सम्पादकीय

MeToo मूवमेंट के बाद लड़कियों के साथ काम करने से कतराते हैं पुरुष सहकर्मी – सर्वे

Gulabi
23 March 2021 4:35 PM GMT
MeToo मूवमेंट के बाद लड़कियों के साथ काम करने से कतराते हैं पुरुष सहकर्मी – सर्वे
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अब तो कुछ भी बोलने से पहले सोचना पड़ता है

ये कोई साल भर पुरानी बात होगी. एक लिटरेचर फेस्टिवल के दौरान एक लेखक महोदय एक समकालीन महिला लेखक की उपस्थिति में कुछ बोलते-बोलते अचानक रुक गए और फिर कहा, भई अभी मीटू का टाइम चल रहा है. अब तो कुछ भी बोलने से पहले सोचना पड़ता है. उनके जवाब में महिला ने कहा, "अभी मीटू चल रहा है मतलब. ये वक्‍त जाने के लिए नहीं आया. ये अभी रहने वाला है."

पोस्‍ट मीटू वर्ल्‍ड काफी बदल गया है. हमारे निजी और सार्वजनिक दायरे में भी मीटू के बाद दुनिया काफी बदल गई है. पुरुष सहकर्मी अकसर ये कहते पाए जाते हैं कि अब उन्‍हें महिलाओं से डर लगता है. इस संबंध में मेलबर्न यूनिवर्सिटी का हाल का एक अध्‍ययन चौंकाने वाला है. इस अध्‍ययन में शामिल 38 फीसदी महिलाओं का कहना है कि मीटू मूवमेंट के बाद अब दफ्तरों में पुरुष बॉस और सहकर्मियों के साथ उनका इंटरेक्‍शन बहुत कम हो गया है. पुरुष महिला सहकर्मियों से काम के संबंध में भी ज्‍यादा बातचीत करने, उनकी मेंटरिंग करने या उनके साथ वक्‍त बिताने से बचते हैं. इसका नतीजा इस रूप में भी सामने आ रहा है कि अपने कॅरियर के शुरुआती चरण में लड़कियों को लड़कों के मुकाबले कम मेंटरिंग और मार्गदर्शन मिल पा रहा है.

इस बात का दावा इस अध्‍ययन में शामिल 38 फीसदी लड़कियों और महिलाओं ने किया है. जरनल अप्‍लायड इकोनॉमिक्‍स में छपे इस अध्‍ययन पर दो प्रोफेसर्स ने मिलकर काम किया है. आरएमआईटी यूनिवर्सिटी प्रोफेसर एंड्रयू आर. टिमिंग और यूनिवर्सिटी ऑफ मियामी के प्रोफेसर माइकल टी. फ्रेंच और प्रोफेसर कैरोलाइन मॉरटेनसेन.

दोनों विश्‍वविद्यालयों द्वारा किया गया यह संयुक्‍त अध्‍ययन अमेरिका में हुआ, जिसमें 20000 से ज्‍यादा प्रतिभागियों ने हिस्‍सा लिया. लेकिन डॉ. टिमिंग कहते हैं कि अमेरिका में हुआ यह अध्‍ययन उनके देश ऑस्‍ट्रेलिया पर भी समान रूप से लागू होता है क्‍यों‍कि दोनों देशों के सांस्‍कृतिक वातावरण और महिलाओं को लेकर बहुसंख्‍यक समाज की सोच में बहुत ज्‍यादा फर्क नहीं है.

डॉ. टिमिंग का मानना है कि इस तरह के व्‍यवहार का महिलाओं के कॅरियर और प्रमोशन पर दूरगामी असर भी पड़ सकता है. इस अध्‍ययन में यह बात निकलकर आई कि पुरुषों में अब इस बात को लेकर काफी डर रहता है कि उन पर कोई आरोप न लग जाए. महिलाओं से बात करते हुए या वर्कप्‍लेस में उनके साथ व्‍यवहार करते हुए वे काफी सावधान रहते हैं. डॉ. टिमिंग कहते हैं कि यह तो हम सभी जानते हैं कि कॅरियर के शुरुआती दौर में मेंटरिंग कितनी महत्‍वपूर्ण है. वर्कस्किल से जुड़ी बहुत सारी चीजें हम काम करते हुए ही सीखते हैं. उस प्रक्रिया के भीतर ही उसमें महारत हासिल करते हैं. ऐसे में लड़कियों और महिलाओं को लेकर इस तरह की सोच या अनकहा डर उनके कॅरियर पर नकारात्‍मक असर डाल सकता है.

डॉ. टिमिंग कहते हैं, "पिछले दो सालों में दफ्तरों के वर्क कल्‍चर में काफी बदलाव हुआ है. पुरुष बॉस और सहकर्मी महिला सहकर्मियों के साथ किसी प्रोजेक्‍ट पर काम करने, उनका नेतृत्‍व करने या उनका मार्गदर्शन करने से कतराते हैं."

इस सर्वे की शुरुआत 2018 के अंत में अमेरिका में हुई. तब तक हार्वी वाइंस्‍टाइन केस और मीटू मूवमेंट को शुरू हुए एक साल हो चुका था. एक साल के भीतर इस मूवमेंट की लहर पूरी दुनिया में फैल गई थी. अमेरिका, ऑस्‍ट्रेलिया, यूरोप और एशिया के तकरीबन सभी देश इसकी चपेट में आ चुके थे. बड़ी संख्‍या में महिलाओं ने आगे बढ़कर कार्यस्‍थल पर अपने यौन उत्‍पीइड़न की कहानियां सुनाना शुरू किया. उन्‍होंने सोशल मीडिया का सहारा लिया और अपनी कहानी सुनाईं. ये सारी कहानियां एक कॉमन हैशटैग के साथ शेयर की जा रही थीं- #MeToo. यह टि्वटर का आधिकारिक आंकड़ा है कि 18 दिनों के भीतर ट्विटर पर इस हैशटैग से 17 मिलियन से ज्‍यादा ट्वीट हुए, जो अपने आप में एक रिकॉर्ड है. हैशटैग मीटू के बाद सिर्फ कोविड या कोरोना ही ऐसा हैशटैग रहा है, जिसके साथ सबसे ज्‍यादा संख्‍या में ट्वीट किए गए.
तो 2018 में इस सर्वे की शुरुआत हुई, जिसमें महिला कर्मियों के अलावा मैनेजेरियल पदों पर बैठे पुरुषों और महिलाओं दोनों को शामिल किया गया. सर्वे में दफ्तरों में काम करने वाली 18,000 महिलाओं से यह सवाल पूछा गया कि वर्कप्‍लेस पर कौन उनका मेंटर है और वह इस बात के साथ कितनी सहज हैं कि कोई बड़ी उम्र का पुरुष उनकी मेंटरिंग करे. इस सवाल के जवाब में महिलाओं का कहना था कि ऑफिस में पुरुष मेंटर और बॉस के साथ अब उनका इंटरेक्‍शन यानी मेलजोल और बातचीत एक-दो साल पहले के मुकाबले यानी मीटू मूवमेंट के बाद बहुत कम हो गया है.

हालांकि सिर्फ 11 फीसदी लड़कियों ने ये कहा कि वह किसी पुरुष बॉस या मेंटर के साथ काम नहीं करना चाहतीं. बाकी लड़कियों को इस बात से कोई परेशानी नहीं थी कि कोई पुरुष उनकी मेंटरिंग करे. उन्‍होंने यह भी कहा कि उचित और सही मेंटरिंग न मिलने का सीधा असर उनके कॅरियर पर भी पड़ रहा है.

सर्वे के दूसरे हिस्‍से में मैनेजेरियल पदों पर काम कर रहे 200 से ज्‍यादा मैनेजरों को 12 तस्‍वीरें दिखाई गईं और उनसे पूछा गया कि वो इनमें से किस इंप्‍लॉई की मेंटरिंग करना चाहेंगे. यह अलग-अलग जेंडर, उम्र और रूप-रंग वाले युवा कर्मियों की तस्‍वीरें थीं. इस सर्वे का नतीजा ये था कि अधिकांश पुरुष मैनेजरों ने मेंटरिंग के लिए लड़कों को चुना और महिला मैनेजरों ने लड़कियों की मेंटरिंग करने में ज्‍यादा रुचि दिखाई.

डॉ. टिमिंग कहते हैं कि हम पूरे दावे के साथ तो नहीं कह सकते कि इस तरह की सोच और व्‍यवहार के लिए पूरी तरह मीटू मूवमेंट ही जिम्‍मेदार है, लेकिन इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि उसका भी असर तो पड़ा है. साथ ही डॉ. टिमिंग इसे गलत भी बताते हैं. उनका कहना है कि लड़कियों को भी लड़कों के बराबर मौके और मेंटरिंग मिलनी चाहिए. तभी हम उन स्थितियों को भी जड़ से मिटा सकते हैं, जिनके कारण मीटू मूवमेंट जैसी स्थितियां पैदा हुईं.


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