सम्पादकीय

सार्थक संवाद

Subhi
17 Sep 2022 4:49 AM GMT
सार्थक संवाद
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समरकंद में शंघाई सहयोग संगठन का इस बार का शिखर सम्मेलन कई दृष्टि से महत्त्वपूर्ण है। दो साल बाद आयोजित हो रहे इस सम्मेलन में तीन देशों- भारत, रूस और चीन के नेता ऐसे वक्त में मिल रहे हैं

Written by जनसत्ता: समरकंद में शंघाई सहयोग संगठन का इस बार का शिखर सम्मेलन कई दृष्टि से महत्त्वपूर्ण है। दो साल बाद आयोजित हो रहे इस सम्मेलन में तीन देशों- भारत, रूस और चीन के नेता ऐसे वक्त में मिल रहे हैं, जब वैश्विक स्थितियां विषम हो चली हैं। रूस और यूक्रेन के बीच छिड़े युद्ध ने पूरी दुनिया को चिंता में डाल दिया है। इधर भारत और चीन के बीच लंबे समय तक सीमा पर चला तनाव अभी-अभी कुछ दूर हुआ है। हालांकि यूक्रेन युद्ध को लेकर चीन ने कभी स्पष्ट रूप से कोई बयान नहीं दिया, पर भारत ने सदा से युद्ध के विरोध में अपनी राय प्रकट की है।

शंघाई सहयोग संगठन के मंच पर जब भारतीय प्रधानमंत्री और व्लादिमीर पुतिन मिले तो भारत ने एक बार फिर इस बात पर जोर दिया कि रूस को युद्ध बंद कर देना चाहिए, क्योंकि यह समय युद्ध का नहीं है। इस पर पुतिन ने सहमति जताई। उत्साहजनक बात यह भी रही कि पुतिन ने भारतीय अर्थव्यवस्था के साढ़े सात फीसद पर रहने की उम्मीद जताई और क्षेत्रीय पारगमन खोलने को लेकर सहयोग का भरोसा दिलाया। अगर रूस भारत की सलाह मान कर यूक्रेन के साथ युद्ध बंद कर देता है, तो यह पूरी दुनिया के लिए न सिर्फ राहत की बात होगी, बल्कि विश्व बिरादरी में भारत का दबदबा भी इससे बढ़ेगा।

हालांकि अभी चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग और भारतीय प्रधानमंत्री की परस्पर बातचीत नहीं हुई है, मगर जिस तरह चीन ने भारत के प्रति अपना गर्मजोशी भरा रुख दिखाया है, उससे स्पष्ट है कि वह भारत के साथ बेहतर रिश्तों के पक्ष में है। अगले साल शंघाई सहयोग संगठन का शिखर सम्मेलन दिल्ली में होना है। उसके लिए जिनपिंग ने भारत को शुभकामनाएं भेजी हैं। फिर यह भी कि इस शिखर सम्मेलन के कुछ दिनों पहले ही चीन और भारत ने नियंत्रण रेखा के विवादित गश्ती बिंदु पंद्रह से अपनी सेनाओं को वापस लौटाने और पूर्व स्थिति बहाल करने पर सहमति जताई। अब वहां शांति है।

जैसा कि हमारे प्रधानमंत्री ने रूस-यूक्रेन युद्ध के संबंध में कहा, चीन के लिए भी यह बात उचित है। हालांकि चीन अपनी विस्तारवादी नीतियों के चलते भारत पर टेढ़ी नजर रखता है, मगर वाणिज्य-व्यापार के मामले में वह भारत पर काफी हद तक निर्भर है। शंघाई सहयोग संगठन का मकसद भी व्यापारिक गतिविधियों को बढ़ावा देना और आतंकवाद आदि समस्याओं से मिल कर पार पाने का प्रयास करना है। चीन अपने व्यापारिक हितों की कीमत पर तनाव के पक्ष में नहीं रहना चाहेगा।

दरअसल, शंघाई सहयोग संगठन का गठन इस मकसद से हुआ था कि एशियाई देश आर्थिक मामलों में पश्चिमी देशों पर निर्भर न रहें। इसमें चीन, रूस और भारत की भूमिका महत्त्वपूर्ण है। इस बार के सम्मेलन में भारत की भूमिका महत्त्वपूर्ण रही। अच्छी बात है कि इसके बाद भारत एक साल तक इस संगठन का अध्यक्ष रहेगा और जैसा कि हमारे प्रधानमंत्री ने क्षेत्रीय सहयोग और व्यापारिक गतिविधियों को बढ़ावा देने पर जोर दिया, उस दिशा में वह आगे बढ़ सकेगा।

भारत दुनिया में तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था है और कारोबार की दृष्टि से यहां अनुकूल स्थितियां हैं। उसने विदेशी निवेश के लिए अपनी नीतियों को काफी लचीला बना दिया है। ऐसे में शंघाई सहयोग सम्मेलन में रूस, चीन और भारत के मधुर और प्रगाढ़ होते रिश्ते आने वाले समय में एक नई इबारत लिख सकते हैं। इसमें भारत की भूमिका महत्त्वपूर्ण होगी।


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