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विश्व के सबसे धनी व्यक्ति एलन मस्क ने जबसे माइक्रो ब्लॉगिंग साइट ट्विटर को खरीदा है
दिव्य कुमार सोती।
विश्व के सबसे धनी व्यक्ति एलन मस्क ने जबसे माइक्रो ब्लॉगिंग साइट ट्विटर को खरीदा है, तबसे वह सुर्खियों में बने हुए हैं। वैसे भी यह अधिग्रहण व्यावसायिक से अधिक वैचारिक एवं रणनीतिक कारणों से अधिक चर्चा में है। इसे खरीदने की मंशा प्रकट करते हुए भी मस्क ने 'मुनाफा' कमाने के बजाय 'अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता' को बचाने की बात पर जोर दिया था। मस्क लंबे समय से अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को लेकर ट्विटर की 'सेलेक्टिव सेंसरशिप' के आलोचक रहे हैं। उनके इसी रवैये के कारण ट्विटर के लेफ्ट-लिबरल झुकाव से त्रस्त दुनिया भर के लोग उनके प्रशंसक बने। मस्क युवाओं के बीच खासे लोकप्रिय हैं, क्योंकि उन्होंने जो कंपनियां खड़ी की हैं वे हालीवुड फिल्मों की तकनीकी फंतासियों को मूर्त रूप देने की बात करती हैं और कुछ सीमा तक कर भी रही हैं।
ऐसे में ट्विटर के वोकिज्म के विरोध में उनकी आवाज को अहम समझा जाता है, क्योंकि उदारवादी-वामपंथी विमर्श नई पीढ़ी के मानस को जल्द प्रभावित करता है। अब मस्क युवाओं में प्रचलित मीम्स के माध्यम से ही ट्विटर पर वामपंथियों पर व्यंग्य कर रहे हैं। ऐसे में बड़ा सवाल यही है कि क्या मस्क ने ट्विटर से वामपंथी झुकाव को समाप्त करने के लिए ही अरबों डालर खर्च किए हैं। हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि मस्क सबसे पहले एक व्यवसायी हैं, लेकिन एक कारोबारी होना उनके बेबाक विचारों के आड़े नहीं आता। वह बेहिचक राजनीतिक मामलों पर अपने विचार प्रकट करते हैं। इसके बावजूद वह दक्षिणपंथी रिपब्लिकन पार्टी और उदारवादी-वामपंथी झुकाव वाली डेमोक्रेट पार्टी दोनों को उदारता से चंदा देते आए हैं। उनके विचार भी राजनीति की इन दो धाराओं के बीच कहीं झूलते नजर आते हैं।
मस्क इतने कट्टर पूंजीवादी और पश्चिमी मायनों में दक्षिणपंथी भी रहे हैं कि उन्होंने अपने संयंत्रों में कोरोना लाकडाउन का पालन करने से स्पष्ट मना कर दिया था और अपने कर्मियों को धमकी दी थी कि अगर वे काम पर नहीं आए तो उन्हें इसके नतीजे भुगतने होंगे। इस पूंजीवादी सख्ती के विपरीत मस्क अमेरिका में समान न्यूनतम पगार के समर्थक भी रहे हैं। वह बीते दिनों कनाडा में ट्रक चालकों द्वारा कोरोना वैक्सीन के विरुद्ध व्यापक बंद और घेराव का समर्थन करते भी दिखे। यह प्रदर्शन स्वभाव में तो पश्चिमी रूढ़िवाद से प्रेरित था, किंतु उसकी प्रकृति भारत में कृषि सुधार विरोधी आंदोलन सरीखी थी, जिसकी कमान भारत में लेफ्ट-लिबरल संभाल रहे थे, जिसकी कड़ियां पश्चिम तक जुड़ी थीं। ग्रेटा थनबर्ग के ट्विटर अकाउंट की टूलकिट से यह स्पष्ट हो गया था। यह सब भारत के परिप्रेक्ष्य में चीजों को और अधिक पेचीदा बना देता है, क्योंकि पश्चिम का दक्षिणपंथ भारत में दक्षिणपंथ से बहुत अलग है।
यहां दक्षिणपंथी कहे जाने वाले भाजपा जैसे दल पाश्चात्य दक्षिणपंथ की परिभाषा में फिट नहीं बैठते। भाजपा गांधीवादी समाजवाद की हिमायती है। उसकी सरकारें तमाम कल्याणकारी योजनाएं चलाती हैं, जिनमें मुफ्त राशन और श्रमिकों को लेकर उदार नीतियां शामिल हैं और उसकी ये नीतियां पश्चिमी दक्षिणपंथ के मुकाबले कहीं वैज्ञानिक एवं उदार हैं। जहां पश्चिम में दक्षिणपंथियों ने कोरोना टीकाकरण के विरुद्ध अभियान छेड़ रखा है, वहीं भाजपा सफल टीकाकरण को अपनी उपलब्धि बताती है, जबकि भारत में स्वयं को प्रगतिशील एवं समाजवादी कहने वाले कोरोना टीकाकरण का विरोध करते हैं। इन कड़ियों को जोड़कर देखें तो समझ आता है कि एलन मस्क असल में जार्ज सोरोस जैसे पाश्चात्य उदारवादी रईसों से कहीं अधिक चतुर हैं, जो खुलेआम वामपंथी उदारवाद का साथ देते हैं। राष्ट्रवादी सरकारों को गिराने के लिए पैसा बांटते हैं। ऐसे में भारत के परिप्रेक्ष्य में मस्क द्वारा ट्विटर को खरीदने और अमेरिकी बिग टेक सेक्टर में अमेरिकी दक्षिणपंथियों और वामपंथी उदारवादियों के बीच वर्चस्व की इस लड़ाई के मायने बहुत अलग हैं।
दरअसल मस्क लंबे समय से अपनी इलेक्टिक कार निर्माता कंपनी टेस्ला के उत्पाद भारत में बेचने के इच्छुक हैं। ट्विटर के अधिग्रहण से कुछ समय पहले मस्क ने ट्विटर पर लिखा था कि वह भारत में टेस्ला के उत्पाद बेचने को लेकर काफी चुनौतियों का सामना कर रहे हैं। मस्क चाहते हैं कि भारत इलेक्टिक वाहनों पर आयात शुल्क में भारी कटौती करे, जबकि मोदी सरकार ऐसी कोई रियायत इसी शर्त पर ही देना चाहती है कि टेस्ला मेक इन इंडिया के तहत भारत में ही इन वाहनों का उत्पादन करे। ऐसे में प्रश्न उठता है कि क्या मस्क ट्विटर के जरिये एक विमर्श स्थापित कर अपने व्यवसायिक हितों को साधने का प्रयास तो नहीं करेंगे? मस्क ट्विटर पर अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को लेकर दावा कर हैं कि वह अपने आलोचकों को भी ट्विटर पर स्थान देंगे। वहीं भारतीय संविधान में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का मूल अधिकार तो है, लेकिन उस पर युक्तियुक्त र्निबधन भी लगे हैं। देश को अस्थिर करने में सक्रिय भारत विरोधी विचारधाराएं इसी स्वतंत्रता की आड़ में अपना एजेंडा चलाती हैं। ऐसे में यह जोखिम बढ़ जाता है कि कहीं अपने व्यावसायिक हितों की पूर्ति के लिए मस्क इस मंडली का इस्तेमाल तो नहीं करेंगे।
इस पर भी ध्यान दिया जाए कि मस्क ऐसी कंपनियों के मालिक हैं, जो कृत्रिम बुद्धिमत्ता और परिवहन के क्षेत्र में ऐसी तकनीकों से जुड़ी हैं, जिनमें बड़े सामाजिक बदलाव की क्षमता है। ऐसी ही एक कंपनी है न्यूरालिंक। यह मानव मस्तिष्क में चिप प्रत्यारोपित कर उसे कंप्यूटरीकृत मशीनों से जोड़ना चाहती है। ऐसे में ट्विटर जैसी इंटरनेट मीडिया कंपनी, जो वर्तमान में वैश्विक स्तर पर सार्वजनिक संवाद के सशक्त मंच के रूप में सामने आई है, उसका अधिग्रहण मस्क के लिए कहीं न कहीं रणनीतिक परियोजना भी है, जिसके माध्यम से वह इन विवादास्पद सामाजिक प्रभावों वाली तकनीकों को लेकर स्वीकार्यता बढ़ा सकते हैं। ट्विटर के अधिग्रहण के बाद सभी यूजर्स को वेरिफाई करने की मस्क की घोषणा कहीं न कहीं स्वयं की लोकप्रियता बढ़ाने का भी एक तरीका है। फिलहाल मस्क अमेरिकी उदारवादी वामपंथियों पर हमलावर हैं, लेकिन इस पर भी हैरानी नहीं होनी चाहिए अगर भविष्य में वह वामपंथ एवं दक्षिणपंथ दोनों पर अपने विमर्श का वर्चस्व बनाने के लिए बिग टेक का इस्तेमाल करने लगें।
Rani Sahu
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