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अभिषेक कुमार सिंह: मेडिकल कचरे की समस्या दुनिया में पहले भी थी, लेकिन कोविड के दौर में इसने विकराल रूप ले लिया है। यह समस्या इतनी बढ़ गई है कि इस बारे में विश्व स्वास्थ्य संगठन तक ने हाल में एक चेतावनी जारी की है। इस संगठन ने कहा है कि कोविड महामारी ने दुनिया में मेडिकल कचरे का पहाड़ बना दिया है। महामारी से निपटने के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले चिकित्सा उपकरणों के कबाड़ में जाने से इंसान और पर्यावरण दोनों के लिए खतरा पैदा हो गया है।
इतिहास बताता है कि महामारियों से बचने का आखिरकार कोई न कोई रास्ता निकल ही आता है। कभी उनका पुख्ता इलाज मिल जाता है, तो कभी बीमारियां या संक्रामक रोग अपना असर खो देते हैं। कोविड के बारे में भी कई आकलन कहते हैं कि टीके, दवाओं और सावधानियों के आगे यह बीमारी कमजोर पड़ जाएगी। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने भी हाल में कहा है कि इस वर्ष के मध्य तक अगर कोरोना के किसी नए विषाणु ने जोर नहीं पकड़ा, तो मानव सभ्यता को इससे काफी हद तक छुटकारा मिलने की उम्मीद जग सकती है। लेकिन महामारियां अपने पीछे जो निशान छोड़ती हैं, उनसे आसानी से निजात नहीं मिलती। दो साल से ज्यादा लंबे खिंचे कोरोना काल में ऐसी एक निशानी चिकित्सीय (मेडिकल) कचरे के रूप में एक महामारी की तरह ही सामने आई है।
मेडिकल कचरे की समस्या दुनिया में पहले भी थी, लेकिन कोविड के दौर में इसने विकराल रूप ले लिया है। यह समस्या इतनी बढ़ गई है कि इस बारे में विश्व स्वास्थ्य संगठन तक ने हाल में एक चेतावनी जारी की है। इस संगठन ने कहा है कि कोविड महामारी ने दुनिया में मेडिकल कचरे का पहाड़ बना दिया है। महामारी से निपटने के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले चिकित्सा उपकरणों के कबाड़ में जाने से इंसान और पर्यावरण दोनों के लिए खतरा पैदा हो गया है।
ऐसा होने की वजह यह है कि कोविड के इलाज के दौरान दुनिया भर में जमा हुए हजारों टन अतिरिक्त कचरे ने कचरा प्रबंधन प्रणाली पर गंभीर दबाव डाला है। इस बारे में विश्व स्वास्थ्य संगठन ने अपने एक अध्ययन में कहा है कि दो लाख टन से अधिक चिकित्सा अपशिष्ट पूरी दुनिया में कोरोना विषाणु महामारी के परिणामस्वरूप जमा हो गया है। इसमें भी समस्या ज्यादा बड़ी है कि कचरे में ज्यादा बड़ा हिस्सा प्लास्टिक का है।
आकलन बताता है कि मार्च 2020 से नवंबर 2021 के बीच डेढ़ साल के अरसे में संयुक्त राष्ट्र के तहत ही चिकित्सा कर्मियों की सुरक्षा के उद्देश्य से करीब डेढ़ अरब पीपीई किटें बांटी गई थीं। सिर्फ इन्हीं किटों का वजन करीब सतासी हजार टन होता है। इन सुरक्षात्मक किटों का ज्यादातर हिस्सा अब कचरे में परिवर्तित हो चुका है। इस कचरे में हजारों टन प्लास्टिक और लाखों लीटर रासायनिक अपशिष्ट एक जोखिम की शक्ल में हमारे नजदीकी पर्यावरण में जमा हो चुका है। महामारी की शुरुआत में डब्ल्यूएचओ चेतावनी दे चुका है कि स्वास्थ्य देखभाल केंद्रों में से कम से कम एक तिहाई अपने कचरे का निपटारा करने में सक्षम नहीं हैं। चिकित्साकर्मियों से बाहर देखें तो पता चलता है कि कोरोना विषाणु से बचाव के उपाय के रूप में अपनाए गए फेस मास्क और तमाम किस्मों के सेनेटाइजर की करोड़ों-अरबों शीशियों-बोतलों का कचरा अलग से पैदा हुआ है।
इसकी एक मिसाल पिछले साल तब मिली, जब देश की राजधानी दिल्ली तक में जगह-जगह कूड़े के ढेर में कोरोना से बचाव की किटों और अन्य चिकित्सीय वस्तुओं की कचरे के ढेर में मौजूदगी की सूचनाएं मिलीं। इनके मद्देनजर डाक्टरों ने यह अंदेशा जताया था कि दिल्ली में कोरोना विषाणु के तेज प्रसार की एक बड़ी वजह कोविड मरीजों के बायोमेडिकल कचरे का उचित निस्तारण नहीं होना है। मगर समस्या अकेले कोविड से जुड़े कचरे की नहीं है। इस मामले में वर्षों से शिकायतें की जाती रही हैं कि निजी पैथोलाजी लैब और बड़े-बड़े अस्पतालों तक में बायोमेडिकल कचरे का सही ढंग से निस्तारण नहीं किया जाता है, जिससे जानवर और इंसान भी संक्रामक बीमारियों की चपेट में आ जाते हैं।
निजी पैथ लैब्स और होम क्वारंटीन या आइसोलेशन में रह रहे परिवारों के यहां से जो मेडिकल कचरा निकलता रहा है, वह अक्सर सामान्य कूड़ाघरों में पहुंच जाता है। कोरोना विषाणु के इलाज, जांच और संक्रमित लोगों को एकांत में रखे जाने के दौरान कई तरह की चीजों का इस्तेमाल होता रहा है। इनमें से ज्यादातर चीजें बायोमेडिकल कचरा कहलाती हैं। यह संक्रमित कचरा कोरोना विषाणु के प्रसार में ज्यादा योगदान देता है। वैसे तो अस्पतालों से निकलने वाले हर किस्म के चिकित्सीय कचरे के निस्तारण के स्पष्ट दिशा-निर्देश हैं। लेकिन जब लोग घरों में किसी कोविड मरीज का इलाज करते हैं, तो ऐसे मामले में लापरवाही होती है।
इस संबंध में कायदे-कानूनों की बात की जाए, तो बायोमेडिकल कचरा प्रबंधन और निस्तारण अधिनियम 1998 के संशोधित नियम 2016 इसकी एक व्यवस्था देता है। इसके मुताबिक मेडिकल कचरे के निस्तारण में कोई गड़बड़ी न हो, इसके लिए जरूरी है कि मेडिकल कचरे की उचित छंटाई के बाद जिन थैलियों में उन्हें बंद किया जाए उनकी बार-कोडिंग हो। इससे हरेक अस्पताल से निकलने वाले मेडिकल कचरे की आनलाइन निगरानी मुमकिन हो सकती है। इसके बावजूद यह कचरा अक्सर खुले में मौजूद कचराघरों, नदी-नालों, खेतों तक में पहुंच जाता है।
कानून में ऐसी लापरवाही के लिए पांच साल तक की जेल और जुर्माने का प्रावधान है। लेकिन शायद ही कभी सुना गया हो कि किसी बड़े अस्पताल या पैथ लैब संचालक को इसके लिए जेल में डाला गया हो। बीते दो-तीन दशकों में दिल्ली-एनसीआर समेत देश के निजी और सरकारी अस्पतालों, नर्सिंग होम्स और पैथ लैबों की संख्या में कई गुना इजाफा हुआ है। इससे अनुमान लगाया जा सकता है कि इस अवधि में चिकित्सीय कचरे की मात्रा कितने गुना बढ़ गई होगी।
चिकित्सीय कचरे का समुचित निस्तारण हो, इसके लिए पहला नियम यह है कि ऐसे कचरे की मानकों के अनुसार छंटाई कर उसे निर्धारित रंग के प्लास्टिक थैले में बंद किया जाए। लाल रंग के थैले में उपचार के दौरान इस्तेमाल में लाए गए दस्ताने और कैथेडर आदि रखे जाते हैं और आटोक्लैव नामक उपकरण से संक्रमण खत्म कर इस कचरे को जलाया जाता है। नीले रंग के थैले में दवाओं के डिब्बे, इंजेक्शन की सूई, कांच के टुकड़े या चाकू वाले प्लास्टिक के बैग रखे जाते हैं और उन्हें रसायनों से उपचार करने के बाद जलाते या मिट््टी के अंदर दबा देते हैं। काले रंग वाले थैले हानिकारक और बेकार दवाएं, कीटनाशक पदार्थ आदि रखे जाते हैं। इसमें राख भर कर थैले को किसी गड्ढे में मिट््टी डाल कर दबा देते हैं।
ज्यादातर मेडिकल कचरे को कीटाणुमुक्त करने का नियम है। इसके अलावा ब्लीचिंग पाउडर और एथिलीन आक्साइड से भी कीटाणुओं को खत्म करने के निर्देश हैं। बहुत जरूरी होने पर मेडिकल कचरे के कीटाणुओं को पराबैंगनी किरणों से खत्म करने की इजाजत भी दी जाती है। लेकिन इतने सारे दिशा-निर्देशों और व्यवस्थाओं के बावजूद अस्पतालों, क्लीनिकों, पैथ लैबों और घरों से मरीजों का बायो-मेडिकल अगर खुले कूड़ाघरों के जरिए स्वस्थ इंसानों और जानवरों में पहुंच रहा है, तो साफ है कि हमारे देश में सेहत की देखभाल और निगरानी तंत्र के दावों में कई झोल हैं।
इसमें आश्चर्य नहीं होना चाहिए कि एक मौके पर विश्व स्वास्थ्य संगठन ने दुनिया के चौबीस देशों में से अट्ठावन फीसद में अस्पताल कचरे की निगरानी, उसके रखरखाव, भंडारण, परिवहन और रीसाइक्लिंग में ठीक इंतजाम दर्ज किए थे, लेकिन भारत को इस मामले में काफी पीछे पाया था। सिर्फ सरकारी प्रबंध नहीं, अगर आम लोग भी कोरोना विषाणु के इस दौर में अपने मास्क और दस्ताने इस्तेमाल के बाद सड़क किनारे, गलियों में, सार्वजनिक कूड़ाघर में यों ही फेंक रहे हैं, तो उन्हें समझना होगा कि यह लापरवाही कितने बड़े संकट को जन्म दे रही है।