सम्पादकीय

बेमानी विवाद

Subhi
1 Nov 2022 6:25 AM GMT
बेमानी विवाद
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यह राजनीति का विकृत स्वरूप ही है कि जब कोई मजबूत आधार जनता के बीच टिकने का नहीं होता है, तब अक्सर राजनीतिक दल धर्म की शरण ले लेते हैं। गुजरात चुनावों के मद्देनजर केजरीवाल की रणनीति यही लगती है कि वे भाजपा से मुकाबले के लिए उसी का विकल्प सामने रखें, जिससे अधिकांश लोग सहमत हो।

Written by जनसत्ता: यह राजनीति का विकृत स्वरूप ही है कि जब कोई मजबूत आधार जनता के बीच टिकने का नहीं होता है, तब अक्सर राजनीतिक दल धर्म की शरण ले लेते हैं। गुजरात चुना,वों के मद्देनजर केजरीवाल की रणनीति यही लगती है कि वे भाजपा से मुकाबले के लिए उसी का विकल्प सामने रखें, जिससे अधिकांश लोग सहमत हो।

संकट के समय देवी-देवताओं की शरण एक राजनीतिक पैतरा बन चुका है। इंडोनेशियाई उदाहरण देकर केजरीवाल ने एक सकारात्मक मुद्दा भी उठाया है। लेकिन अगर यह महज धर्म की भावना का शोषण है और इसे हल्के तौर पर लिया जाता है तो देश की जनता के साथ खिलवाड़ होगा। जब देश में धर्म की लहर चल रही है तो इस पर भी विचार जरूरी है कि इंडोनेशिया में किस आबादी की प्रतिशत क्या है और वहां की सत्ता और जनता का व्यवहार अल्पसंख्यक समुदायों के प्रति कैसा है।

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अब तक भारत सरकार पचास से काफी अधिक देश विरोधी यूट्यूब चैनलों को ब्लाक कर चुकी है जो देश की शांति और सुरक्षा के खिलाफ कार्य कर रहे थे, लेकिन हर बार कुछ और नए चैनलों की हिम्मत बार-बार खुल जाती है और ये नए चैनल देश के धार्मिक समुदायों के बीच में घृणा फैलाने के इरादे से सामग्री में छेड़छाड़ करने एवं फर्जी खबरें चलाने लगते हैं।

ये चैनल कई बेहद संवेदनशील मुद्दों पर हमेशा गलत खबरें देश-विदेश में फैलाने लगते हैं, जिनके कारण भारत की एकता और अखंडता पर चोट पहुंचती रहती है। इसलिए एक बार फिर से केंद्र सरकार के सूचना प्रसारण मंत्रालय ने एक बार फिर दस यूट्यूब चैनलों को बंद करने की घोषणा की है। हम इसे सरकार का सही कदम मानते हैं।

आखिर देश की एकता अखंडता तथा सुरक्षा एवं शांति के साथ समझौते आखिर कैसे बर्दाश्त किए जा सकते हैं। आज किसी भी टीवी या यूट्यूब चैनल को यह अधिकार नहीं है कि वे देश और विदेश में भारत की छवि को गलत ढंग से पेश करें।

मनमोहन राजावत राज, शाजापुर, मप्र

युद्ध खत्म हो

रूस और यूक्रेन के बीच जारी युद्ध से दोनों देश जितने भयभीत नहीं हैं, उससे ज्यादा विश्व के अन्य देश भयभीत और चिंतित हैं। दरअसल, जिनके बीच युद्ध हो रहा है, वे तो अपने-अपने स्वार्थ और देश को बचाने के लिए युद्ध लड़ रहे हैं किंतु युद्ध के दुष्परिणाम को भुगतने वाले देशों की संख्या ज्यादा है। यह युद्ध अब किस दिशा में जाएगा, यह कहना मुश्किल है।


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