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भारत सरकार का यह रुख पहले से ही साफ है
By NI Editorial
अगर भारत सरकार को अपनी छवि की फिक्र है, तो उसे अपने आत्म निरीक्षण करना चाहिए? उसे सोचना चाहिए कि तमाम वैश्विक रिपोर्टों से लोकतंत्र, धार्मिक एवं प्रेस स्वतंत्रता, मानव विकास आदि के पैमानों पर आज भारत की खराब छवि क्यों सामने आती है?
भारत सरकार का यह रुख पहले से ही साफ है। अगर कोई उसकी किसी गलती या नाकामी की तरफ इशारा करे, तो उसका जवाब देने के बजाय दूसरे पक्ष के किसी अंधकारमय पक्ष की चर्चा से उसे घेरने की कोशिश की जाए। यही रुख धार्मिक स्वतंत्रता की स्थिति के बारे में अमेरिका के विदेश मंत्रालय की रिपोर्ट पर एक बार फिर उभर कर सामने आया है। अमेरिका में बंदूक हिंसा है, रंगभेद है। ये बातें बिल्कुल ठीक हैं। इन्हें चर्चा में लाकर लोकतंत्र, मानव अधिकार या धार्मिक स्वंतत्रता जैसे विषय पर अमेरिका के नैतिक अधिकार को चुनौती देने का भी औचित्य हो सकता है। आखिर अब चीन भी यही कर रहा है। इसके बावजूद हकीकत यह है कि अमेरिका में मानव अधिकारों के हनन की कहानी बता देने से विश्व जनमत की निगाह में चीन बरी नहीं हुई है। उसी तरह अगर भारत सरकार समझती है कि अमेरिका को आईना दिखा देने से विश्व जनमत का ध्यान उससे जुड़े मुद्दों से हट जाएगा, तो इसे उसका भ्रम ही कहा जाएगा।
अतीत की तरह आज भी यही सच है कि मानव अधिकार हनन जैसी रिपोर्टों से किसी देश की अंदरूनी स्थिति को सुधारने में कोई खास मदद नहीं मिलती। इसके लिए लड़ाई तो उसी देश के लोगों को लड़नी होती है, जहां ये समस्या है। फिर भी दुनिया की चेतना आज जिस स्तर तक पहुंच चुकी है, उसमें ऐसी घटनाएं संबंधित देश के सत्ताधारियों की छवि पर असर डालती हैं, भले छवि बिगड़ने से उनकी सत्ता पर ज्यादा फर्क ना पड़े। तो मुद्दा यह है कि अगर भारत सरकार को अपनी छवि की फिक्र है, तो उसे अपने आत्म निरीक्षण करना चाहिए? उसे सोचना चाहिए कि तमाम सरकारी या गैर-सरकारी वैश्विक रिपोर्टों से लोकतंत्र, प्रेस स्वतंत्रता, मानव विकास आदि के पैमानों पर आज भारत की खराब छवि क्यों सामने आती है? अगर उसे छवि की चिंता नहीं है, तो फिर बेशक वह रिपोर्ट तैयार करने वाली तमाम संस्थाओं और अमेरिका जैसे देशों को आईना दिखाने की रणनीति पर आगे बढ़ सकती है। बहरहाल, ये बात ध्यान में रखने की है कि सच को ना हमेशा के लिए दबाया जा सकता है और ना उसे छिपाना संभव है।

Gulabi Jagat
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