सम्पादकीय

'पराक्रमी देश नायक नेता जी'

Gulabi
25 Jan 2021 10:02 AM GMT
पराक्रमी देश नायक नेता जी
x
देश नायक नेताजी सुभाष चन्द्र बोस भारत के ऐसे महानायक के रूप में इतिहास में दर्ज हैं

जनता से रिश्ता वेबडेस्क। देश नायक नेताजी सुभाष चन्द्र बोस भारत के ऐसे महानायक के रूप में इतिहास में दर्ज हैं जिन्होंने साम्राज्यवाद से मुक्ति पाने के लिए अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर अभियान चलाते हुए अंग्रेजों की सैनिक शक्ति का शमन करने की योजना बनाई थी। उनकी आजाद हिन्द फौज द्वारा दिया गया कौमी नारा 'जयहिन्द' भारत की विविध संस्कृति के लोगों को एकता सूत्र में बांधे रखने का वह 'रसायन' था जिसमें भारत के बहुधर्मी लोग निजी पहचान भूल कर राष्ट्रीय पहचान में समाहित हो जाते थे। इसके साथ ही देश की आजादी के लिए वैचारिक स्तर पर पृथक संघर्ष मार्ग अपनाने वाले महात्मा गांधी को 'राष्ट्रपिता' की उपाधि देने वाले भी नेताजी पहले व्यक्ति थे। अतः नेताजी की 125वीं जयन्ती के अवसर पर राजनीति करना उनके व्यक्तित्व के अनुकूल नहीं कहा जा सकता। सवाल यह नहीं है कि उनके नाम पर स्वतन्त्र भारत में कितने स्थलों का नामकरण किया गया, सवाल यह भी नहीं है कि उनकी कितनी प्रतिमाएं स्थापित की गईं बल्कि असली सवाल यह है कि उनके विचारों को सत्ता के संस्थानों ने कितना अंगीकार किया? 23 जनवरी को कोलकोता में नेता जी के सम्मान में जो भी कार्यक्रम आयोजित किये गये उनका एकमात्र उद्देश्य भारत की स्वतन्त्रता व अखंडता को अक्षुण बनाये रखने का होना चाहिए था और इसके लोगों की सत्ता में सहभागिता को मजबूत करने का होना चाहिए था।


प. बंगाल में तीन महीने बाद विधानसभा चुनाव होने हैं और सभी राजनीतिक दलों की नजरें इस तरफ होना स्वाभाविक है परन्तु राष्ट्रनायक किसी एक प्रदेश या वर्ग के नहीं होता बल्कि समूचे देश के होते हैं और नेताजी को तो स्वयं गुरुदेव रवीन्द्र नाथ टैगोर ने 'देश नायक' की उपाधि से अलंकृत किया था। अतः उनकी याद तो प्रत्येक भारतवासी के लिए नवीन भारत के निर्माण में प्रण-प्राण से जुटने की प्रेरणा देती है। उनके जन्म दिन को यदि केन्द्र सरकार ने 'पराक्रम दिवस' का नाम दिया है तो इस पर प. बंगाल की मुख्यमन्त्री सुश्री ममता बनर्जी को एतराज नहीं करना चाहिए और दलगत हितों से ऊपर उठ कर इस बात पर विचार करना चाहिए कि आम भारतवासी की नजरों में नेताजी की छवि 'महान पराक्रमी राजनेता' की ही है क्योंकि उन्होंने जब दिल्ली चलो का उद्घोष किया था तो दिल्ली से लेकर लन्दन तक की अंग्रेजों की सत्ता कांप गई थी। इसी प्रकार ममता दी का भी यह कहना उचित है कि नेताजी के जन्मदिन को 'देश नायक दिवस' के रूप मे मनाया जाना चाहिए। यदि गौर से देखें तो जर्मनी में बैठी नेताजी की सुपुत्री श्रीमती अनीता बोस का यह कहना पूरी तरह सामयिक है कि भारत में उनके पिता को सम्मान देने के लिए राजनीतिक दलों में जो प्रतियोगिता हो रही है उसमें कोई बुराई नहीं है।

चुनावों को देखते हुए यह प्रतियोगिता स्वाभाविक है। यह मत उन्होंने आर भारत टीवी चैनल को दिये गये साक्षात्कार में 23 जनवरी को ही व्यक्त किया। इससे स्पष्ट है कि चुनावी राजनीति में नेताजी की सार्थकता आजादी के 73 वर्ष बाद भी बनी हुई है। अतः इसी से अंदाजा लगाया जा सकता है कि भारतीय लोकतन्त्र में अपने महानायकों की कितनी प्रतिष्ठा है। मगर नेताजी की जिस शख्सियत को हम भूल बैठे हैं वह उनकी सम्पूर्ण संयुक्त भारत की एकता की दृष्टि थी। कुछ इतिहासकारों का मत है कि यदि 1945 में नेताजी की एक विमान दुर्घटना में मृत्यु न हुई होती तो दुनिया की कोई भी ताकत 1947 में भारत का बंटवारा नहीं कर सकती थी। इसके पीछे तर्क यह है कि नेताजी ने अंडमान निकोबार में अपनी जिस निर्वासित 'आजाद हिन्द सरकार' की स्थापना की थी उसमें हिन्दू व मुसलमान एकता की मजबूत आधारशिला रख दी थी। इस सरकार को तब तीस से अधिक देशों ने मान्यता भी प्रदान कर दी थी। जबकि 1946 में अंग्रेज सरकार भारत में जो कैबिनेट मिशन भारत को एक रखने की गरज से लाई थी उसका भी उद्देश्य यही था। इस तथ्य को पाकिस्तान के निर्माता मोहम्मद अली जिन्ना ने महसूस कर लिया था इसी वजह से उसने पाकिस्तान बनने के तुरन्त बाद ही आजाद हिन्द के फौजियों को अपने देश में ऊंचा रुतबा बख्शा था जबकि भारत में यह काम नहीं हो सका था। इन फौजियों को स्वतन्त्रता सेनानी का दर्जा देने में ही हमें बहुत वक्त लगा। हालांकि हमारी फौजों ने नेताजी की आजाद हिन्द फौज के कौमी तराने ''कदम-कदम बढ़ाये जा, खुशी के गीत गाये जा- ये जिन्दगी है कौम की, तू कौम पर लुटाये जा'' को राष्ट्रीय धुन बना लिया था। इसके साथ ही नेताजी के उस मत को भी स्वतन्त्र भारत में सम्मान दिये जाने की जरूरत है जो उन्होंने 1937 में बतौर कांग्रेस पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष के रूप में व्यक्त किये थे। नेताजी ने अपने अध्यक्षीय भाषण में आर्थिक नीतियों की गहराई से समीक्षा की थी और कहा था कि भारत में सम्पत्ति का बंटवारा खेतों और गांवों की गाढ़ी कमाई से मालामाल होने वाले चन्द लोगों के ऐश्वर्य प्रधान जीवन की तुलना करते हुए होनी चाहिए। आज की युवा पीढ़ी के लिए यह तथ्य कल्पना से परे हो सकता है कि नेताजी की आजाद हिन्द फौज के गठन से अंग्रेज इतना डर गये थे कि ब्रिटेन के तत्कालीन प्रधानमन्त्री श्री एटली को पचास के दशक में यह स्वीकार करना पड़ा था कि उन्होंने भारत को स्वतन्त्र करने का फैसला अपनी फौज में बगावत होने की आशंका होने की वजह से ज्यादा लिया था क्योंकि नेताजी ने उस समय की भारतीय फौजों में अपने देश के लिए लड़ने का जज्बा भरना शुरू कर दिया था। इसकी वजह यह थी कि आजादी से पहले भारत के फौजी ब्रिटेन के सम्राट या महारानी के प्रति वफादार रहने की कसम लेकर ही राइफल उठाते थे। वही नेताजी आर्थिक क्षेत्र के महान विचारक भी थे। अतः ऐसे महानायक को हम बिना कोई राजनीति करे ही राजनीति में सवर्था प्रासंगिक बनाये रख सकते हैं। जय हिन्द।


Next Story