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किरण चोपड़ा: जब चुनौतियां हमारे सामने आती हैं तो समाधान ढूंढे जाते हैं, यह एक सकारात्मक सोच है। भारत इसी सोच के साथ आगे बढ़ रहा है और कोरोना के चलते हमने जो उपाय किये, चाहे वह सोशल डिस्टेंसिंग हो या फिर मास्क पहनने से जुड़ी बातें हो या फिर सेनिटाइजेशन हो, हमने कोरोना से जंग में अंतत: विजय पायी। हमारे इस अंदाज को देखकर दुनिया भी भारत का लोहा मानती है लेकिन हकीकत यही है कि मेडिकल साइंस या एमबीबीएस पढ़कर डॉक्टर बनने वालों की चाहत हमारे देश में सबसे ज्यादा है। एमबीबीएस विदेश में जाकर पढ़ना एक महंगी डील है जिसे हर कोई पूरी नहीं कर सकता लेकिन पिछले दिनों हमने देखा कि यूक्रेन युद्ध के दौरान हमें खबरों में पता चला कि यूक्रेन में एमबीबीएस अर्थात डॉक्टर बनने के लिए जो शिक्षा है वह पूरी दुनिया में सबसे सस्ती है। हालांकि हमारे बीस हजार मेडिकल स्टूडेंट्स वहां फंस गये थे और मोदी सरकार ने ऑपरेशन गंगा के तहत बम धमाकों के बीच योजनाबद्ध तरीके से स्टूडेंट्स की वापसी कराकर एक अच्छा मानवता और सरकार के कर्त्तव्य का एक शानदार उदाहरण प्रस्तुत किया।मेरा मानना है कि हमारे यहां लाखों लोग मेडिकल की पढ़ाई करते हुए डॉक्टर बनना चाहते हैं लेकिन यह इतना महंगा है कि स्टूडेंट्स को सस्ती शिक्षा के चक्कर में विदेश जाना पड़ता है। हमारे यहां एमबीबीएस की परीक्षा में एक वर्ष में जहां 15-20 लाख रुपये खर्च होते हैं वहीं यूक्रेन में जितने भी मेडिकल कालेज और यूिनवर्सिटियां हैं वहां यही खर्च 5 से 7 लाख रुपये सालाना है। कुल मिलाकर 30-35 लाख रुपये एमबीबीएस डिग्री का खर्च आता है और खानपान का खर्च अलग है। हमारे स्टूडेंट्स यूक्रेन में जाकर पार्ट टाईम जॉब करते हुए खानपान का खर्च निकालते हैं और कुछ के खानपान की व्यवस्था उनके माता-पिता करते हैं। इसमें कोई संदेह नहीं कि मेडिकल जगत में भारत ने शिक्षा को लेकर काफी उन्नति की है परंतु व्यक्तिगत तौर पर महसूस करती हूं कि एमबीबीएस पढ़ाई के लिए हमारे यहां ज्यादा से ज्यादा मेडिकल कॉलेज और यूनिवर्सिटी होनी चाहिए। उन सब स्टूडेंट्स को एडमिशन अपने देश में ही सरलता से और सहजता के साथ-साथ यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि फीस भी कम होनी चाहिए।बैंगलुरू का जो छात्र यूक्रेन बमबारी में मारा गया था, के बारे में पता चला है कि उसके 98 प्रतिशत अंक थे परंतु उसे एमबीबीएस में दाखिला नहीं मिला। देश भर से हमारे स्टूडेंट यूक्रेन जाते हैं। उनके माता-पिता लोन लेकर डाक्टर बनने का बच्चों का सपना पूरा करने के लिए खुद कर्जदार बन जाते हैं। अब ऐसे में जब स्टूडेंट्स एमबीबीएस डिग्री पास करने के बाद भारत लौटता है तो डॉक्टरी प्रेक्टिस के दौरान उसकी फीस बहुत महंगी हो जाती है। हमारे यहां डाक्टरी इलाज बहुत महंगा है। जबकि सुविधाएं एक से बढ़कर एक है। कई बार मैंने कई ऐसे ही मौकों पर बातचीत के दौरान यह महसूस किया है कि लोग कहते हैं कि जब करोड़ों रुपया खर्च करके डॉक्टरी की डिग्री ली है तो फिर इलाज तो महंगा होगा ही। यद्यपि हमारी सरकार और राज्य सरकारें इलाज के लिए अपने स्तर पर अच्छी सुविधाएं दे रही हैं लेकिन कैंसर जैसी बीमारियां अभी भी बहुत महंगी हैं जो कि गरीब-अमीर में कोई फर्क नहीं देखती। ज्यादा से ज्यादा मेडिकल कालेज और अस्पताल बनाए जायें। इस मामले में सचमुच एक क्रांति की जरूरत है।संपादकीय :परिवारवाद में फंसी राजनीतिकर्ज संकट में फंसा एमएसएमई क्षेत्र'आप' को प्रचंड जनादेश का अर्थकांग्रेस का वैचारिक संकट !भाजपा का शानदार प्रदर्शनउड़ानों से गुलजार होगा आकाशजिस दिन हमारे स्टूडेंट्स अपने ही देश में एमबीबीएस डिग्री पाने के लिए सहजता से आगे बढ़ेंगे और उन्हें एडमिशन मिल जायेगा यानि कि मेडिकल स्टडी के लिए विदेश नहीं जाना पड़ेगा तो हमारी इस क्रांति का सही फल मिल जायेगा। इसलिए समय आ गया है कि ऐसी क्रांति के लिए तिरंगा बुलंद कर दिया जाना चाहिए। विदेशों में स्टडी एक क्रेज भी है लेकिन यह सच है कि हमारे यहां एमबीबीएस करने के बाद डाक्टर बनने की योजना बनाने वाले स्टूडेंट्स और विदेशों में इकनामिक्स तथा एमबीबीएस की डिग्री प्राप्त करने के बाद एक अलग श्रेणी में आ जाते हैं जिससे उन्हें वेतन के अच्छे पैकेज मिलते हैं परंतु स्टडी की सभी सुविधाएं अपने देश में मिल जाये तो देश में न केवल अच्छे डॉक्टर और अच्छे अर्थशास्त्री बनेंगे बल्कि बड़ी से बड़ी बीमारी का इलाज भी सस्ता होगा। बीमारी के ट्रीटमेंट के साथ-साथ चैकअप फैसिलिटी भी ज्यादा और सस्ती होनी चाहिए ताकि किसी को भी दिक्कत न हो। अगर हम चुनौतियां स्वीकार करना जानते हैं तो सब कुछ हमारे सामने हैं। आओ मेडिकल जगत में क्रांति बुलंद करने के लिए अपने स्टूडेंट्स को मेडिकल एजुकेशन के लिए हर टॉप सुविधा यही दिलाने की मसाल जलाएं।