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- महबूबा का 'खालिस'...

आदित्य चौपड़ा। मोहतरमा महबूबा मुफ्ती मुगालते में है अगर वह यह समझती हैं कि कश्मीर के लोगों को अनुच्छेद 370 का खिलौना दिखा कर वह फिर से रियासत की अवाम में मकबूलियत ( लोकप्रियता) हासिल कर सकती हैं। यह मुगालता बेशक उन्हें हो सकता है मगर रियासत की दानिशमन्द अवाम को नहीं हो सकता क्योंकि यह मामला मुल्क की सबसे बड़ी अदालत 'सर्वोच्च न्यायालय' में काबिले गौर है। 370 को हटाया जाना उसी संसद में हुआ है जो इस मुल्क की खुद मुख्तार 'एवान' है और इसमें पास किये गये किसी भी कानून को सिर्फ सर्वोच्च न्यायालय में ही चुनौती दी जा सकती है। अब मोहतरमा एक तरफ यह फरमा रही हैं कि 1947 में संविधान ने जो खास रुतबा रियासत को दिया था उसे बरकरार रखना संविधान की रूह से ही निकलता है जबकि दूसरी तरफ संसद ने इसे खत्म करके संविधान की रूह से ही काम लिया है जिसकी तसदीक सिर्फ सर्वोच्च न्यायालय में ही हो सकती है। हालात बिल्कुल साफ हैं कि 370 का दारोमदार अब अदालत पर है, सड़कों पर इसका शोर मचा कर कुछ नहीं हो सकता। इस बाबात महबूबा मुफ्ती को यह कबूल करना होगा कि उन्हें भारत के संविधान पर यकीन है। अगर उन्हें कश्मीरियों और कश्मीरियत की इतनी ही फिक्र है तो उन्हें कौल देनी चाहिए कि पाकिस्तान के कब्जे में पड़े जम्मू-कश्मीर के इलाके को जल्द से जल्द से छुड़ा कर बाकी उस कश्मीर के हवाले किया जाये जिसका विलय महाराजा हरि सिंह ने 26 अक्तूबर, 1947 को भारत में किया था। वह मौजूदा कश्मीर के बारे में पाकिस्तान से बातचीत की हिमायत किस बिना पर कर रही हैं जबकि पाकिस्तान की हैसियत कश्मीर के एतबार से एक हमलावर मुल्क के अलावा और कुछ नहीं है।