सम्पादकीय

गुजरात जाएंट्स को चमत्‍कार का इंतजार, बंगाल वारियर्स की संभावनाएं खत्‍म

Gulabi
13 Feb 2022 6:24 AM GMT
गुजरात जाएंट्स को चमत्‍कार का इंतजार, बंगाल वारियर्स की संभावनाएं खत्‍म
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इनमें से पवन सेहरावत की बुल्स ने खुद ही खुद के लिए मुश्किलें बढाई हैं
22 दिसंबर से शुरू हुआ, प्रो-कबड्डी के सीजन आठ का सफर अब मुकम्मल होने को है. पटना पायरेट्स की शक्ल मे लीग को प्लेऑफ का पहला आधिकारिक क्वालीफायर भी मिल गया है. तीन बार खिताब जीत चुकी पटना पायरेट्स टॉप 6 मे पहुंच चुकी है, तो तेलुगू टाइटन्स इस दौड से बाहर होने वाली पहली टीम बन गई है. पिछली दफा के चैंपियन बंगाल वारियर्स अभी 11 वे नंबर पर हैं और तकनीकी तौर पर भले ही लीग से बाहर न हुए हों, लेकिन हकीकत मे वारियर्स और थलाईवाज़ की संभावनाए भी अब खत्म हो चुकी हैं. गुजरात जाएंट्स को चमत्कार की जरूरत है, यानि बचे हुए चारों मैच उन्‍हें जीतने होंगे. इस तरह 12 मे से 4 टीमों की किस्मत तकरीबन लिख दी गई है. गुजरात को अभी यूपी योद्धा, पुणेरी पलटन, तलाईवाज़ और यू मुंबा से खेलना है. जाहिर है, चारों टीमों को लगातार हराना उसके लिए टेढ़ी खीर है.
ऐसे मे अब आठ टीमें बचती हैं, और प्ले ऑफ मे इनमें से पांच को और पहुंचना है. दबंग दिल्ली अभी 65 पॉइंट्स के साथ दूसरे नंबर पर है और उसके तीन मैच बाकी हैं. भले ही इस टीम ने औपचारिक तौर पर क्वालीफाई नही किया हो, लेकिन प्ले ऑफ खेलना इसका तय है. हरयाना स्टीलर्स के भी तीन मैच बाकी है, और दो जीत या एक जीत और एक टाई के साथ यह भी अंतिम 6 के दरवाजे पर दस्तक दे रही है, हालांकि इसके बचे हुए तीनों मुकाबले मे एक भी आसान नहीं है, आज रात इसे यू मुंबा से खेलना है, फिर बुल्स और आखिर मे पटना पायरेट्स के साथ. बाकी तीन स्लॉटस के अब भी 5 दावेदार हैं. यूपी योद्धा, बेंगलूरू बुल्स, यू मुंबा, पुणेरी पलटन और जयपुर पिंक पेंथर्स.
इनमें से पवन सेहरावत की बुल्स ने खुद ही खुद के लिए मुश्किलें बढाई हैं, सबसे पहले प्लेऑफ के दरवाजे पर दस्तक देती यह टीम लीग के दूसरे दौर मे बेहद कमजोर प्रदर्शन कर रही है, और पिछले करीब 9 मैच मे इसे सिर्फ 2 जीत मिली है. बड़ी बात यह कि इस टीम को अब जो बाकी तीन मैच खेलने है, वह बेहद तगड़े होंगे, क्योंकि सामने जयपुर पिंक पेंथर्स, पटना पायरेट्स और हरयाना स्टीलर्स होंगे. बुल्स अभी पांचवी पायदान पर हैं, लेकिन अब तीन मे से कम से कम दो मैच जीतना उनके लिए आसान काम नहीं होगा. योद्धा चौथे नंबर पर हैं और तीन मैच बाकी हैं, जबकि यू मुंबा, पुणेरी पलटन और जयपुर पिंक पेंथर्स को चार-चार मैच और खेलने हैं. कुल मिलाकर लीग अब जिस दौर मे हैं इन टीमों के लिए एक गलती या एक शिकस्त पूरे सफर की मेहनत पर पानी फेर सकती है.
सीजन आठ मे एक और बात खास उभरकर आई है. इंडिविजुअल ब्रिलियंट पर निर्भर रहने वाली टीमें शुरुआत तो अच्छा कर सकती हैं, लेकिन लंबे सफ़र मे उन्‍हें आम तौर पर परेशानी होती है. वहीं जो टीमें एक यूनिट की तरह नजर आईं, उन्होंने प्रभावित किया. इनमें पटना पायरेट्स भी फेहरिस्त है, और बाद मे राकेश कुमार की हरियाणा स्टीलर्स और अनूप कुमार की पुणेरी पलटन का शुमार है. तमिल तलाईवाज़ हो सकता है इस बार भी प्ले ऑफ चूक जाएं, लेकिन लीग के इतिहास मे यह उनका अब तक का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन है, वजह यह की टीम मे सुरजीत के अलावा बाकी नए खिलाड़ी हैं.
यह टीम इससे पहले लगातार निचले पायदान पर खड़ी रही है. सागर ने डिफेंस को चाक चौबंद कर दिया, और डिफेनडर्स की फेहरिस्त मे फासले के साथ सबसे ऊपर बने रहे. रेडिंग मे मंजीत थोड़ा नियमित चले और अजिंक्य पवार ने बाद के कुछ मुकाबलों मे हालात संभाले. डिफेंस मे अगर सुरजीत आखिरी कुछ मैचों मे आउट ऑफ फॉर्म नहीं हुए होते तो कोच उदय कुमार की टीम इस बार निश्चित तौर पर प्ले ऑफ मे होती.
टाइटन्स इस सीजन सिद्धार्थ बाहुबली देसाई और रोहित के अतीत पर निर्भर थे. लेकिन दो मैचों के बाद ही सिद्धार्थ की पुरानी कंधे की चोट उभर आई, और वह खेल ही नही पाए, जबकि रोहित पूरे सीजन घुटने की चोट से परेशान रहे. टाइटन्स का क्या हश्र हुआ, वह हम सबने करीब से देखा. यही नहीं पिछली बार के चैंपियन बेंगाल वारीयर्स की कहानी भी जुदा नहीं है. रेडिंग मे यह टीम पूरी तरह कप्तान मनिन्दर सिंह पर निर्भर थी, मनिन्दर ने निराश भी नहीं किया. लीग मे पवन सेहरावत के बाद सबसे ज्यादा पॉइंट्स उन्ही के नाम हैं. लेकिन अकेला चना भांड नहीं फोड़ सकता.
रिशंक देवादिगा को मौके मिले नहीं, सुकेश हेगड़े चले नहीं, नबीबक्श थोड़े बहुत पॉइंट्स ला सके, मनोज गौड़ा, रोहित, आकाश और रवींद्र कुमावत रेडर के तौर पर टीम मे शामिल होने की सिर्फ औपचारिकता निभाते रहे. डिफेंस रण सिंह के आने के बाद थोड़ा सक्रिय हुआ, अन्यथा रिंकू नरवाल की चोट के बाद से लेफ्ट कॉर्नर पर परेशानियां कायम रहीं. सचिन विट्टला एक दो मैचों मे तो चले, लेकिन निरन्तरता नहीं दिखा सके. कवर्स पर तमाम विकल्प इस टीम ने आजमाए, वहीं अबूज़ार मेघानी इकलौते प्लेयर थे जो डिफेंस मे लगातार खेले, लेकिन औसत ही बने रहे.
बुल्स अभी भी प्ले ऑफ मे पहुंच सकते हैं लेकिन यहां भी पवन सेहरावत के लिए सपोर्ट की कमी देखी गई. हालात ऐसे भी रहे, कि पवन का नाम अगर सबसे ज्यादा पॉइंट्स लेने वाले रेडर्स की फेहरिस्त मे टॉप पर था, तो मैट के बाहर भी सबसे ज्यादा समय बिताने वाले रेडर्स मे भी वह टॉप पर ही रहे. 40 मिनट के मुकाबले मे पवन औसत 17 मिनट बाहर रहे. वजह साफ कि उन्‍हें आउट होने के बाद रिवाइव कराने वाला रेडर टीम मे नही था. चंद्रन रंजीत और दीपक नरवाल ने कमोबेश निराश किया. नए रेडर भरत ने थोड़ा बहुत सपोर्ट जरूर दिया, लेकिन वह पर्याप्त नहीं था.
टीम का डिफेंस भी बेहद अनियमित रहा, कभी चला तो जमकर अन्यथा डिफेंस की वजह से ही टीम मुकाबला हार गई. एक बात और पवन के डिफेंस मे बेहतर करने की चाहत ने भी टीम को एक दो मौकों पर निराश किया. आखिरी लम्हों मे पवन की गलती से टीम को शिकस्त भी झेलनी पड़ी.
सीजन शुरू होने से पहले चर्चा थी कि पटना पायरेट्स बिना प्रदीप नरवाल के क्या कर पाएंगे? लेकिन इस टीम ने चौंका दिया, कोच राम मेहर सिंह ने टीम का संयोजन बखूबी किया और टीम चली भी. लेकिन प्रदीप को लेने वाली टीम यूपी योद्धा भले ही प्ले ऑफ मे शामिल हो जाए, लेकिन कुछ हैरत अंगेज़ नहीं कर सकी. प्रदीप औसत से भी कम चले, उन्‍हें सबस्टीट्यूट भी किया गया, लगातार फिटनेस की समस्या और चोट से परेशान दिखे, लेकिन लीग के सबसे कामयाब रेडर इस बार अपने नाम के साथ न्याय नहीं कर पाए. योद्धा ने इस बार डिफेंस मे अपना कोर रिटेन किया था, और उन्‍हें उम्मीद थी की रेडिंग मे प्रदीप को लाकर टीम गजब ढा देगी, लेकिन ऐसा हो न सका.
यू मुंबा के लिए अभिषेक सिंह और वी अजीथ कुमार ने अपना काम बखूबी किया, लेकिन डिफेंस मे सुल्तान फजल अत्राचली अपने नाम के साथ न्याय करने वाला प्रदर्शन नहीं कर सके. जयपुर पिंक पेंथर्स अर्जुन देशवाल की निरंतरता और दीपक हुडा के सपोर्ट से अब भी प्ले ऑफ की रेस मे खड़ी है. उधर पुणेरी पलटन के लिए शोमैन राहुल चौधरी का शो शुरू ही नहीं हो सका, उन्‍हें बराबर बेंच पर ही समय काटना पड़ा. अनुभवी नितिन तोमर ने किसी तरह कप्तानी के जरिए अपनी इज्जत बचाई, अन्यथा निराश तो उन्होंने भी किया है.

(डिस्क्लेमर: ये लेखक के निजी विचार हैं. लेख में दी गई किसी भी जानकारी की सत्यता/सटीकता के प्रति लेखक स्वयं जवाबदेह है. इसके लिए जनता से रिश्ता किसी भी तरह से उत्तरदायी नहीं है)
संजय बैनर्जी ब्रॉडकास्ट जर्नलिस्ट व कॉमेंटेटर
ब्रॉडकास्ट जर्नलिस्ट व कॉमेंटेटर. 40 साल से इंटरनेशनल मैचों की कॉमेंट्री कर रहे हैं.
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