सम्पादकीय

मीडिया समझ के नेता

Gulabi
25 Oct 2021 3:44 AM GMT
मीडिया समझ के नेता
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हिमाचल में मीडिया की महफिल को सजाते नेताओं में कांग्रेस का पलड़ा भारी है

Divyahimachal .


उपचुनावों की खैरियत पूछ रहे नेताओं की मीडिया समझ का विश्लेषण अकसर होता है, लेकिन इस सवाल का बहरूपियापन आज तक हिमाचल की सियासत को समझ नहीं आया। तुलनात्मक दृष्टि से देखंे तो युवा नेताओं में मीडिया की समझ निरंतर बढ़ रही है और ये पारंपरिक माध्यमों के अलावा सोशल मीडिया पर भी स्पष्टता से अपनी बात रख रहे हैं। मीडिया जगत से पूर्व मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह के रिश्तों का सबसे बड़ा चेहरा मुकेश अग्निहोत्री बने, तो राजनीति से पत्रकारों की मैत्री का सवाल भी सामने आया और इसके बाद यह प्रथा आगे बढ़ रही है। नेताओं की मीडिया समझ उनकी सरलता और स्वभाव में सादगी की द्योतक भी है। वर्तमान मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर इस लिहाज से अब तक के सबसे नरम नेता बनते हुए दिखाई देते हैं, जबकि पूर्व मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल ने अपनी पहुंच व पड़ताल से मीडिया की हर रग को टटोला, कुरेदा और उन्हें हिमाचल की राजनीतिक शब्दावली दी। इस मामले में पूर्व मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह मीडिया ज्ञान में इजाफा करते रहे। उनकी कार्रवाइयां मुखर होकर मीडिया जगत से कसरत कराती रहीं, तो पत्रकारिता की प्रश्नोत्तरी में वह सबसे हाजिरजवाब रहे। वह सत्ता या विपक्ष की भूमिका में एक समान 'हैडलाइन' बनते रहे, तो उनके व्यक्तित्व के भाव से मीडिया विश्लेषण हुआ। इन सबसे हटकर शांता कुमार मीडिया संबंधों में आदर्श भरते-भरते, स्वयं लेखक तो बने, लेकिन उनके दौर का विरोध बताता है कि कहीं दूरियां रहीं। प्रेम कुमार धूमल ने मीडिया संतुलन को निचली पायदान तक और राजधानी शिमला से निकल कर प्रदेश की कंदराओं तक पहुंचाया, तो इस तरह निजी तौर पर कुछ पत्रकार आज भी उनके लिए सुर्खियां खोज कर लाते हैं।


हिमाचल में मीडिया की महफिल को सजाते नेताओं में कांग्रेस का पलड़ा भारी है। वीरभद्र सिंह के अलावा जीएस बाली, मुकेश अग्निहोत्री व राजिंद्र राणा जैसे नेता अपनी प्रेस वार्ताओं में माहौल की उपमाओं को मुद्दों की चांदनी में सजाते रहे हैं। इस दृष्टि से भाजपा बतौर पार्टी भले ही मीडिया को बेहतर समझती हो या उनका अपना मीडिया प्रबंधन कुशाग्र और ताकतवर है, लेकिन मीडिया से सहजता का अभाव देखा जा सकता है। भले ही सत्ता में जयराम ठाकुर अब तक के तमाम मुख्यमंत्रियों से कहीं आगे मीडिया के प्रति सहज, सरल व सादगी भरे हैं, लेकिन पार्टी संगठन के ओहदेदार अपने मीडिया मंतव्य व गंतव्य में दूरी बनाने के कारण अपने वैचारिक मंचों पर ऊंचे दिखाई देते हैं। भाजपा के भीतर इसका अपवाद रहे कुछ युवा नेता आज भी मीडिया के लिए खबर हैं, तो यह गोपनीयता में कतई अनुशासनहीनता नहीं हो सकती। त्रिलोक कपूर, घनश्याम शर्मा व प्रवीण शर्मा जैसे नेता मीडिया के यथार्थ में राजनीति की व्यावहारिकता और सत्ता के संपर्कों में मीडिया को बेहतर होने का अवसर व सौहार्द सौंपते हैं। मीडिया समझ के राजनीतिक खाके हिमाचल में थोड़े संकीर्ण जरूर हैं, लेकिन आज के दौर में विपक्ष और सत्ता के बीच फासलों या इरादों का चिन्हित ब्यौरा हर नेता को मीडिया आलोक में देखता है। इस लिहाज से विपक्ष के पास करने को बहुत कुछ हो सकता है, लेकिन सत्ता कल फिसल कर विपक्ष न हो जाए, यह संदेश नहीं राजनीतिक कर्मठता में, मीडिया तक पहुंचने का सतत प्रयास भी तो हो सकता है। कांग्रेस के प्रदेशाध्यक्ष कुलदीप राठौर, दीपक शर्मा, मुकेश अग्निहोत्री, कौल सिंह ठाकुर, ठाकुर रामलाल, सुधीर शर्मा, जीएस बाली जैसे नेता अगर मीडिया में अग्रसर हैं, तो भाजपा के सतपाल सत्ती या किशन कपूर जैसे नेताओं का कद, उनसे राज्यस्तरीय मंचों पर अपनी उपस्थिति दर्ज कराने की उम्मीद रखता है। मीडिया समझ में सांसद या केंद्रीय दायित्व में अग्रणी नेताओं की भूमिका भी अपनी परीक्षा दे रही है।


इस दृष्टि से केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर के लिए पूर्व मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल की विरासत में सुरक्षित मीडिया संबंधों को आगे ले जाने का मौका है, तो भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जगत प्रकाश नड्डा का मीडिया आलोक प्रदेश के मीडिया के लिए एक अवसर सरीखा रहेगा। बतौर केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री उन्होंने अपनी योजनाओं को हिमाचल के मीडिया के सामने पुष्ट किया, लेकिन भाजपा अध्यक्ष के रूप में मीडिया से उनकी पारी का आगाज उस तरह नहीं देखा गया। मीडिया समझ के खाके में डिजिटल राजनीति को आगे बढ़ाते सोशल मीडिया के भीतर जयराम ठाकुर, अनुराग ठाकुर व विक्रमादित्य सिंह फिलहाल आगे दिखाई देते हैं। तमाम युवा नेता डिजिटल मीडिया के रास्ते पर प्रचार तंत्र खड़ा कर सकते हैं, लेकिन पारंपरिक मीडिया की नजर में आना आज भी मेहनत, जज्बात और सरोकारों पर निर्भर करेगा। वर्तमान चुनावों में पार्टियांे की स्थिति का संकेत तो मिल सकता है, लेकिन धरातल पर खड़े मतदाता को पढ़ पाना वर्तमान दौर की सबसे बड़ी चुनौती है। जीत-हार के मायने आसान हो सकते हैं, लेकिन हार में जीत और जीत को हार तक पहुंचाने की सियासी तिकड़मों को निष्पक्षता से देखना और समझना मीडिया की सबसे बड़ी चुनौती है। पिछले नगर निगम चुनावों में धर्मशाला में भाजपा का जीतना और सोलन में कांग्रेस का जीतना ऐसा यथार्थ था, जिससे राजनीतिक अर्थ और मीडिया का व्यर्थ कुछ हासिल करता है, कुछ खारिज हो जाता है।


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