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- चेले को साधने का...
भूपेंद्र सिंह| सच्चे गुरु की खोज में सब रहते हैं, पर सच्चे चेले के लिए कभी गंभीरता से खोज हुई हो, नहीं मालूम। साहित्य के विद्वानों से यह भारी चूक हुई है। जहां कठिन साधना से एक अच्छा-खासा गुरु साधा जा सकता है, वहीं उभरता हुआ चेला शायद ही किसी से सधा हो! सच तो यह है कि पहुंचा हुआ गुरु भी सामान्य क्वालिटी का ही चेला चाहता है। उन्नत किस्म का चेला कब शातिर हो जाए, कोई नहीं कह सकता। साहित्य में हमने गुरु-महिमा खूब पढ़ी और सुनी है। गुरुओं पर पुराणों के पन्ने रंग डाले गए हैं, पर मजाल है कि चेलों पर कुछ भी लिखा गया हो। साहित्य शुरू से ही गुरुओं के पक्ष में झुका रहा है। चेले हमेशा 'अंडररेट' किए गए। उन्हेंं 'गुरु बिन लहै न ज्ञान' कहकर भरमाया गया। जबकि सच तो यह है कि ज्ञान प्राप्त करने के लिए कोई चेला अपना वक्त बर्बाद नहीं करता। आजकल के गुरु इसीलिए 'ज्ञान' के बजाय 'सम्मान' बांट रहे हैं।