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सम्पादकीय
ग्रीस के जरिये भारत का भूमध्यसागरीय राजनय, दोनों देशों के बीच संबंधों की पृष्ठभूमि
Tara Tandi
5 July 2021 6:36 AM GMT
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पूर्वी भूमध्यसागरीय क्षेत्र में भारत के राजनय को अधिक मजबूती देने और अपेक्षित परिणामों की प्राप्ति के लिए पिछले 18 वर्षो में पहली बार किसी भारतीय विदेश मंत्री ने ग्रीस की यात्र की है।
जनता से रिश्ता वेबडेस्क | विवेक ओझा। पूर्वी भूमध्यसागरीय क्षेत्र में भारत के राजनय को अधिक मजबूती देने और अपेक्षित परिणामों की प्राप्ति के लिए पिछले 18 वर्षो में पहली बार किसी भारतीय विदेश मंत्री ने ग्रीस की यात्र की है। ग्रीस के साथ भारत के रिश्ते मजबूत हों, इसके लिए भारत सरकार के मन में यह चल रहा था कि ग्रीस के साथ भारत के संबंधों को सामरिक साङोदारी के स्तर पर पहुंचाया जाए और हाल ही में भारतीय विदेश मंत्री की ग्रीस यात्र के दौरान दोनों देशों में यह सहमति बनी कि वर्तमान विश्व और क्षेत्रीय राजनीति की भू-राजनीतिक, भू-सामरिक और भू-आíथक सच्चाइयों को देखते हुए दोनों देशों के बीच रणनीतिक साङोदारी की जाए।
हाल ही में जब भारत के विदेश मंत्री द्वारा ग्रीस से चर्चा शुरू हुई तो उसके कुछ सकारात्मक परिणाम निकल कर आए। सबसे महत्वपूर्ण परिणाम यह आया कि ग्रीस ने भारत के नेतृत्व वाले 'इंटरनेशनल सोलर अलायंस' में शामिल होने की घोषणा की। ग्रीस का यह निर्णय इस लिहाज से अहम है कि इससे चीन के साथ ग्रीस के एनर्जी पार्टनरशिप को सही दिशा देने का एक नैतिक दबाव भी पड़ेगा, क्योंकि अंतरराष्ट्रीय सौर संगठन एक नियम आधारित और बेहतर सार्थक लक्ष्यों वाला संगठन है। इंटरनेशनल सोलर अलायंस के बीजिंग स्थित ब्रिक्स के न्यू डेवलपमेंट बैंक के साथ ऊर्जा साङोदारियां होती रही हैं। ऐसे में ग्रीस भारत के वैश्विक ऊर्जा सुरक्षा विजन में सहयोग दे सकेगा। भारत वैश्विक ऊर्जा ग्रिड की भी संकल्पना पेश कर चुका है। ग्रीस और उसके पड़ोस के राष्ट्रों में भारत की सोच को समर्थन, सम्मान मिले, इसके लिए विकसित हो रहे भारत ग्रीस संबंध काफी महत्वपूर्ण हैं।
भारत ग्रीस संबंध और चीन समीकरण : ग्रीस यूरोप में चीन का महत्वपूर्ण आíथक सामरिक सहयोगी रहा है। दोनों देशों के बीच रिश्ते हाल के वर्षो में काफी मजबूत हुए हैं। यूरोप में चीन के 'बेल्ट रोड' पहल की सबसे महत्वपूर्ण कड़ी के रूप में ग्रीस है। ग्रीस ने अपने पीरियस बंदरगाह को चीन द्वारा संचालित करने की मंजूरी भी दे दी है। चीन के शिपिंग फर्म कोस्को को 2016 में इस बंदरगाह में सर्वाधिक हिस्सेदारी भी मिली थी। यह बंदरगाह एशिया और यूरोपीय महाद्वीपों के मध्य सामरिक महत्व की जगह पर अवस्थित है। भारत के विदेश मंत्री ने ग्रीस के विदेश मंत्री के साथ इन्हीं बातों को ध्यान में रखकर पूर्वी भूमध्यसागरीय क्षेत्र, साइप्रस और लीबिया में घटित घटनाओं पर चर्चा की और क्षेत्रीय स्थिरता के प्रयासों को खोजने पर बल दिया। दोनों देश इस बात पर सहमत हुए कि विधि के शासन, संप्रभुता और प्रादेशिक अखंडता के प्रति सम्मान के महत्व को राष्ट्र समङों। कट्टरता, हिंसक उग्रवाद, आतंकवाद और खासकर सीमा पार आतंकवाद के द्वारा सामने आए खतरों की गंभीरता पर दोनों देशों ने बात की और सहमत हुए कि इस संबंध में मिल-जुल कर कार्य करने की जरूरत है।
ग्रीस ने भारत की संयुक्त राष्ट्र में स्थायी सदस्यता का समर्थन किया और साथ ही संयुक्त राष्ट्र की संरचना और कार्यो में अपेक्षित सुधारों के लिए भी अपनी मंशा जाहिर की। भारत लंबे समय से संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में स्थायी सदस्यता को पाने के लिए प्रयास में लगा है, पर उसे चीन और उसके कॉफी क्लब समेत कई अन्य देशों के विरोध का सामना करना पड़ता है। दरअसल कॉफी क्लब के सदस्य नहीं चाहते कि जी-4 देश (भारत, जापान, जर्मनी, ब्राजील) सुरक्षा परिषद के स्थायी सदस्य बन पाएं। यूनाइटिंग फॉर कंसेंसस जिसे कॉफी क्लब भी कहते हैं इसमें 12 देश शामिल हैं। इसमें मुख्य हैं, पाकिस्तान, तुर्की, इटली, मेक्सिको, अर्जेटीना, इजिप्ट, स्पेन। सुरक्षा परिषद की स्थायी सदस्यता में विस्तार का ये देश विरोध करते हैं।
भारत का विजन : भारत के विदेश मंत्री ने ग्रीस के साथ भू-राजनीतिक और भू-आíथक वास्तविकताओं पर चर्चा की। भारतीय राजनय की यही कुशलता है कि इस चर्चा के दौरान भारत ने ग्रीस को इंडो पैसिफिक स्ट्रेटेजी और विजन के महत्व को इस प्रकार समझाया कि ग्रीस ने भारत के साथ इंडो पैसिफिक विजन पर हस्ताक्षर कर दिया। भारत ने ग्रीस को जिस रूप में मुक्त, खुले, समावेशी और सहयोगी इंडो पैसिफिक रणनीति के बारे में अपनी राय व्यक्त की, उसका असर ग्रीस पर पड़ा। अभी कुछ समय पूर्व ही ग्रीस और उसके पड़ोसी तुर्की के बीच सागरीय क्षेत्र के स्वामित्व को लेकर विवाद हो गया था। तुर्की ने ग्रीस के अनन्य आíथक क्षेत्र पर अपना दावा कर दिया था और ग्रीस ने कहा था कि संयुक्त राष्ट्र सागरीय नियमों व कानूनों के तहत उस पर ग्रीस का ही अधिकार है। निश्चित रूप से भारत जिस प्रकार सभी देशों की सागरीय संप्रभुता और स्वायत्तता का समर्थन करता रहा है, ग्रीस भारत की उस उच्च कोटि की प्रतिबद्धता से परिचित रहा है। भारत ने अपने मजबूत सामरिक साङोदार ब्रिटेन की नाराजगी को न देखते हुए कुछ समय पहले चागोस द्वीप पर मॉरीशस के जायज हक का समर्थन किया था। ग्रीस के भी जायज सागरीय हक में भारत अपनी आवाज उठा सकता है, ऐसा ग्रीस को लगता है। नाटो सदस्य ग्रीस और तुर्की के बीच ऊर्जा संसाधनों पर कब्जे को लेकर पिछले कुछ समय से युद्ध जैसे हालात पैदा हो गए हैं। ऐसे हालात तब भी पैदा हुए थे जब पिछले साल ग्रीस ने एक छोटे मगर रणनीतिक रूप से बेहद अहम द्वीप कास्टेलोरिजो में अतिरिक्त सैन्य बल भेज दिया था।
वर्ष 1982 के 'यूनाइटेड नेशंस कन्वेंशन ऑन द लॉ ऑफ द सी' के हिसाब से ग्रीस को दोनों देशों के बीच के और विवादित द्वीप साइप्रस के आसपास भूमध्यसागर में ज्यादा हिस्सा मिलता है। तुर्की इस बात को भी नहीं मानता। पूर्वी भूमध्यसागर में तुर्की का एक अहम रुख पूर्वी भूमध्यसागरीय गैस फोरम (ईएमजीएफ) से इसे बाहर रखे जाने को लेकर है। इस फोरम का गठन जनवरी 2019 में कायरो में हुआ था और इसे 'भूमध्यसागरीय गैस के ओपेक' की संज्ञा दी गई थी। इस फोरम में ईजिप्ट, ग्रीस, साइप्रस, इजरायल, इटली, जॉर्डन और फिलिस्तीन शामिल हैं। ग्रीस के पड़ोस में स्थित साइप्रस में माहौल तब तनावपूर्ण हो गया था, जब तुर्की ने 1974 में अपनी सेनाओं द्वारा साइप्रस पर किए गए हमले की वर्षगांठ मनाने की योजना बनाई। साइप्रस और यूरोपीय संघ ने तुर्की से आग्रह किया था कि वह इस क्षेत्र में ऐसा करके तनाव न पैदा करे। यहां तनाव इसलिए भी बढ़ता दिख रहा था, क्योंकि तुर्की के राष्ट्रपति ने उत्तरी साइप्रस जिसे टíकश रिपब्लिक ऑफ नॉदर्न साइप्रस के रूप में भी जानते हैं, उसकी यात्र करने और नॉदर्न टíकश साइप्रस इकाई के अस्तित्व में आने की वर्षगांठ मनाने का निर्णय किया।
भारत ने जिस तरह से क्षेत्रीय स्थिरता के लिए साइप्रस और लीबिया का उल्लेख करते हुए ग्रीस से चर्चा की और अंतरराष्ट्रीय संबंधों के सिद्धांतों की शुचिता बनाए रखने की बात की, उससे साफ है कि तुर्की को भी भारत एक संदेश देना चाहता था। तुर्की की सरकार को डर है कि पूर्वी भूमध्यसागर का इस्तेमाल तुर्की को अलग-थलग करने की कोशिशों में किया जा रहा है। ग्रीस और साइप्रस ने यूरोपीय संघ से तुर्की की कार्रवाई के खिलाफ समर्थन की मांग की है और इनके साथ ही तुर्की के क्षेत्रीय विरोधी भी इस मुहिम में शामिल हो गए हैं। इस बीच भारत में अनुच्छेद 370 और कश्मीर मुद्दे पर तुर्की का हठधर्मी रवैया भारत के खिलाफ और पाकिस्तान चीन जैसे देशों के पक्ष में रहा है, इसलिए भारत ने भी तुर्की को परोक्ष रूप से ही सही, लेकिन उस पर दबाव बनाने की कोशिश की है। तुर्की जिस तरह से अफगानिस्तान में भी रुचि ले रहा है और जिस तरह अब वहां के 100 से अधिक जिलों को तालिबान ने अपने कब्जे में ले लिया है, उस दृष्टि से तुर्की और भारत के संबंध और भी संवेदनशील हो जाते हैं।
भारत की आजादी के बाद वर्ष 1950 में दोनों देशों ने कूटनीतिक संबंध स्थापित किए, वर्ष 1968 में भारत ने एथेंस में अपना दूतावास खोला। वर्ष 2020 में दोनों देशों के राजनयिक संबंधों के 70 वर्ष पूरे हुए, वहीं इसी वर्ष ग्रीस की आजादी के 200 वर्ष पूरे होने पर भारत सरकार ने ग्रीस को बधाई दी। दोनों देशों के मध्य द्विपक्षीय व्यापार करीब 60 करोड़ डॉलर का है। भारत की कई कंपनियां ग्रीस में मौजूद हैं। इनमें आइटी और निर्माण जैसे क्षेत्रों की 10 कंपनियां शामिल हैं। दोनों देशों के बीच वर्ष 2017 में पहली सीधी उड़ान शुरू करने को लेकर एक करार पर भी हस्ताक्षर किए गए थे। उड़ान संबंधी करार से भारतीय विमानन कंपनियों को एथेंस, थेस्सलोनिकी और हेराक्लियन की सेवा शुरू करने की अनुमति मिलेगी।
भारत के विदेश मंत्रलय के अनुसार, ग्रीस में 11,333 प्रवासी भारतीय रहते हैं। वर्ष 2010 के बाद ग्रीस के आíथक रूप से लगातार कमजोर होने के बाद कई भारतीय समुदाय के लोग अन्य ईयू देशों की तरफ भी रुख करते पाए गए थे। हाल के वर्षो में भारत सरकार ने ग्रीस के साथ सांस्कृतिक संबंधों को मजबूती देने की कोशिश की है। कोलकाता और वाराणसी में दो ग्रीक सेंटर भी हैं और एथेंस में भारतीय संस्कृति को बढ़ावा देने वाले कई केंद्रों का भी निर्माण किया गया है। ग्रीक नृत्य और संगीत को बढ़ावा देने की कोशिश जहां एक तरफ की गई है वहीं योग, कत्थक और कथकली को भी बढ़ावा देने के प्रयास ग्रीस में किए गए हैं। भारत और ग्रीस के संबंधों का महत्व इस लिहाज से भी है कि भारत को ग्रीस सहित सभी यूरोपियन यूनियन सदस्यों का सहयोग चाहिए, ताकि भारत और यूरोपियन यूनियन के बीच लंबित मुक्त व्यापार समझौते को मूर्तमान बनाना आसान हो सके। ग्रीस यूरोपीय संघ में एक अहम भूमिका रखता है और भारत के हितों पर प्रभावशाली राय पेश करता है। ग्रीस ने एमटीसीआर, ऑस्ट्रेलिया समूह और वासनेर व्यवस्था जैसे निकायों में भारत की सदस्यता का समर्थन किया था।
यहां यह भी उल्लेखनीय है कि हाल ही में भारत के आग्रह के बाद यूरोपीय संघ के जिन आठ देशों और स्विट्जरलैंड ने कोविशील्ड वैक्सीन को मान्यता दे दी है, उसमें ग्रीस भी शामिल है। ग्रीस के अलावा यूरोपीय संघ के देशों ऑस्टिया, जर्मनी, स्लोवेनिया, आइसलैंड, आयरलैंड, स्पेन और एस्टोनिया व गैर ईयू सदस्य देश स्विट्जरलैंड ने सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया के कोविशील्ड वैक्सीन को ग्रीन पासपोर्ट में शामिल किया है।
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