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सम्पादकीय
By NI Editorial
श्रीलंका की स्थिति कहीं ज्यादा गंभीर है। समस्या सिर्फ यह नहीं है कि यहां जरूरी चीजों का अभाव है। बल्कि असल बात है कि देश की अर्थव्यवस्था पूरी तरह ध्वस्त हो चुकी है।
श्रीलंका के प्रधानमंत्री रानिल विक्रमसिंघे ने पिछले दिनों अपनी लाचारी जताई। मुमकिन है कि यह उनका सियासी दांव हो, लेकिन उनके बयान ने देश को और भयभीत कर दिया है। विक्रिमसिंघे ने कहा कि श्रीलंका की स्थिति उससे कहीं ज्यादा गंभीर है, जितना आम तौर पर दुनिया को मालूम हो सका है। उनके मुताबिक श्रीलंका में समस्या सिर्फ यह नहीं है कि यहां जरूरी चीजों का अभाव है। बल्कि असल बात है कि देश की अर्थव्यवस्था पूरी तरह ध्वस्त हो चुकी है। विक्रमसिंघे को प्रधानमंत्री बने सवा महीना गुजर चुका है। जाहिर है, देश के बेसब्र लोग उनसे जवाब मांग रहे हैँ। तो ये जवाब उन्होंन इस रूप में दिया। उन्होंने रणनीति अपनाई कि अपनी जिम्मेदारी स्वीकार करने के बजाय लोगों की अपेक्षाएं गिरा दी जाएं, , ताकि दिक्कतों को दूर कर पाने की उनकी नाकामी पर लोग सवाल खड़े ना करेँ। हकीकत यही है कि बीते सवा महीने में भी स्थिति में तनिक भी सुधार नहीं हुआ है।
दरअसल, आर्थिक संकट का खराब असर अब मध्य वर्ग पर भी दिखने लगा है। गरीब तबकों के भुखमरी का शिकार होने की खबरें पहले से आ रही थीँ। अब आंच मध्य वर्ग तक पहुंच गई है। खुद श्रीलंका के विशेषज्ञों ने कहा है कि मध्य वर्ग को इस समय ऐसा धक्का लगा है, जैसा पिछले तीन दशक में कभी नहीं हुआ। विशेषज्ञों के मुताबिक श्रीलंका की दो करोड़ 20 लाख आबादी का 15 से 20 फीसदी हिस्सा मध्य वर्ग में शामिल माना जाता है। अभी हाल तक इस तबके की जिंदगी आराम से कट रही थी। लेकिन अब उसे इस बात की भी चिंता करनी पड़ रही है कि रोज तीन बार भोजन का कैसे इंतजाम किया जाए। अगर मध्य वर्ग को इस तरह संघर्ष करना पड़ रहा है, तो कल्पना की जा सकती है कि कमजोर तबकों की हालत कितनी खराब होगी। गौरतलब है कि सरकारी आंकड़ों के मुताबिक देश में खाद्य पदार्थों की महंगाई की दर 57 फीसदी तक पहुंच चुकी है। जरूरी चीजों का देश में अभाव है। खास कर पेट्रोलियम की कमी से सारी अर्थव्यवस्था अस्त-व्यस्त है। और इसके बीच प्रधानमंत्री खुद को लाचार बता रहे हैं। तो देश में लाचारी का कैसा भाव बना होगा, समझा जा सकता है।
Gulabi Jagat
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