सम्पादकीय

आईना और आत्ममंथन

Gulabi
2 Nov 2020 11:48 AM GMT
आईना और आत्ममंथन
x
अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव के लिए बहस के दौरान डोनाल्ड ट्रंप ने प्रदूषण पर भारत व चीन-रूस को लेकर अप्रिय संवाद किया

जनता से रिश्ता वेबडेस्क। छवि सुधारने को हो बड़ी पहल: हाल ही में अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव के लिए बहस के दौरान डोनाल्ड ट्रंप ने प्रदूषण पर भारत व चीन-रूस को लेकर अप्रिय संवाद किया। उन्होंने कहा कि इन देशों में हवा-पानी साफ नहीं है। हालांकि, उनका बयान चुनाव में रिपब्लिकन सरकार की उपलब्धियों को दर्शाने का अविवेकपूर्ण प्रयास था, लेकिन यह बयान हमें आत्ममंथन को विवश करता है। दरअसल, वैसे तो ट्रंप इस कवायद के जरिये अपनी पर्यावरण संबंधी नीतियों की विफलता का बचाव ही कर रहे थे, जिसकी कीमत उन्हें आगामी राष्ट्रपति चुनाव में उठानी पड़ सकती है। दरअसल, बड़ी संख्या में प्रवासी भारतीय डेमोक्रेट की तरफ उन्मुख हो रहे हैं। हालांकि, उनका यह बयान प्रवासी भारतीयों और भारत के लोगों को नागवार गुजरा, मगर हमें अपना घर साफ रखने का प्रयास तो करना ही होगा। वैसे तो भारत ने जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को कम करने के लिए अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर रचनात्मक भूमिका का निर्वहन किया है। भारत का इस दिशा में महत्वपूर्ण योगदान है जबकि अमेरिका की निरंकुश औद्योगिक नीति से जलवायु परिवर्तन पर घातक प्रभाव पड़ा है। इसके बावजूद भारत को अपनी अंतर्राष्ट्रीय छवि को सुधारने की दिशा में गंभीर पहल करनी चाहिए। विदेशी निवेश को आकर्षित करने की भी यह अनिवार्य शर्त है।  विदेशी निवेशकों को निवेश के लिये हम तभी आमंत्रित कर सकते हैं जब भारत में नये उद्यमों के लिये वातावरण और औद्योगिक परिवेश अंतर्राष्ट्रीय मानकों के अनुरूप हो। सही मायनों में ट्रंप के बयान को उनकी राजनीतिक मजबूरी के तौर पर देखा जाना चाहिए, मगर उनका बयान हमारे लिये प्रेरणा का काम करने वाला हो। नीति-नियंताओं के लिये यह जागने का वक्त है। टुकड़ों में नीतियां बनाने के बजाय प्रदूषण व स्वच्छ जल के लिये समग्रता के साथ नीति बनाने की जरूरत है। कड़े कानून बनाने से भी समस्या का समाधान संभव नहीं है। समस्या को जमीनी स्तर पर देखने की जरूरत है। नीति-नियंता देश के नागरिकों को साफ हवा-पानी उपलब्ध कराने को अपनी प्राथमिकता बनायें। हमारी कोशिश हो कि दुनिया के प्रदूषित देशों की सूची में हमारी गिनती अधिक समय तक नहीं हो। देश को विकास तो चाहिए, मगर प्रदूषण मुक्त होना चाहिए। अक्तूबर-नवंबर में देश में चरम पर पहुंचने वाले प्रदूषण को लेकर नीति-नियंताओं का ढुलमुल रवैया शर्मसार करने वाला है। एक नागरिक के रूप में भी हम जिम्मेदारी का निर्वहन नहीं कर रहे हैं। तमाम सरकारी प्रलाप के बावजूद इस बार पराली जलाने की संख्या में तेजी आई है। इस दिशा में व्यावहारिक नीति बनाकर जीवन के लिये स्वच्छ हवा-पानी के लिये युद्ध स्तर पर प्रयास और देश में प्रदूषण और सफाई को लेकर नई दृष्टि विकसित करने की जरूरत है। ये देश के नागरिकों के स्वास्थ्य की दृष्टि से भी बेहद महत्वपूर्ण हैं। खासकर कोरोना काल में सरकार व समाज के स्तर पर अतिरिक्त सावधानी बरते जाने की जरूरत है।

Next Story