सम्पादकीय

सेना और राष्ट्रीय सुरक्षा

Rani Sahu
1 Oct 2021 7:03 PM GMT
सेना और राष्ट्रीय सुरक्षा
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पिछले सप्ताह की मुख्य घटनाओं को देखें तो कृषि कानूनों के विरोध में किसानों द्वारा किए गए भारत बंद का असर उत्तर भारत में अच्छा खासा देखने को मिला

पिछले सप्ताह की मुख्य घटनाओं को देखें तो कृषि कानूनों के विरोध में किसानों द्वारा किए गए भारत बंद का असर उत्तर भारत में अच्छा खासा देखने को मिला। अमेरिका गए प्रधानमंत्री महोदय के दौरे की खबरें भी चर्चा में रहीं, पर एक तरफ जहां हमारे गृह क्षेत्र में उप चुनावों की घोषणा हो गई तो दूसरी तरफ पड़ोसी राज्य पंजाब में राजनीतिक उथल-पुथल की खबरें सुर्खियों में बनी रही। पंजाब के नए-नवेले, जोशीले मुख्यमंत्री ने 53 लाख परिवारों के 2 किलोवाट के बिजली के बिल माफ करने का फैसला लिया जो अपने आप में ही एक बहुत बड़ा एवं ऐतिहासिक निर्णय है, पर इस खबर को मीडिया में जो जगह मिलनी चाहिए थी वह सिद्धू के इस्तीफे और कैप्टन के दिल्ली दौरे के बीच में कहीं गुम सी हो गई।

शायद सिद्धू को एहसास हुआ कि अगर कैप्टन मुख्यमंत्री रहते तो अब नहीं तो 3 से 5 साल के अंदर शायद कुर्सी उनके पास आ सकती थी, पर 80 साल के कैप्टन को हटाकर अपने ही हम उम्र को कुर्सी दिला कर उन्होंने कुर्सी तक पहुंचने के अपने ही सपने को अब मुश्किल कर दिया है। शुरू में चन्नी को कमजोर मानने वालों को एहसास हो गया है कि यह लंबी रेस का एक परिपक्व नेता है, जिसको चुनौती देना शायद अब मुश्किल होगा। उधर कैप्टन बार-बार एक ही बात कह रहे हैं कि पंजाब एक सीमावर्ती राज्य है और सिद्धू जैसी प्रवृत्ति का नेता देश की राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा हो सकता है। दूसरी तरफ राष्ट्रीय सुरक्षा का जिक्र, पिछले सप्ताह ही भारतीय थल सेना अध्यक्ष जनरल नरवाने ने पीएचडी चैंबर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री में अपने संबोधन के दौरान किया। उनके अनुसार राष्ट्रीय सुरक्षा केवल सशस्त्र बलों का काम नहीं है, उसमें सरकार के पूरे प्रयास शामिल होते हैं। उन्होंने कहा कि 'जंग देशों द्वारा लड़ी जाती है, न कि केवल सेनाओं द्वारा।'
जनरल नरवाने यहां पर रक्षा क्षेत्र में व्यापार को सुगम करने पर बात कर रहे थे। उनका मानना है कि सेना में जरूरत के अनुसार खरीदे जाने वाले हथियारों एवं अन्य शस्त्रों की प्रक्रिया इतनी पेचीदा है कि आज के समय में वह अप्रासंगिक सी प्रतीत हो रही है। थल सेना अध्यक्ष ने कहा कि सैन्य आधुनिकीकरण को तेज करने के लिए पुराने और प्रचलित तौर-तरीकों को छोड़ कर आधुनिक सर्वश्रेष्ठ प्रक्रिया अपनानी चाहिए।
पुराने तरीके जैसे कि औपनिवेशिक काल की एल-1 अवधारणा जिसके तहत सबसे कम बोली लगाने वाले को ठेका दिया जाता है, उन्होंने कहा कि 'हमारी लंबी खरीद प्रक्रियाएं और नौकरशाही वाले अवरोधक हमें आधुनिक प्रौद्योगिकी प्राप्त करने से रोकेंगे, यह खतरा वास्तविक है।' इस पर उन्होंने इजराइल का उदाहरण देते हुए कहा कि 'इजराइल एक अच्छी मिसाल है जहां सभी अनुबंध स्थानीय कारोबारियों के साथ किए जाते हैं और रक्षा क्षेत्र में निवेश अर्थव्यवस्था में ही वापस आता है।' इसमें कोई दो राय नहीं कि देश की सेना सशक्त तभी हो सकती है जब उनके पास अच्छे एवं आधुनिक हथियार हों। अगर ऐसे उत्कृष्ट हथियार सेना को हमारे स्थानीय कारोबारी उपलब्ध करवा सकें तो सेना पर किया जाने वाला खर्च भी देश की अर्थव्यवस्था में ही वापस आ जाएगा, पर इसमें कारोबारी की उत्कृष्ट उत्पादन की क्षमता एवं निपुणता को ध्यान में रखना अति आवश्यक है।
कर्नल (रि.) मनीष धीमान
स्वतंत्र लेखक
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