सम्पादकीय

बंगाल को बचाने के उपाय: ताजा हुई 1971 में पाकिस्‍तान सेना के अत्‍याचारों की भयावह यादें

Tara Tandi
2 July 2021 11:02 AM GMT
बंगाल को बचाने के उपाय: ताजा हुई 1971 में पाकिस्‍तान सेना के अत्‍याचारों की भयावह यादें
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कैप्टन आर विक्रम सिंह। विधानसभा चुनाव के बाद से ही बंगाल की स्थिति चिंताजनक रूप से अस्थिर है।

जनता से रिश्ता वेबडेस्क |कैप्टन आर विक्रम सिंह। विधानसभा चुनाव के बाद से ही बंगाल की स्थिति चिंताजनक रूप से अस्थिर है। राज्य के सियासी हालात कैसे हैं, इसका पता इससे चलता है कि आतंकित भाजपा कार्यकर्ता और समर्थक सिर मुड़ाकर तृणमूल कांग्रेस में वापसी कर रहे हैं। वे खुलेआम इसे लेकर माफी मांग रहे हैं कि उन्होंने भाजपा को वोट दिया। ऐसा लगता है कि आतंक का राज प्रतिपक्ष को पूर्णत: नेस्तनाबूद करने पर आमादा है। स्थिति यह है कि चुनाव बाद हिंसा की जांच करने गई राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग की टीम के साथ भी हाथापाई की कोशिश की जाती है, जबकि यह टीम कलकत्ता उच्च न्यायालय के आदेश पर राज्य का दौरा करने गई थी।

तृणमूल कांग्रेस किसी की परवाह नहीं कर रही है। वह दलबदल कानून से प्रभावित मुकुल राय को परंपराओं को तोड़ते हुए लोक लेखा समिति का अध्यक्ष बनाने पर आमादा है। यह घटनाक्रम बंगाल की राजनीति, सत्ता-चरित्र, नेताओं के व्यक्तित्व को उजागर करने वाला है। सिविल सोसायटी की तथ्य खोजी समिति का निष्कर्ष है कि चुनाव बाद सुनियोजित हिंसा के चलते बंगाल के लोगों को पलायन कर असम और अन्य पड़ोसी राज्यों में शरण लेनी पड़ी है। इस समिति ने लोगों के घर जलाने, उनकी हत्याएं करने और महिलाओं से दुष्कर्म के मामलों का भी उल्लेख किया है।

बंगाल की चुनाव बाद हिंसा की भयावह घटनाओं को सुनकर 1971 में पाकिस्तानी सेना के अत्याचारों, लोमहर्षक हत्याओं, दुष्कर्मो की याद ताजा हो रही है। आपको याद होगा कि इसी बंगाल में 1946 में जिन्ना के आह्वान से हुए भीषण नरसंहार ने सुनिश्चित कर दिया था कि अब पाकिस्तान बनने में कोई संदेह नहीं है, लेकिन आखिर बंगाल की राजनीतिक-सांप्रदायिक हिंसा का संदेश क्या है? जमीनी सतह पर खुली हिंसा, सांप्रदायिक पक्षधरता का मुकाबला कैसे हो? लंका युद्ध में मेघनाद के ब्रrास्त्र से जब युद्धभूमि में भगवान राम और लक्ष्मण जी मरणासन्न से हो गए तो विभीषण विक्षिप्त होकर जामवंत के सामने विलाप करते हैं कि-अरे, अब लंका का राज तो गया, जिसकी आशा में यहां आया था। अब लंकेश मेरा न जाने क्या हाल करेगा? इस संकट के समय जामवंत जी के सम्मुख विभीषण का जो मूल चरित्र था, वह प्रकट हो गया। पता चल गया कि वह कितना बड़ा रामभक्त था। वही स्थिति आज बंगाल के टीएमसी से विद्रोह कर भाजपा में आए और पलायन को आतुर हो रहे भाजपा नेताओं की हो रही है। चलिए, अच्छा भी है कि वक्त रहते उनका स्वार्थी चरित्र प्रकट हो गया। अब समझ में आता है कि बख्तियार खिलजी ने कैसे इतनी आसानी से बंगाल के राजा लक्ष्मण सेन को हरा दिया था।

भयादोहन के जरिये शासन करने की जो रणनीति कम्युनिस्टों की थी उसी को टीएमसी ने भी अपना लिया है। यही नीति उसे प्रचंड बहुमत से फिर सत्ता में ले आई है। नि:संदेह केंद्र के सामने विषम स्थिति है। देश की जनता बंगाल में हत्या, दुष्कर्म, सांप्रदायिक पक्षधरता, पलायन के समाचार सुन-सुनकर बौखला रही है। वह केंद्र सरकार को इसके लिए कोस रही है कि वह कुछ नहीं कर रही है। चूंकि शांति-व्यवस्था राज्य का विषय है, इसलिए केंद्र के सम्मुख संवैधनिक प्रशासनिक मजबूरियां हैं। फिर भी राह तो निकालनी है। मौजूदा हालात में बंगाल को दो राज्यों और एक केंद्रशासित प्रदेश में विभक्त करना जरूरी लगता है। उत्तरी बंगाल के पांच जनपदों दाजिर्लिंग, कलिमपोंग, कूचबिहार, जलपाईगुड़ी और अलीपुरद्वार को अलग करते हुए नया राज्य बनाया जाए। इन जनपदों की कुल आबादी लगभग 1.5 करोड़ तक होगी। गोरखालैंड का आंदोलन भी इन्हीं क्षेत्रों में चलता रहा है। उससे प्रभावित हुए बिना राष्ट्रहित में इस संवेदनशील क्षेत्र की सुरक्षा के लिए निर्णय लेने का समय आ गया है। यह निर्णय बंगाल ही नहीं संपूर्ण पूवरेत्तर के लिए महत्वपूर्ण होगा। भाजपा के दो सांसदों ने भी इस आशय की मांग की है। इस पर गंभीरता से ध्यान दिया जाना चाहिए, क्योंकि सवाल बंगाल को बचाने का है। बंगाल के उत्तरी एवं दक्षिणी दिनाजपुर, मालदा, बीरभूम, मुर्शिदाबाद का जनसांख्यिकीय अनुपात एनआरसी के अभाव में वर्षो से लगातार बिगड़ता गया है। इन जिलों को मिलाकर केंद्रशासित प्रदेश बनाकर केंद्र के नियंत्रण में लिया जाना आवश्यक है। शेष मूलत: दक्षिणी बंगाल के 11 जनपद पूर्ववत बने रहें तो कोई समस्या नहीं है। यह परिवर्तन बांग्लादेशियों के अवैध प्रवेश से लगातार सांप्रदायिक होते जा रहे इस क्षेत्र के चरित्र को एक बड़ी सीमा तक नियंत्रण में ले आएगा। इसके साथ ही यदि एनआरसी-सीएए की भी युद्धस्तर पर अनुपालन घोषणा हो जाए तो शीघ्र ही अराजकता की स्थिति समाप्तप्राय होने लगेगी।

एक सुझाव और है। केंद्र सरकार को सीमावर्ती क्षेत्रों में केंद्रीय प्रशासन के लिए भारत की उस प्राचीन इंडियन फ्रंटियर एडमिनिस्ट्रेटिव सर्विस को पुनर्जीवित करने पर गंभीरता से विचार करना चाहिए। इसी सेवा के मेजर कीथिंग ने तवांग पर भारतीय प्रशासन कायम किया था। तब यह सेवा मात्र नेफा (अरुणाचल प्रदेश) और असम तक सीमित थी। अब इसका विस्तार समस्त सीमांत क्षेत्रों में किए जाने की आवश्यकता है। बंगाल, असम, पंजाब, जम्मू-कश्मीर, राजस्थान और गुजरात के सीमा क्षेत्रों का प्रशासन केंद्र के अधीन होने से सीमा से जुड़ी तमाम अव्यवस्थाएं, शस्त्र एवं ड्रग तस्करी, आतंकियों का प्रवेश, मानव तस्करी, पशु तस्करी, जनसांख्यिकी बदलने के प्रयास आदि बड़ी समस्याएं नियंत्रण में आनी प्रारंभ हो जाएगी। यह ध्यान रहे कि राज्यों की मशीनरी तो इस अवैध तंत्र और उसकी नियंत्रक राजनीति से भयभीत रहती है या फिर उसमें हिस्सेदार बन जाती है। इस प्रशासनिक परिवर्तन का बंगाल, असम और पंजाब जैसे राज्यों की बिगड़ रही आंतरिक शांति-व्यवस्था को सुधारने पर भी बहुत सकारात्मक प्रभाव पड़ेगा। इस प्रशासनिक परिवर्तन का राजनीतिक प्रभाव भी होगा। ममता बनर्जी इस परिवर्तन के विरुद्ध आंदोलनकारी रुख अख्तियार करेंगी ही। सांप्रदायिक तत्वों का खेल बिगड़ने से वे दंगे-फसाद का माहौल बनाएंगे, लेकिन राष्ट्रीय स्तर पर परिणाम सकारात्मक ही होगा। पूवरेत्तर और बंगाल को विवादरहित रखना एक राष्ट्रीय प्राथमिकता है। जवाहरलाल नेहरू ने इस देश को भीषण भूराजनीतिक मजबूरियों में फंसा दिया था। आज समय बदला है। असंभव से निर्णय लिए जा रहे हैं। अफसोस होगा यदि समय पर निर्णय नहीं लिया जा सके। देश निर्णय की प्रतीक्षा में है।

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