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मणिपुर उग्रवादी हमले ने हमारी सुरक्षा-व्यवस्था के लिए खतरे की नई घंटियां बजा दी हैं
दिव्याहिमाचल.
मणिपुर उग्रवादी हमले ने हमारी सुरक्षा-व्यवस्था के लिए खतरे की नई घंटियां बजा दी हैं। एक लंबे अंतराल से मणिपुर में विद्रोही गतिविधियां अपेक्षाकृत निष्क्रिय रही हैं। हालांकि म्यांमार से घुसपैठ करने वाले उग्रवादी शांति को खंडित करते रहे हैं, जबकि भारत और म्यांमार की सेनाएं आपसी समन्वय और सहयोग से लगातार ऑपरेशन चलाती रही हैं, ताकि विद्रोही तत्त्वों को 1643 किलोमीटर लंबी सीमा के बाहर खदेड़ा जा सके। मौजूदा हमले ने साबित किया है कि मणिपुर के उग्रवाद पर नए सिरे से विचार करना होगा और सुरक्षा की भी रणनीति बदलनी होगी। उग्रवादी सैनिकों और स्थानीय लोगों को हमलों का निशाना बनाते रहे हैं। बीते 6 साल में यह उग्रवादी हमला सबसे ज्यादा घातक रहा है। इस हमले ने 4 जून, 2015 को पड़ोसी चंदेल जिले में, 6वीं डोगरा रेजीमेंट पर, आतंकी हमले की याद ताज़ा कर दी। उस हमले में 18 सैनिक शहीद और 11 अन्य घायल हुए थे। 'उरी' फिल्म का शुरुआती दृश्य इसी हमले पर आधारित था। उरी हमले के बाद ही भारत के रणबांकुरों ने पाकिस्तान पर सर्जिकल स्ट्राइक की थी। मणिपुर का उग्रवाद पाकपरस्त आतंकवाद से काफी भिन्न है।
बहरहाल मौजूदा हमले में उग्रवादियों ने घात लगाकर असम राइफल्स के एक काफिले पर आईईडी से विस्फोट किए और लगातार गोलीबारी की। उसमें कमांडिंग अफसर कर्नल विप्लव त्रिपाठी, उनकी पत्नी और मात्र 6 साल का बेटा तथा 4 जांबाज सैनिक शहीद हुए। इससे बर्बर और कायराना हमला क्या हो सकता है? कर्नल और उनका परिवार तथा क्विक रियक्शन टीम 46 असम राइफल्स बटालियन के अग्रिम ऑपरेशन बेस तक जा रहे थे। यह भारत-म्यांमार सीमा के पास ही है। वहां एक गांव में कोई समारोह था। काफिले पर हमला तब किया गया, जब शनिवार सुबह वे सभी बटालियन मुख्यालय की ओर लौट रहे थे। हमले के बाद उग्रवादी म्यांमार की ओर भाग गए, ऐसा सैनिक सूत्रों का मानना है। हमले के पीछे चीन का हाथ भी रहा है, ऐसी आशंका जताई गई है। चीन अपने अवैध हथियारों-एके 47, मशीन गन, एंटी टैंक माइंस और ग्रेनेड आदि-की लगातार सप्लाई म्यांमार स्थित उग्रवादी समूहों को करता रहा है।
वहां से हथियार मणिपुर के विद्रोहियों तक पहुंचाए जा रहे हैं। वैसे पूर्वोत्तर में मणिपुर सशस्त्र उग्रवादियों का अंतिम गढ़ रहा है। वहां न तो कोई शांति-प्रयास सफल हो सका है और न ही उग्रवादी संवाद में दिलचस्पी रखते हैं। वे मणिपुर में समानांतर अर्थव्यवस्था चलाते हुए फिरौती, वसूली और नशीले पदार्थों की तस्करी में लिप्त हैं। गौरतलब यह है कि किसी भी राज्य सरकार ने शांति-प्रक्रिया के लिए उग्रवादियों, विद्रोहियों को मनाने और मुख्य धारा में लाने की महत्त्वपूर्ण पहल नहीं की है। अलबत्ता केंद्र सरकार के साथ टुकड़ों-टुकड़ों में संवाद जारी रहा है। मणिपुर का कुकी समुदाय ही राज्य सरकार के प्रतिनिधि के तौर पर बातचीत में शिरकत करता रहा है। केंद्रीय गृह मंत्रालय की वेबसाइट पर मणिपुर के 8 प्रमुख उग्रवादी संगठनों के नाम अंकित हैं। उनमें प्रतिबंधित पीपुल्स लिबरेशन आर्मी और मणिपुर नगा पीपुल्स फ्रंट के नाम भी शामिल हैं। इन दोनों संगठनों ने ही हमले की जिम्मेदारी ली है। दरअसल जब तक संवाद और शांति-प्रक्रिया की शुरुआत नहीं होती, तब तक मणिपुर की स्थितियां नाजुक ही बनी रहेंगी। 1964 में यूनाइटेड नेशनल लिबरेशन फ्रंट सरीखे सबसे पुराने उग्रवादी संगठन के समय से ही कोई सार्थक संवाद नहीं हो सका है। चीन उग्रवादियों को समर्थन देने की धमकी देता रहा है। सरकार को अपनी रणनीति में बदलाव करना होगा।

Gulabi
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