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- दर्पणतोड़ सियासत

हिमाचल में दर्पणतोड़ प्रतियोगिता में फंसी राजनीति को शायद यह भ्रम है कि यहां एक दूसरे पर कीचड़ फेंक कर उज्ज्वल हुआ जा सकता है। इसे हम सियासी रंगड़ भी मान सकते हैं, जो काटने को दौड़ रहे हैं। विरोध की अति में भी शब्दावली की शालीनता का अर्ज किया है, अगर गुस्सैल रहे या सत्ता की चमक में विपक्ष की आवाज न सुनी जाए, तो यह खतरनाक चारित्रिक रिसाव है। दुर्भाग्यवश मुख्यमंत्री और नेता प्रतिपक्ष के बीच राजनीतिक असहजता अब व्यक्तिगत आक्षेप के अंतहीन सिलसिले तक पहुंचती हुई दिखाई देती। हम ऐसा करते हुए एक सभ्य, अति शिक्षित और जवाबदेह समाज की तौहीन भी कर जाते हैं और अगर पक्ष-प्रतिपक्ष की तू तू-मैं मैं से गली का नजारा मंचों पर पहंुच गया तो आम कार्यकर्ताओं की भाषा कैसी होगी। मुख्यमंत्री के खिलाफ टिप्पणियांे की कुछ तो सीमा रेखा होनी चाहिए और जब व्यक्तिगत होंगे तो सरकारी कोठी से सरकारी हेलिकाप्टर तक के विवाद में जगहंसाई भी होगी। विपक्ष का काम पूछना है और ऐन चुनाव के वक्त टिप्पणियां घातक होंगी, लेकिन व्यक्तिगत होने से सियासत के संदर्भ बदल जाएंगे। हालांकि मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने अपनी सत्ता के तहत ्रिवपक्ष की प्रताड़ना जैसा कोई उदाहरण नहीं दिया है, फिर भी नेता प्रतिपक्ष मुकेश अग्निहोत्री के साथ उनके शाब्दिक आदान-प्रदान हमेशा सरहदों पर रहे हैं। इससे पूर्व वीरभद्र बनाम धूमल के बीच व्यक्तिगत रंजिश ने न केवल राजनीति को नीचा दिखाया, बल्कि सत्ता की कार्रवाइयों में आपसी विद्वेष की फांस भी रही। क्या हम पुनः इसी आंच पर चलते हुए राजनीतिक चरित्र को देख रहे हैं या यह दौर सिर्फ किस्सागोई में सिमटा रहेगा। जो भी हो कुछ सीमाओं का उल्लंघन दोनों तरफ से हो रहा है। मुख्यमंत्री की 'नाटी' या उसके बाद 'जोइया मामा' के उद्घोष पर ऐसी ही छेड़खानी हुई, लेकिन अब सरकारी संपत्ति से होते हुए बात अगर खानदान तक पहुंचती है, तो इस युद्ध से आम जनता के कान भी डरेंगे। बेशक चुनावी मौसम में विपक्ष के पास मसाला अधिक होगा और पड़ताल के दस्तावेज भी सामने आएंगे, लेकिन इसकी गंभीरता नष्ट नहीं होनी चाहिए। मिशन रिपीट को रिवाज बदलने की कसरत बनाने की परिपाटी में, सत्ता को अपने व्यावहारिक, सांस्कृतिक, सामाजिक और राजनीतिक संतुलन भी पेश करने होंगे। व्यक्तिगत आक्षेप तो एक तरह से कीचड़ में उतरना है और इसका कोई अंत नहीं कि कहां तक कोई धंस सकता है
सोर्स- divyahimachal
