सम्पादकीय

दया धर्म का मूल है…

Gulabi
13 Nov 2021 4:44 AM GMT
दया धर्म का मूल है…
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13 नवंबर का दिन पूरे विश्व में दयालुता दिवस के रूप में मनाया जाता है

13 नवंबर का दिन पूरे विश्व में दयालुता दिवस के रूप में मनाया जाता है। वर्तमान समय में सारा विश्व जिस दौर से गुजर रहा है, उसे दयालुता की भावना अपनाने की बहुत आवश्यकता है। हर तरफ अशांति, कोहराम और भ्रष्टाचार फैला हुआ है। हर मनुष्य अपनी स्वार्थ सिद्धि में लगा हुआ है और इसके लिए वह किसी भी हद तक गुजरने को तैयार हो जाता है। यहां तक कि वह अपनी स्वार्थ सिद्धि के लिए मनुष्य से पशु भी बन जाता है और आज मनुष्य ही मनुष्य का शत्रु बनता जा रहा है। ऐसे में आज मनुष्य को ऐसी शिक्षा की आवश्यकता है जो उसे मनुष्य बना सके और सबके प्रति दयालुता की भावना उसमें जगाई जा सके।


पूरे विश्व में फैले हुए आतंकवादी संगठनों ने विश्व को भयभीत कर रखा है और ऐसे संगठन क्रूरता की सीमाएं लांघ चुके हैं। सन् 2001 में अमेरिका में वर्ल्ड ट्रेड सेंटर पर हुए हमले और भारत में संसद भवन पर हुए हमले तथा सन् 2008 में मुंबई में हुए हमले ऐसी ही कुछ दुखद यादें हैं, जिन्हें भुलाना आसान नहीं है। वर्तमान समय के हालात भी विश्व की दुखद स्थिति बता रहे हैं। आतंकवादी संगठनों की क्रूरता जगजाहिर है। इनसानों की हत्या करना और आतंक फैलाना उनके लिए सामान्य बात है। कई संगठन धर्म की आड़ में ऐसे सैनिक तैयार कर रहे हैं, जो व्यक्तियों की जान लेना और जान देना अपना धर्म समझते हैं। वास्तव में ये लोग मानव धर्म से विमुख होते जा रहे हैं।

उनके मन में किसी भी जीव के प्रति दयालुता के भाव नहीं रहे हैं। आज का मनुष्य अन्य जीवों के प्रति भी क्रूर होता जा रहा है। अपने स्वार्थ के लिए अन्य जीवों को पालना और फिर आवश्यकता पूरी हो जाने पर या तो उनकी हत्या कर देना या उन्हें भूखा मरने के लिए खुला छोड़ देना उसके लिए आम बात हो गई है। स्त्रियों और बच्चों की दशा भी वर्तमान समय में बहुत दयनीय है। यहां तक कि कुछ मामलों में वे घर-परिवारों में भी सुरक्षित नहीं हैं और यदि वे विद्रोह करके घर से भाग जाते हैं तो बाहर बैठे भेडि़ए भी उन पर घात लगाने को तैयार रहते हैं। ऐसी स्थिति में दयालुता का पाठ पढ़ाना जरूरी हो गया है।
-यश गोरा, कांगड़ा


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