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अब उसी मुजफ्फरनगर में जुटे लाखों का किसानों ने ‘अल्ला-हो-अकबरः हर हर महादेव’ का नारा लगाया
By NI एडिटोरियल।
Kisan Mahapanchayat in Muzaffarnagar ये आंदोलन निकट भविष्य में निर्णायक साबित होगा, ये कहना कठिन है। बल्कि ये आंदोलन यूपी के अगले चुनाव नतीजों को कितना प्रभावित कर पाएगा, इसको लेकर भी संदेह करने के ठोस आधार हैं। लेकिन दीर्घकालिक नजरिए से इस आंदोलन ने एक जनतांत्रिक उम्मीद जगाई है, उसमें कोई शक नहीं है।
मुजफ्फरनगर में आयोजित हुई विशाल किसान पंचायत ने यह बात सबके सामने साबित की कि अपनी शुरुआत के एक साल बीत जाने के बाद भी किसान आंदोलन का दम बरकरार है। बल्कि अब आंदोलनरत किसानों में अपने उद्देश्य के प्रति अधिक संकल्प भावना आई है। हालांकि उनका मुख्य विरोध पिछले साल पारित कराए गए तीन कृषि कानूनों के प्रति है, लेकिन ये कानून आखिर बने क्यों, उनकी आर्थिक-राजनीतिक पृष्ठभूमि क्या है, इस बात की समझ किसानों में अब अधिक गहरी हो गई दिखती है। इसलिए कृषि कानूनों का उनका विरोध अब एक अधिक ठोस शक्ल में नजर आता है। मुजफ्फरनगर वह जगह है, जहां से समझा जाता है कि 2013 में उभर रही मोदी लहर को खास हवा मिली थी। पृष्ठभूमि वहां हुए हिंदू-मुस्लिम दंगों से बनी या कहें बनाई गई। अब उसी मुजफ्फरनगर में जुटे लाखों का किसानों ने 'अल्ला-हो-अकबरः हर हर महादेव' का नारा लगाया।
किसान नेता राकेश टिकैत ने लोगों से संकल्प लेने को कहा कि अब कभी दंगा नहीं होगा। यह साधारण बात नहीं है। बल्कि इसमें ये समझ जाहिर होती है कि जब तक दंगा या सामाजिक द्वेष का माहौल नियंत्रित नहीं होगा, भारतीय जनता पार्टी को सियासी मैदान में चुनौती देना लगभग असंभव बना रहेगा। इसके अलावा किसान आंदोलन ने उस पॉलिटिक इकॉनमी की भी गजब की समझ दिखाई है, जिसका परिणाम ये कृषि कानून हैं। इस लिहाज से कहा जा सकता है कि भले अभी किसान और उनके समर्थक जन समुदायों के निशाने पर भाजपा सरकारें हैं, लेकिन अगर दूसरे दलों ने इस पॉलिटिकल इकॉनमी का विकल्प पेश नहीं किया, तो उनकी सरकारें भी (अगर वे कभी भविष्य में बनीं तो) इस आंदोलन के निशाने पर रहेंगी। अब ये बात बेशक कही जा सकती है कि आजाद भारत के इतिहास में आर्थिक मुद्दों पर केंद्रित इतना बड़ा और इतना लंबा चला जन आंदोलन कभी नहीं हुआ। तो राजनीतिक दलों को इससे संदेश ग्रहण करना चाहिए कि जमीनी स्तर पर अपने वर्ग हितों को लेकर आखिरकार एक नई जन चेतना पैदा हो रही है। ये आंदोलन और ये चेतना निकट भविष्य में निर्णायक साबित होगी, ये कहना अभी कठिन है। बल्कि ये आंदोलन उत्तर प्रदेश के अगले चुनाव नतीजों को कितना प्रभावित कर पाएगा, इसको लेकर भी संदेह करने के ठोस आधार हैं। लेकिन दीर्घकालिक नजरिए से इस आंदोलन ने एक जनतांत्रिक उम्मीद जगाई है, उसमें कोई शक नहीं है।
Gulabi
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