सम्पादकीय

संदेश का जरिया

Subhi
11 Oct 2022 6:19 AM GMT
संदेश का जरिया
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आज लोगों ने हाथों से चिट्ठियां लिखना छोड़ दिया है। अब ईमेल वाट्सऐप और सोशल मीडिया इंटरनेट के माध्यम से मिनटों में लोगों में संदेश का आदान-प्रदान हो जाता है। नौ अक्तूबर को पूरी दुनिया में विश्व डाक दिवस के तौर पर मनाया गया। लेकिन सच यह है कि आज डाक के जरिए लोगों की चिट्ठियां गिनती की ही आती हैं।

Written by जनसत्ता; आज लोगों ने हाथों से चिट्ठियां लिखना छोड़ दिया है। अब ईमेल वाट्सऐप और सोशल मीडिया इंटरनेट के माध्यम से मिनटों में लोगों में संदेश का आदान-प्रदान हो जाता है। नौ अक्तूबर को पूरी दुनिया में विश्व डाक दिवस के तौर पर मनाया गया। लेकिन सच यह है कि आज डाक के जरिए लोगों की चिट्ठियां गिनती की ही आती हैं। धनादेश या मनीआर्डर भी बंद हो गए हैं। मगर अब डाक से अन्य सरकारी विभागों से संबंधित कागजात बैंकों एवं अन्य संस्थाओं के काफी संख्या में आने से डाक विभाग का महत्त्व एक बार फिर से बढ़ गया है।

बदलते हुए तकनीकी दौर में दुनिया भर की डाक व्यवस्थाओं ने मौजूदा सेवाओं में सुधार करते हुए खुद को नई तकनीकी सेवाएं के साथ जोड़ा है। तमाम उतार-चढ़ाव के बावजूद देश आम जनता का इतना जनविश्वास अर्जित करने वाली कोई और संस्था नहीं है। यह कुछ सालों में नहीं बनी है, बल्कि इसके पीछे डाक विभाग के कर्मियों का बरसों और दशकों का श्रम है और लगातार प्रदान की जा रही सेवा है। आज भले ही लोग इंटरनेट के जरिए तुरंता संदेश की दुनिया में गुम हो गए हैं, लेकिन यह याद रखने की जरूरत है कि डाक सेवा की अपनी अहमियत है, जिसकी बुनियाद पर ही आज की तकनीकी दुनिया खड़ी हो सकी है।

जब तक हिंदी को मानक स्वरूप नहीं दिया जाएगा, तब तक उसको वैश्विक भाषा के तौर पर स्थापित करना कठिन होगा। यह सच भी है कि हिंदी में वैज्ञानिक भाषा समाहित है। अंग्रेजी भाषा में यह खूबी देखने को नहीं मिलती। इसमें शब्दों के उच्चारण सिर के अंगों से निकलते है। जैसे कंठ से निकलने वाले शब्द, तालू से, जीभ से जब जीभ तालू से लगती, जीभ के मूर्धा से, जीभ को दांतों से लगने पर, होठों के मिलने पर निकलने वाले शब्द। अ, आ आदि शब्दावली से निकलने वाले शब्द इसी प्रक्रिया से बनकर निकलते है। इसी कारण हमें अपनी भाषा पर गर्व है।

वर्तमान में शुद्ध हिंदी खोने लगी है जो कि चिंतनीय पहलू है। हिंदी के सरलीकरण के लिए अंग्रेजी व अन्य भाषाओं की घुसपैठ हिंदी भाषा को धीरे-धीरे कमजोर बनाकर उसे गुमनामी के अंधेरों में ले जाकर छोड़ देगी और हम हिंदी की दुर्दशा पर हम आंसू बहाते नजर आएंगे। सवाल यह भी उठता है कि क्या हिंदी शब्दकोश खत्म हो गया? वर्तमान में हिंदी के बोलने, लिखने में अंग्रेजी और अन्य भाषाओं की मिलावट होने से उसे अब अलग करने में काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है। हिंदी के लिए अभियान चलाने वालों के सामने इसे अलग करना दुष्कर कार्य होगा।


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