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स्थानांतरणों के ताप पर, हिमाचल की राजधानी में सरकार होने का अक्स किस तरह बैठता है
स्थानांतरणों के ताप पर, हिमाचल की राजधानी में सरकार होने का अक्स किस तरह बैठता है, यह एक लंबी बहस है, लेकिन सुशासन की आवश्यकता का नापतोल आखिर कब तक परिदृश्य ही बदलता रहेगा। एक साथ बीस आईएएस और आठ एचएएस अधिकारियों का इधर से उधर होना, छोटी सी घटना नहीं है क्योंकि कुछ वरिष्ठ अधिकारी भी बदले गए हैं। सरकार अपने सचिवालय की रौनक में कुछ तख्तियां बदल सकती है, मगर फाइलों की गतिशीलता के लिए स्थानांतरण कोई मुकाम नहीं। यह टिप्पणी नहीं की जा सकती कि किसकी तख्ती बदलने से आंतरिक माहौल बदल जाएगा या सत्ता की अंतिम पायदान को सफल बनाने के लिए कितने चेहरे बदल दिए जाएं। फिलहाल स्वास्थ्य विभाग देख रहे अमिताभ अवस्थी अब बागबानी और तकनीकी शिक्षा की नब्ज पकड़ेंगे।
डा. रजनीश तकनीकी शिक्षा से हटकर जंगलात महकमे में डट जाएंगे। भरत खेड़ा के पास विभागों का एक बड़ा डेरा लग रहा है। वह लोक निर्माण विभाग के अलावा गृह एवं विजिलेंस, जीएडी, एसएडी, सैनिक कल्याण एवं संसदीय मामले भी संभाल रहे हैं। वन विभाग को छोड़कर अब निशा सिंह की कमान में ग्रामीण विकास, पंचायती राज, प्रशासनिक सुधार विभाग भी रहेगा। बहरहाल एक लंबी फेहरिस्त में अधिकारियों के अधिकार इस सूची में इस हिसाब से सुनिश्चित हैं कि वे किस तरह आगे की कर्त्तव्यपरायणता में राज्य का दस्तूर बदलेंगे। जाहिर है चुनाव की दूरियों में अब केवल राजनीतिक नक्षत्र नहीं, बल्कि विभागीय चुस्ती भी दर्ज होगी। सरकार को सत्ता के अंतिम समय की परीक्षा में उतरना है, तो इससे पहले अपनी सजावट व बुनावट में आकर्षण भी पैदा करना है। सरकार के अधिकारी भरोसे के साथ-साथ यह पैगाम भी दे सकते हैं कि वर्तमान सत्ता ने क्या या कितना किया तथा आगे क्या करने का इरादा है। सरकार का रिपोर्ट कार्ड बनाने की घड़ी में प्रशासनिक स्थायित्व की दरकार रहेगी, लेकिन यहां नई फील्ड जमाने की एक अदद कोशिश यह बता रही है कि बेहतरी के लिए यह अंजाम अच्छा है। हिमाचल को प्रशासनिक दृष्टि से समझने के लिए क्या राजधानी ही बेताब है या राज्य स्तरीय उठापटक में कुछ और बदलेगा। जो भी हो, यह तो माना जाएगा कि ट्रांसफर करना आज भी बाएं हाथ का खेल है और सरकार शिद्दत से फर्ज निभा कर यह संदेश तो दे ही रही है कि कई घोंसले टूट सकते हैं। सरकार की कार्यशैली में हर विभाग एक घोंसला ही तो है, जहां पंछी रूपी अधिकारी आता तो इस नीयत से है कि इसे मजबूत किया जाए, लेकिन व्यवस्थागत चक्की में पिसाई के बीच कंकड़ छूट जाते हैं।
यही कंकड़ आंख की किरकिरी बनते हैं, तो परिदृश्य बदलने का सबब सामने आता है। स्थानांतरण की अपनी व्यवस्था और कारण हो सकते हैं, लेकिन हर स्थानांतरण न तो व्यवस्थित माना जा सकता है और न ही स्थानांतरण से व्यवस्थित होने की गारंटी मिलती है। आश्चर्य यह कि प्रशासनिक फेरबदल के बीच कुछ धूमकेतु, छोड़े जा रहे हैं और आरोपों के छींटों के बीच गुमनाम चिट्ठियों की गुंजाइश बढ़ रही है। क्या प्रशासनिक अदायरों के बीच कोई रगड़ है, जो ऐसी चिट्ठियां घूंघट उठाने लगी हैं या फाइलें ही गुत्थम-गुत्था हैं। जो भी हो, स्थानांतरण की हर खेप अब नायक के बजाय खलनायक न ढूंढने लगे, क्योंकि अधिकांश अधिकारी अपने प्रदर्शन के बदौलत ही सीढि़यां चढ़ते हुए निर्णायक मोड़ पर पहुंचे होते हैं। अगर प्रशासनिक मजबूती के लिए स्थानांतरण एक संदेश-एक आदेश की तरह है, तो इनका स्वागत भी होगा, लेकिन तहें अब इतनी मजबूत नहीं कि बार-बार हिलाई जाएं।
क्रेडिट बाय दिव्यहिमाचल

Rani Sahu
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