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इससे बेरोजगारी की समस्या भी कुछ हद तक दूर होगी। आज देश में युवाओं की अधिक संख्या है
दिव्याहिमाचल.
इससे बेरोजगारी की समस्या भी कुछ हद तक दूर होगी। आज देश में युवाओं की अधिक संख्या है, जिन्हें हम स्कूलों-कालेजों में कानून, संस्कृति व संस्कार की कोई शिक्षा नहीं दे रहे हैं। इसी कारण आज बच्चों में हिंसक प्रवृत्ति है, अनुशासन का अभाव है और वे नशे के सेवन की ओर आकर्षित हो रहे हैं। वे अपनी सेहत तंदुरुस्ती को भूल चुके हैं जिसके कारण हमारी आने वाली पीढ़ी कमजोर हो गई तो देश कैसे मजबूत हो पाएगा…
हमारा देश विश्व के प्रभावशाली देशों में एक है और हमेशा अपने सभी पड़ोसी देशों से सकारात्मक दिशा में आगे बढऩे का लगातार प्रयास करता रहा है। लेकिन एक पड़ोसी देश पाकिस्तान अपनी विरोधी हरकतों से कभी बाज नहीं आता है। वह भारत में आतंकवाद को बढ़ावा देने के उद्देश्य से प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष रूप से आतंकी संगठनों की लगातार मदद करने में लगा है। सन् 1999 में तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने ऐतिहासिक लाहौर बस यात्रा के माध्यम से मित्रता करने की पहल की थी, लेकिन उस समय पाकिस्तान ने विश्वासघात करके हमें कारगिल का युद्ध दिया था। उसके बाद सन् 2014 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने शपथ ग्रहण समारोह में पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ को विशेष रूप से आमंत्रित करके भारत के शांति प्रयासों को स्पष्ट कर दिया था, लेकिन पाकिस्तान के शत्रुतापूर्ण रवैये में कोई सुधार नहीं हो पाया। दूसरे पड़ोसी देश चीन की बात करें तो उसके साथ हमारे हजारों साल पुराने ऐतिहासिक एवं सांस्कृतिक संबंध रहे हैं। भारत ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में चीन को स्थायी सदस्य बनाने में अपनी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई थी, लेकिन उसने हिंदी-चीनी भाई भाई का नारा कहते-कहते सन् 1962 में आक्रमण करके हमारे कई क्षेत्रों पर अपना कब्जा कर लिया था। आज चीन लगातार अपनी आक्रामक और विस्तारवादी नीतियों को अपनाने में लगा है। आज विश्व में आतंकवाद का खतरा मंडरा रहा है। इस समय आतंकवाद और अलगाववाद की जड़ों को उखाड़ कर फेंकना बहुत ही जरूरी हो चुका है। हमारे देश में हमारी बहादुर सेना इनसे निपटने के लिए पूरी तरह से सक्षम है, फिर भी इन चुनौतियों एवं स्थितियों को मद्देनजर रखते हुए हमें पूरी तरह से ज्यादा सजग रहने की आवश्यकता है। आज जरूरत है कि हम नौजवानों को, अपने नागरिकों को अनिवार्य सैन्य प्रशिक्षण दें। महाविद्यालयों एवं विश्वविद्यालयों में सैनिक प्रशिक्षण अनिवार्य करने की योजना बनाई जा सकती है। विश्व के कई देश अपने-अपने तरीकों से सैन्य अध्ययन एवं प्रशिक्षण दे रहे हैं और सैन्य प्रशिक्षण को अनिवार्य कर चुके हैं। अगर भारत में भी नौजवानों का सैन्य प्रशिक्षण अनिवार्य किया जाता है तो इसे लागू करना ज्यादा खर्चीला भीनहीं होगा, जो पढ़ाई के साथ-साथ पूरा किया जा सकेगा। इसलिए इस योजना की सफलता के अवसर ज्यादा हो सकते हैं।
वैसे तो हमारे देश में पहले से ही रक्षा की द्वितीय पंक्ति के रूप में युवाओं के लिए नेशनल कैडेट कोर (एनसीसी) के ऐच्छिक कार्यक्रम चल रहे हैं, लेकिन इसमें सीमित संख्या में ही छात्र एवं छात्राएं भाग लेते हैं। अगर सैन्य प्रशिक्षण सभी को लागू किया जाता है, तो इससे युवाओं में शुरुआत से ही कत्र्तव्यनिष्ठा, निस्वार्थ राष्ट्र सेवा, राष्ट्र के लिए त्याग, सर्वोच्च बलिदान की भावना, सामाजिक हित प्रतिबद्धता, अनुशासन, राष्ट्रीय एकता व अखंडता जैसे मूल गुणों का विकास होगा। इससे बेरोजगारी की समस्या भी कुछ हद तक दूर होगी। आज देश में युवाओं की अधिक संख्या है, जिन्हें हम स्कूलों-कालेजों में कानून, संस्कृति व संस्कार की कोई शिक्षा नहीं दे रहे हैं। इसी कारण आज बच्चों में हिंसक प्रवृत्ति है, अनुशासन का अभाव है और वे नशे के सेवन की ओर आकर्षित हो रहे हैं। वे अपनी सेहत तंदुरुस्ती को भूल चुके हैं जिसके कारण हमारी आने वाली पीढ़ी कमजोर हो गई तो देश कैसे मजबूत हो पाएगा? आज युवा बड़े बुजुर्गों को सम्मान देना, देशभक्ति, देश प्रेम और सहनशक्ति जैसी मूल परंपराओं को भूलते जा रहे हैं। अगर सैन्य प्रशिक्षण अनिवार्य किया जाए तो उन्हें अच्छा देशभक्त, अनुशासनप्रिय व अच्छा नागरिक बनने में मदद होगी। साथ ही सेना में अधिकारियों और जवानों की कमी की समस्या खत्म हो सकती है। राष्ट्रीय सुरक्षा के बारे में उनमें बेहतर जानकारी विकसित होगी और भविष्य में राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़े प्रत्येक पहलू एवं ज्वलंत मुद्दों को आसानी से समझ सकेंगे। वे सुरक्षात्मक मुद्दों पर अपनी बेबाक राय रख सकेंगे। हमें आज अंग्रेजों के बनाए कुछ नियमों को भी बदलना होगा, जैसे भर्ती के लिए लंबाई का पैमाना। पहाड़ी इलाके के लोगों की लंबाई कुछ कम होती है। देखा जाए तो चीन, जापान जैसे देशों के सैनिकों, जो हमारे देश की तुलना में काफी छोटे होते हैं, को अकुशल या अयोग्य नहीं कह सकते। इसलिए कद से ज्यादा महत्त्वपूर्ण है कि उनमें साहस, समर्पण, मातृभूमि के लिए प्यार व निष्ठा हो।
हमारे देश में विशाल जनसंख्या के कारण और अन्य कई कारणों से अनिवार्य सैन्य प्रशिक्षण में कई समस्याएं आ सकती हैं, फिर भी वर्तमान के हालात को देखते हुए इसकी शुरुआत सरकार को जरूर करनी चाहिए, ताकि कभी भी जरूरत पडऩे पर लाखों प्रशिक्षित, देशभक्त व शूरवीर देशवासियों को सेवा में शामिल किया जा सके। समाजसेवियों, राजनेताओं, सभी को चुनाव लडऩे की पहली शर्त फौजी सर्टिफिकेट का होना जरूरी हो ताकि मंचों पर उनके भाषणों के भावों से देश सेवा की ही रसधार बहे। अगर ऐसा होता है तो देश से भ्रष्टाचार, भाई-भतीजावाद, धरने-प्रदर्शन, गली-मोहल्लों के झगड़े काफी हद तक खत्म हो सकते हैं। अगर हम अपने इतिहास पर भी नजर डालें तो पहले हमारे राजाओं-महाराजाओं का इतिहास बहुत ही गौरवपूर्ण रहा है, जो बहादुर, युद्ध रणनीति में शूरवीर व पराक्रमी थे, लेकिन युद्ध के समय उनके साथ कुछ ही चुने हुए सैनिक होते थे। उनके राज्यों की आधी से भी ज्यादा आबादी का युद्ध से कुछ लेना-देना नहीं होता था। सभी जातियों से नौजवानों का चयन कर प्रशिक्षण देने के लिए तैयार किया जाता था। न ही उन्हें संगठित करने की कोशिशें की गई थीं। यह भी एक बहुत बड़ा कारण था जिसका फायदा आक्रांताओं, मुगलों और अंग्रेजों ने उठाया था। सभी बातों को ध्यान में रखते हुए राष्ट्रहित, समाज हित में सरकार को रक्षा विशेषज्ञों की मदद से क्रमानुसार धीरे-धीरे सभी नागरिकों को सैन्य प्रशिक्षण देने की शुरुआत कर देनी चाहिए।
मनवीर चंद कटोच
लेखक भवारना से हैं
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