सम्पादकीय

हिंदी में चिकित्सा और अभियांत्रिकी की पढ़ाई! मध्य प्रदेश सरकार की सराहनीय पहल लेकिन...

Rani Sahu
18 Oct 2022 6:19 PM GMT
हिंदी में चिकित्सा और अभियांत्रिकी की पढ़ाई! मध्य प्रदेश सरकार की सराहनीय पहल लेकिन...
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By लोकमत समाचार सम्पादकीय
मध्यप्रदेश में चिकित्सा की पढ़ाई हिंदी में शुरू की जा रही है. इससे हिंदी का सम्मान निश्चित रूप से बढ़ेगा लेकिन इस सराहनीय पहल को कितनी सफलता मिल पाएगी, इस पर निगाहें जरूर रहेंगी. चिकित्सा की तरह अभियांत्रिकी की शिक्षा भी हिंदी में देने की म.प्र. सरकार की महत्वाकांक्षी योजना है. राज्य में अटल बिहारी वाजपेयी विश्वविद्यालय में चिकित्सा तथा अभियांत्रिकी के पाठ्यक्रम हिंदी में चलाए जा रहे हैं लेकिन विद्यार्थियों को अंग्रेजी पुस्तक का हिंदी अनुवाद कर पढ़ाया जाता है.
विश्वविद्यालय के हिंदी में चलाए जा रहे इन दोनों विषयों को दुर्भाग्य से अपेक्षित प्रतिसाद नहीं मिला है. म.प्र. सरकार की इस बात के लिए प्रशंसा करनी होगी कि इसके बावजूद उसने हिम्मत नहीं हारी तथा पूरे राज्य में चिकित्सा व अभियांत्रिकी की शिक्षा हिंदी में देने की योजना पर वह दृढ़ता से आगे बढ़ रही है. इसके लिए उसने मेडिकल एवं अभियांत्रिकी की पुस्तकें हिंदी में तैयार करवाना शुरू कर दिया है. रविवार को केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने भोपाल में चिकित्सा शास्त्र से जुड़े तीन विषयों एनाटॉमी तथा फीजियोलॉजी पर हिंदी में अनूदित तीन किताबों का विमोचन किया.
इन पुस्तकों का अनुवाद 97 चिकित्सकों के दल ने किया है. कहा जा रहा है कि देश में यह पहली बार है, जब एमबीबीएस की पाठ्यपुस्तकें हिंदी में प्रकाशित हुई हैं. दुनिया के कई देशों में तकनीकी तथा व्यावसायिक पाठ्यक्रम वहां की राष्ट्रभाषा में चलते हैं. फ्रांस, जर्मनी, स्पेन, रूस, चीन, जापान जैसे कई मुल्कों में अंग्रेजी का प्रचलन नहीं है. वहां शिक्षा का माध्यम स्थानीय या वहां की राष्ट्रभाषा है. अपेक्षा तो यह थी कि आजादी के बाद हिंदी देश की राष्ट्रभाषा बनेगी और सारा सरकारी कामकाज हिंदी बहुल क्षेत्रों में हिंदी में ही होगा.
इसे विडंबना ही कहा जाएगा कि भारत की अपनी कोई राष्ट्रभाषा नहीं है. हिंदी पूरे देश में बोली तथा समझी जा सकने वाली एकमात्र भाषा है, मगर वह राष्ट्रभाषा नहीं बन पाई. इसके राजनीतिक कारण हैं और उनके बारे में सब जानते हैं. आजादी के बाद व्यावसायिक तथा तकनीकी पाठ्यक्रमों को हिंदी तथा क्षेत्रीय भाषाओं में पढ़ाने की दिशा में कोई कदम ही नहीं उठाए गए. तमाम सरकारें हिंदी को लेकर वोट बैंक की राजनीति में उलझी रहीं और आज भी हैं. इन विषयों की पढ़ाई का माध्यम अंग्रेजी ही रहा.
भारतीय अभिभावकों में भी यह गलतफहमी घर कर गई कि अंग्रेजी ही उनके बच्चों को डॉक्टर, इंजीनियर या किसी भी विशिष्ट विषय का विशेषज्ञ बना सकती है. अंग्रेजी ही उनके बच्चे का भविष्य बना सकती है तथा समाज एवं देश-विदेश में सम्मान दिला सकती है. इसी मानसिकता के चलते अंग्रेजी की पैठ गांवों तक हो गई है. गांवों में लोग हिंदी बिना अंग्रेजी शब्दों का उपयोग किए नहीं बोलते. नगर-महानगरों की बात तो दूर रही लेकिन ग्रामीण इलाकों में भी हिंदी एवं क्षेत्रीय भाषाओं के स्कूलों से विद्यार्थी गायब होने लगे.
दूसरी ओर अंग्रेजी माध्यम की शालाएं कुकुरमुत्ते की तरह फैलने लगी हैं. नई पीढ़ी हिंदी या मातृभाषा या क्षेत्रीय भाषा के बजाय अंग्रेजी बोलने में ज्यादा गर्व महसूस करती है. सबसे बड़ा सवाल यह है कि नर्सरी से लेकर हाईस्कूल तक अंग्रेजी माध्यम में शिक्षा ग्रहण करने वाली नई पीढ़ी हिंदी में डॉक्टरी तथा इंजीनियरिंग की शिक्षा ग्रहण करने की ओर आकर्षित होगी. इस पीढ़ी का हिंदी से कोई वास्ता नहीं है. अगर आप उसके सामने किसी अंक का उच्चारण हिंदी में करेंगे तो उसे समझ में ही नहीं आएगा.
ऐसे में हिंदी की पुस्तकें वह कैसे पढ़ तथा समझ सकेंगे. अंग्रेजी के हमारे मोह ने हिंदी की यह दुर्दशा की है. तमाम अवरोधों के बीच की गई म.प्र. सरकार की इस पहल का फिर भी हृदय से स्वागत करना चाहिए. एक न एक दिन स्थिति बदलेगी जरूर बशर्ते शासनकर्ता दृढ़ संकल्प कर लें.
Rani Sahu

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