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- चीन को संदेश
वैसे तो क्वाड की स्थापना के पीछे फौरी मकसद चीन कभी नहीं था। लेकिन पिछले दो-तीन साल में जिस तरह से हालात बदले हैं और चीन ने अमेरिका सहित ज्यादातर देशों के साथ जो कुटिलता भरा रवैया अपनाया है, उसका जवाब देने और हालात से निपटने के लिए अब क्वाड महत्त्वपूर्ण कूटनीतिक समूह का रूप ले चुका है। अमेरिका और चीन के बीच तीन साल से चल रहे व्यापार युद्ध ने दुनिया पर खासा असर डाला है। भारत का चीन के साथ पुराना सीमा विवाद तो है ही, हाल में पूर्वी लद्दाख में चीन ने भारतीय क्षेत्र में घुसपैठ कर जवानों पर हमले भी किए। पिछले चार दशक में पहली बार चीन ने भारत के खिलाफ इतना ज्यादा आक्रामक रुख दिखाया। जापान के साथ भी चीन का पुराना विवाद रहा है और हाल में आॅस्ट्रेलिया-चीन के रिश्तों में भी खटास आई है। और सबसे बड़ी बात तो यह कि कोरोना के मसले पर चीन से दुनिया के ज्यादातर देश खफा चल रहे हैं। इसमें कोई संदेह नहीं कि क्वाड के चारों सदस्य देशों के लिए चीन एक बड़ी चुनौती बना हुआ है। क्वाड समूह की चिंता दक्षिण चीन सागर में चीन के सैन्य अड्डों को लेकर है। संपूर्ण हिंद प्रशांत क्षेत्र पर वह नजरें गड़ाए हुए है। ऐसे में उसकी बढ़ती ताकत पर कोई एक अकेला देश लगाम नहीं लगा सकता, उसके लिए क्वाड जैसे सशक्त समूह की कूटनीतिक और सैन्य ताकत की ही जरूरत है।
क्वाड समूह में भारत एक महत्त्वपूर्ण सहयोगी सदस्य के रूप में सामने आया है। तीनों ही सदस्य देशों के साथ भारत के अच्छे रिश्ते हैं। भारत की चिंता हिंद महासागर में चीन के बढ़ते कदमों को लेकर है। चीन की सारी ताकत इस वक्त महासागरों पर कब्जा करने में लगी है। उसके ये कदम युद्ध के हालात पैदा कर सकते हैं। इसमें कोई संदेह नहीं कि क्वाड की सक्रियता ने हिंद प्रशांत क्षेत्र में चीन को बढ़ने से रोका है। भारत ने पिछले साल भारत-प्रशांत महासागर पहल का जो प्रस्ताव रखा था, उसे जापान ने मान लिया है। इसके अलावा जापान भारत के साथ 5-जी तकनीक और सूचना तकनीक के क्षेत्र में काम करेगा। भारत के सामने अभी बड़ी चुनौती यह है कि श्रीलंका, मालद्वीव, बांग्लादेश, नेपाल और पाकिस्तान में चीन की गहरी पैठ बन चुकी है और इनके जरिए वह भारत को घेरने में लगा है। ऐसे में भारत को अमेरिका, आॅस्ट्रेलिया और जापान का साथ जरूरी है।