सम्पादकीय

महबूबा की 'उल्टी तहरीर'

Gulabi
25 Oct 2020 4:28 AM GMT
महबूबा की उल्टी तहरीर
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जाहिर है कि धारा 370 समाप्त होने से पहले सभी राजकीय भवनों व समारोहों में तिरंगे के साथ कश्मीरी झंडा भी फहरता था

जनता से रिश्ता वेबडेस्क। जम्मू-कश्मीर पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी की अध्यक्ष पूर्व मुख्यमन्त्री श्रीमती महबूबा मुफ्ती ने अपनी लम्बी नजरबन्दी से रिहा होने के बाद जिस तरह का बयान धारा 370 को लेकर दिया है वह निश्चित रूप से राष्ट्रीय हितों के विरुद्ध है क्योंकि उन्होंने राष्ट्रीय ध्वज तिरंगे को तब तक न फहराने का अहद किया है जब तक कि जम्मू-कश्मीर राज्य का अपना ध्वज बहाल नहीं हो जाता। जाहिर है कि धारा 370 समाप्त होने से पहले सभी राजकीय भवनों व समारोहों में तिरंगे के साथ कश्मीरी झंडा भी फहरता था जो अब बन्द हो चुका है। विगत वर्ष 5 अगस्त को जब भारत की संसद ने संविधान से धारा 370 को समाप्त करने का फैसला किया था और जम्मू-कश्मीर राज्य के पुनर्गठन का प्रस्ताव पारित किया था तो बहुत स्पष्ट था कि यह राज्य अपना वह विशेष दर्जा खो देगा जो इसके भारतीय संघ में विलय होते समय बनी विशेष परिस्थितियों की वजह से दिया गया था। यह हकीकत है कि 15 अगस्त, 1947 को जब हिन्दोस्तान ब्रिटिश दासता से स्वतन्त्र हुआ तो इसके दो टुकड़े भारत व पाकिस्तान के रूप में किये गये और इन दोनों के बीच में ही स्थित जम्मू-कश्मीर रियासत एक स्वतन्त्र रियासत थी परन्तु 22 अक्टूबर, 1947 को जब पाकिस्तान की फौज ने अपने क्षेत्र के कबायलियों को आगे करके जम्मू-कश्मीर पर हमला किया तो 26 अक्टूबर को इस रियासत के महाराजा हरिसिंह ने अपनी पूरी रियासत का विलय भारतीय संघ में कुछ विशेष शर्तों के साथ किया जो दो वर्ष बाद अनुच्छेद 370 के रूप में भारतीय संविधान में नत्थी की गई मगर इन्हें नत्थी करते समय ही यह साफ कर दिया गया था कि यह 'अस्थाई' प्रावधान है। इसके चलते जम्मू-कश्मीर के लिए अलग संविधान की व्यवस्था के साथ ही अलग नागरिकता कानून को भी रखा गया मगर हर सूरत में इस राज्य का भारतीय संघ में विलय अन्तिम था। विलय की यही अन्तर्धारा इस राज्य को भारत से जोड़ती थी और सुनिश्चित करती थी कि हर कश्मीरी पहले भारतीय है बाद में कश्मीरी।

हालांकि कुछ राजनीतिक शास्त्री इसे उल्टा करके पेश करने की कोशिश करते हैं मगर वे गलत हैं क्योंकि आजादी से केवल एक दिन पहले ही दक्षिण भारत की मैसूर रियासत का विलय 14 अगस्त, 1947 को भारतीय संघ में हुआ था और उसके महाराजा को भी वे ही अधिकार राज प्रमुख (सदरे रियासत) होने के दिये गये थे जो कश्मीर के महाराजा को दिये गये थे, फर्क सिर्फ इतना था कि जम्मू-कश्मीर के लिए पृथक संविधान को स्वीकारा गया। यह कश्मीर को देश के सभी राज्यों में निश्चित रूप से अलग दर्जा देता था मगर यह अस्थायी व अल्पकालिक था। इसका मतलब यही निकलता है कि यह प्रावधान विशेष परिस्थितियों को देखते हुए बनाया गया था। इसका मन्तव्य यह भी निकलता है कि 1947 में हमारे राष्ट्र निर्माताओं को ही यह स्पष्ट था कि ये प्रावधान लम्बे समय तक जारी नहीं रह सकते हैं और परिस्थितियों के सामान्य होते ही जम्मू-कश्मीर के विशेष दर्जे की आवश्यकता समाप्त हो जायेगी। ऐसा कालान्तर में हमने होते भी देखा जब 1965 के भारत-पाक युद्ध से पूर्व जम्मू-कश्मीर के शासन प्रमुख को प्रधानमन्त्री (वजीरे आजम) की जगह मुख्यमन्त्री (वजीरे आल्हा) और राज प्रमुख को सदरे रियासत की जगह राज्यपाल कहा जाने लगा। और चुनाव आयोग से लेकर सर्वोच्च न्यायालय का कार्य क्षेत्र इस राज्य तक विस्तारित हुआ। ये सब परिस्थितियों में परिवर्तन की वजह से ही होता रहा जिसे हम परिवर्तन प्रक्रिया भी कह सकते हैं। अतः 5 अगस्त, 2019 को जब भारत की संसद ने इसके विशेष दर्जे को समाप्त किया तो हम इस परिवर्तन की प्रक्रिया में आगे चल रहे थे और समूचे जम्मू-कश्मीर के राज्य के लोगों को आगे की ओर ले जाना चाहते थे मगर महबूबा मुफ्ती कह रही हैं कि उन्हें 26 अक्टूबर, 1947 वाला जम्मू-कश्मीर चाहिए जिस दिन इसके भारतीय संघ में विलय पर हस्ताक्षर हुए थे। यह उल्टी दिशा में जाने की प्रक्रिया है जो विज्ञान के नियम के अनुसार असंभव होती है।

वह उसी भारतीय जनता पार्टी के साथ गठबन्धन करके राज्य की मुख्यमन्त्री रही है जिसके चुनाव घोषणापत्र में 1951 से ही कश्मीर में धारा 370 को समाप्त करने का वचन चला आ रहा है। इसके साथ यह भी रिकार्ड में दर्ज हो चुका है कि जब 5 अगस्त, 2019 को संसद में जम्मू-कश्मीर का विशेष दर्जा समाप्त किया जा रहा था तो गृह मन्त्री श्री अमित शाह ने उनकी पार्टी समेत राज्य की अन्य पार्टियों के सांसदों को भी चुनौती दी थी कि वे यह बतायें कि धारा 370 के लागू रहते उनके राज्य और राज्य के लोगों को क्या लाभ पहुंचा है तो एक भी सांसद नहीं बोला था। इससे भी ऊपर सवाल यह था कि कश्मीरी नागरिकों को वे समान नागरिक अधिकार विशेष दर्जे के लागू रहते नहीं मिल पाते थे जिनका प्रावधान हमारे संविधान में बाबा साहेब अम्बेडकर करके गये थे। हां बात समझ में आती अगर श्रीमती मुफ्ती यह मांग करती कि जम्मू-कश्मीर को केन्द्र प्रशासित क्षेत्र की जगह पूर्ण राज्य का दर्जा दिया जाये मगर वह तो उल्टी तहरीर लिख कर कश्मीरियों को गफलत में डालना चाहती हैं, जबकि असली सवाल कश्मीरियों के ही भारत में घुल-मिल कर तरक्की करने का है।

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