सम्पादकीय

गति पकड़ने लगे सैन्य सुधार, आत्मनिर्भर भारत अभियान का दिखने लगा असर

Rani Sahu
23 July 2022 10:57 AM GMT
गति पकड़ने लगे सैन्य सुधार, आत्मनिर्भर भारत अभियान का दिखने लगा असर
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आत्मनिर्भर भारत अभियान का दिखने लगा असर

सॉर्स- जागरण

प्रो. रसाल सिंह: कोई भी युद्ध केवल सशस्त्र बलों द्वारा नहीं लड़ा जाता, बल्कि सरकार और उसके सभी अंगों, राजनीतिक नेतृत्व, मीडिया एवं देशवासियों द्वारा संगठित होकर लड़ा जाता है। कारगिल संघर्ष एक ऐसा ही अवसर था। उस विषम परिस्थिति में संपूर्ण देश एकजुट था। उस संघर्ष के समय प्राप्त राजनीतिक, राजनयिक और सैन्य अंतर्दृष्टि ने राजनीतिक-सैन्य संबंधों, संरचनाओं और प्रक्रियाओं में बदलाव की आवश्यकता को रेखांकित किया। पिछले एक दशक में भारतीय सेना ने दो-मोर्चे पर युद्ध लड़ने की आवश्यकता को महसूस किया है।

करीब दो साल पहले महामारी के बीच लद्दाख में भारतीय सेना को चीन के साथ सबसे गंभीर सैन्य टकराव का सामना करना पड़ा। इससे फिर साबित हुआ कि विस्तारवाद और विश्वासघात ही उसकी नीति है। जिस प्रकार 1999 में हुए कारगिल युद्ध के बाद भारत ने अपने रक्षा बलों, कमान और नियंत्रण संरचनाओं में सुधार और आधुनिकीकरण के बारे में गंभीरता से सोचना शुरू कर दिया था, उसी प्रकार गलवन संकट ने भारतीय सेना के लिए नए युग की प्रौद्योगिकियों और साइबर युद्ध के महत्व को रेखांकित करते हुए आवश्यक बदलाव की अपरिहार्यता स्पष्ट कर दी
स्टाकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट के अनुसार भारत पिछले चार दशकों में दुनिया का सबसे बड़ा हथियार आयातक देश है। यह स्थिति युद्धकाल में हमें बाहरी प्रभाव और दबाव के प्रति बेहद संवेदनशील बनाती है। इसलिए रक्षा उत्पादन में आत्मनिर्भरता हासिल करना आवश्यक है। गलतियों से सबक सीखने और रक्षा तंत्र को त्वरित, गतिशील और सशक्त बनाने के उद्देश्य से कारगिल संघर्ष के बाद कारगिल समीक्षा समिति का गठन किया गया था। पिछली सरकारों ने इस समिति की सिफारिशों के अनुरूप उल्लेखनीय नीतिगत परिवर्तन नहीं किए। इसके विपरीत मोदी सरकार ने भारत के घरेलू रक्षा उद्योग की स्थापना पर विशेष जोर दिया है।
आत्मनिर्भर भारत अभियान के तहत सरकार ने रक्षा उत्पादन को प्राथमिकता दी है। श्रमिक संघों के विरोध के बावजूद सरकार आयुध कारखानों के निजीकरण जैसे राजनीतिक रूप से जोखिमपूर्ण निर्णयों पर आगे बढ़ी है। सरकारी नीतियां निजी क्षेत्र के स्वामित्व वाले रक्षा उद्यमों के पक्ष में हैं। इसके अलावा इस क्षेत्र में भागीदारी के लिए विदेशी कंपनियों को भी प्रोत्साहित करने के लिए सरकार भरसक प्रयास कर रही है। चूंकि इस मामले में सबसे पहला काम सेना के तीनों अंगों और रक्षा उद्योग का एक साथ काम करने की दिशा में आगे बढ़ना है, इसीलिए सभी हितधारकों को मिलकर काम करने के लिए प्रोत्साहित किया जा रहा है।
मोदी सरकार ने रक्षा उद्योग को निर्यात पर ध्यान केंद्रित करने के लिए भी प्रेरित किया है। एक अनुमान के अनुसार यह 2016 से 2020 के बीच 700 प्रतिशत से अधिक बढ़ा है। हाल में प्रधानमंत्री ने रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भरता पर जोर देते हुए कहा कि आखिर हम कब तक वही हथियार इस्तेमाल करने का जोखिम लेंगे, जो दुनिया में बाकी लोगों के पास भी हैं? उन्होंने इस पर भी बल दिया कि हमें भविष्य के मोर्चे के हिसाब से खुद को बदलना होगा। अच्छी बात यह है कि इस दिशा में कदम बढ़ाए जा रहे हैं।
एल एंड टी कंपनी ने कोरिया की कंपनी सैमसंग के साथ सौ आर्टिलरी गन के निर्माण के लिए 5400 करोड़ रुपये का आर्डर प्राप्त किया है। यह कंपनी डीआरडीओ के साथ मिलकर लक्ष्य-1 और लक्ष्य-2 नामक पायलट रहित विमानों का निर्माण भी कर रही है। डीआरडीओ ने भी भारत फोर्ज और जनरल डायनामिक्स के साथ करार किया है। टाटा सामरिक प्रभाग ने मध्यम श्रेणी के परिवहन विमानों के निर्माण के लिए एयरबस इंडस्ट्रीज से हाथ मिलाया है। रिलायंस इंडस्ट्रीज, महिंद्रा डिफेंस सिस्टम्स, टीवीएस लाजिस्टिक्स आदि ने भी रक्षा उपकरणों के बाजार में प्रवेश किया है। इस काम को गति देने के लिए दो रक्षा कारीडोर भी बनाए जा रहे हैं। यह मेक इन इंडिया पहल के लिए शुभ संकेत है। इसके अलावा वर्षों से लंबित कई प्रमुख रक्षा उपकरणों की खरीद के साथ उनकी गुणवत्ता पर भी विशेष जोर दिया है।
कारगिल समीक्षा समिति ने जिन सुधारों की सिफारिश की थी, उनमें से एक सशस्त्र बलों की भर्ती प्रक्रिया से भी संबंधित थी। इसमें कहा गया था कि रक्षा सेवा को सात से दस साल की अवधि तक सीमित करना चाहिए। 2020 में सेना ने भी तीन साल के लिए युवाओं की भर्ती हेतु 'टुअर आफ ड्यूटी' योजना का प्रस्ताव रखा था। हाल में शुरू की गई अग्निवीर योजना पर उपरोक्त प्रस्तावों का प्रभाव दिखाई देता है।
मोदी सरकार द्वारा रक्षा प्रणाली में किए गए प्रमुख सुधारों में अग्निवीर भर्ती योजना, तीनों सेनाओं में तालमेल को बढ़ावा देने के लिए सशस्त्र बलों के थिएटर कमांड का पुनर्गठन, चीफ आफ डिफेंस स्टाफ की नियुक्ति, सैन्य मामलों के विभाग यानी डीएमए की स्थापना, वन रैंक-वन पेंशन पर अमल, डिफेंस स्पेस और साइबर एजेंसियों की स्थापना और आयुध कारखानों का निगमीकरण आदि शामिल हैं। ये सुधार सशस्त्र बलों को उपयुक्त आकार, कौशल, तकनीक और उपकरणों से लैस करके उन्हें अधिक सक्षम, पेशेवर और मारक बनाएंगे। इससे उनकी क्षमता और मनोबल, दोनों बढेंगे। रक्षा विशेषज्ञों के अनुसार युवा और तकनीकी रूप से दक्ष अग्निवीर सीमा पर कहीं अधिक प्रभावी होंगे।
भविष्य के युद्धों में सैनिकों की संख्या से ज्यादा महत्वपूर्ण उनकी दक्षता, अत्याधुनिक हथियार और उपकरण, सूचना-तकनीक ढांचा आदि होंगे। इसलिए भारतीय सेना को नई जरूरतों के अनुसार तैयार किया जाना आवश्यक है। ऐसा करके ही भारत को 21वीं सदी में एक प्रमुख सैन्य शक्ति के रूप में स्थापित किया जा सकता है।
Rani Sahu

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