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इस लक्ष्य से हम कितने दूर हैं, यह आम बोलचाल और व्यवहार में इन लोगों के लिए प्रचलित शब्दों से ही नहीं, इस बात से भी पता चलता है कि इसके लिए आवश्यक इन्फ्रास्ट्रक्चर के निर्माण में हम बहुत पीछे हैं।
इस लक्ष्य से हम कितने दूर हैं, यह आम बोलचाल और व्यवहार में इन लोगों के लिए प्रचलित शब्दों से ही नहीं, इस बात से भी पता चलता है कि इसके लिए आवश्यक इन्फ्रास्ट्रक्चर के निर्माण में हम बहुत पीछे हैं।
तोक्यो पैरालिंपिक्स में अवनि लेखरा ने आर 2 विमिंस 10 मीटर एयर राइफल स्टैंडिंग एसएच1 इवेंट में गोल्ड मेडल जीतकर इतिहास रच दिया। वह पैरालिंपिक्स में गोल्ड जीतने वाली पहली भारतीय महिला खिलाड़ी हैं। सोमवार को ही सुमित एंटील ने जेवलिन थ्रो एफ 64 कैटिगरी में वर्ल्ड रेकॉर्ड बनाते हुए देश को दूसरा गोल्ड दिलाया। इससे पहले भाविनाबेन पटेल ने विमिन्स सिंगल क्लास 4 टेबल टेनिस इवेंट में सिल्वर जीता, जो पैरालिंपिक्स में देश का पहला टेबल टेनिस मेडल है। यही नहीं योगेश कठुनिया ने डिस्कस थ्रो में और निषाद कुमार ने मेंस हाई जंप टी 47 इवेंट में सिल्वर जीते हें। सिल्वर देवेंद्र झांझरिया भी ले आए जैवलिन थ्रो में। हालांकि उनसे गोल्ड की उम्मीद बनी हुई थी, इसलिए उनका सिल्वर अपने साथ हलकी सी मायूसी भी लाया।
बहरहाल, तोक्यो पैरालिंपिक्स में भारत के अब तक 7 मेडल हो चुके हैं। मेडल सूची में भारत 34वें स्थान पर है। पदक संख्या और स्थान दोनों के लिहाज से यह अब तक का भारत का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन है। हमारे खिलाड़ियों का जज्बा और प्रदर्शन वाकई गर्व करने लायक है। खासकर इसलिए कि एक देश और समाज के रूप में हमने शारीरिक रूप से किसी न किसी तरह की अक्षमता के शिकार लोगों के साथ सम्मानपूर्ण और बराबरी का व्यवहार करना अब तक नहीं सीखा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जरूर ऐसे लोगों को दिव्यांग नाम देकर समाज की उनके प्रति दृष्टि बदलने की कोशिश की, लेकिन यह कोशिश तब तक कामयाब नहीं मानी जा सकती, जब तक समाज के ऐसे सदस्यों को लेवल प्लेइंग फील्ड उपलब्ध नहीं करा दिया जाता।
इस लक्ष्य से हम कितने दूर हैं, यह आम बोलचाल और व्यवहार में इन लोगों के लिए प्रचलित शब्दों से ही नहीं, इस बात से भी पता चलता है कि इसके लिए आवश्यक इन्फ्रास्ट्रक्चर के निर्माण में हम बहुत पीछे हैं। 2011 की जनगणना के मुताबिक 2.68 करोड़ लोग शारीरिक रूप से अक्षम की श्रेणी में पाए गए, जिनमें से 20 फीसदी को चलने-फिरने की दिक्कत थी और 19 फीसदी दृष्टिबाधित थे। साल 2015 में ऐक्सेसिबल इंडिया कैंपेन लॉन्च हुआ, जिसका मकसद ट्रांसपोर्ट, पब्लिक स्पेस और आईटी इन्फ्रास्ट्रक्चर को दिव्यांग समुदाय के अनुकूल बनाना था। इस कैंपेन की चींटी जैसी रफ्तार का यह आलम है कि एक संसदीय समिति की रिपोर्ट के मुताबिक चिह्नित की गई बिल्डिंगों में से अब तक मात्र 29.7 फीसदी को ही दिव्यांग समुदाय के लिए ऐक्सेसिबल बनाया जा सका है।
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