सम्पादकीय

म्यांमा को संदेश

Subhi
25 Dec 2021 1:42 AM GMT
म्यांमा को संदेश
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म्यांमा में लोकतंत्र बहाली को लेकर भारत ने रुख साफ कर दिया है। भारत ने म्यांमा के सैन्य शासन से साफ कह दिया है कि लोकतंत्र बहाल करना उसकी प्राथमिकता होनी चाहिए।

म्यांमा में लोकतंत्र बहाली को लेकर भारत ने रुख साफ कर दिया है। भारत ने म्यांमा के सैन्य शासन से साफ कह दिया है कि लोकतंत्र बहाल करना उसकी प्राथमिकता होनी चाहिए। अभी तक माना जा रहा था कि म्यांमा के मुद्दे पर भारत चुप है और इसे लेकर वह सैन्य शासकों से रिश्ते नहीं बिगाड़ना चाहता। पर भारत के विदेश सचिव हर्षवर्धन शृंगला ने अपने म्यांमा दौरे में सैन्य शासन से साफ कहा कि म्यांमा में सरकार जनता की इच्छा के अनुरूप होनी चाहिए।

गौरतलब है कि म्यांमा में जुंटा (सेना) ने इस साल फरवरी में निर्वाचित सरकार का तख्ता पलट दिया था और सत्ता अपने हाथ में ले ली थी। इसके बाद से देशभर में सैन्य सरकार के खिलाफ प्रदर्शन चल रहे हैं। म्यांमा में इस वक्त जो हालात हैं, वे चिंता पैदा करने वाले हैं। सेना के दमन और मानवाधिकारों के उल्लंघन की घटनाओं ने पूरी दुनिया का ध्यान खींचा है। अगर वहां लोकतांत्रिक सरकार होती है तो दोनों देशों के बीच संबंध कहीं ज्यादा सहज रहेंगे और आपसी सहयोग से लेकर दूसरे मुद्दों पर भी वार्ता कर पाना कहीं ज्यादा आसान होगा।
म्यांमा भारत के लिए महत्त्वपूर्ण पड़ोसी देश है। भारत म्यांमा के साथ एक हजार सात सौ किलोमीटर की सीमा साझा करता है। पूर्वोत्तर में उग्रवाद भारत के लिए बड़ी समस्या बना हुआ है। म्यांमा सीमा से होने वाली हथियारों और नशीले पदार्थों की तस्करी से पूर्वोत्तर राज्यों के लिए संकट खड़े हो गए हैं। उग्रवादी समूह भारत में हमलों को अंजाम देकर म्यांमा की सीमा में चले जाते हैं। भारतीय सेना का दावा है कि वहां उनके लिए सुरक्षित ठिकाने बने हुए हैं।
पाकिस्तान भी भारत में जाली मुद्रा भेजने के लिए म्यांमा के रास्ते का इस्तेमाल करता रहता है। इसलिए भारत के विदेश सचिव ने अपने दौरे में उग्रवाद का मुद्दा भी पुरजोर तरीके से उठाया। पिछले महीने ही मणिपुर के चंद्रचूड़ जिले में भारतीय सेना टुकड़ी पर उग्रवादियों ने हमला कर दिया था। इसमें तो कोई संदेह नहीं कि म्यांमा के सैन्य शासन को चीन का समर्थन हासिल है और सीमाई इलाकों में अशांति फैलाने के लिए चीन म्यांमा की जमीन का इस्तेमाल करता है।
म्यांमा को लेकर भारत का ताजा रुख इसलिए भी अहम है कि सैन्य तख्तापलट के बाद विदेश सचिव पहली बार म्यांमा गए हैं। इस ग्यारह महीने में म्यांमा के हालात पहले से ज्यादा अशांत हैं। देश के भीतर अलगाववाद की समस्या और बढ़ी है। अलग प्रांत और स्वायत्तता की मांग को लेकर जातीय समूहों का गुरिल्ला युद्ध जारी है। लोकतंत्र बहाली को लेकर जारी आंदोलन बता रहा है कि अगर सैन्य शासन ने जल्द चुनाव करवाने का फैसला नहीं किया तो देश में हिंसक प्रदर्शन और तेज हो सकते हैं। अमेरिका और दूसरे पश्चिमी देशों ने म्यांमा के सैन्य शासन के खिलाफ प्रतिबंध लगा ही रखे हैं। इससे मानवीय संकट और गहरा गए हैं।
हालांकि म्यांमा के पुराने पड़ोसी और शुभचिंतक के नाते भारत ने उसे दस हजार टन गेहूं और चावल सहित हर तरह की मानवीय मदद देने का भरोसा दिया है। म्यांमा को भारत की इस भूमिका का महत्त्व समझना चाहिए। लेकिन भारत को लेकर म्यांमा के सैन्य शासकों के रुख में बदलाव आसानी से नहीं आने वाला। भारत के विदेश सचिव को आंग सांग सू की से मुलाकात करने की इजाजत नहीं देकर सैन्य शासकों ने इसका संकेत दे दिया है। जाहिर है, म्यांमा में लोकतंत्र की बहाली फिलहाल दूर की बात है।

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