करने से रोकेगी, तो उन्हें ऐसे हालात में कहीं जाने का क्या इंतजाम करना चाहिए, जहां जल्दी पहुंचना हो। इंडिगो के इस वाकये ने एक बार फिर से दिव्यांगों की सुविधाओं के मद्देनजर सोचने को विवश किया है। केवल नियम-कायदों में दिव्यांगों की सुविधाओं का ध्यान रखने का उल्लेख कर देने भर से बात नहीं बनेगी, जब तक उनकी सेवा में तैनात लोगों का नजरिया नहीं बदलेगा। ऐसे में क्यों नहीं दिव्यांग लोगों की सेवा में अलग से प्रशिक्षित लोगों को तैनात किया जाना चाहिए?