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सिर्फ एक जीत से इतिहास में कितना कुछ बदल सकता है? सिर्फ एक जीत के चलते किसी कप्तान की साधारण सी दिखने वाली विरासत कैसे स्वर्णिम होने लगती है
विमल कुमार। सिर्फ एक जीत से इतिहास में कितना कुछ बदल सकता है? सिर्फ एक जीत के चलते किसी कप्तान की साधारण सी दिखने वाली विरासत कैसे स्वर्णिम होने लगती है? सिर्फ एक जीत से पूरी दुनिया को कैसे एहसास हो सकता है कि वाकई में बीसीसीआई ना सिर्फ पैसों के मामले में सबसे अमीर बोर्ड है बल्कि भारत के क्रिकेट संसाधनों की नैसर्गिकता के मामले में भी उसका कोई जोड़ नहीं है।
सोमवार को ओवल टेस्ट में जिस तरह से विराट कोहली की टीम ने पलटवार करते हुए मेज़बान को एक बार फिर से भौचक्का कर दिया। वो दरअसल अब भारतीय टीम की सबसे बड़ी पहचान बन गई है। लेकिन, ओवल में जीत के साथ ही कोहली इंग्लैंड में एक टेस्ट सीरीज़ में दो मैच जीतने वाले कपिल देव के बाद दूसरे भारतीय कप्तान बन गए हैं। अब उनके पास मौका है कि वो मैचनेस्टर में आखिरी मैच जीतकर तीन मैच जीतने वाले पहले भारतीय कप्तान बन जाएं। अभी तक यह उपलब्धि सिर्फ वेस्ट-इंडीज़ और ऑस्ट्रेलिया के कप्तानों ने हासिल की है।
जून के महीने में न्यूज़ीलैंड के ख़िलाफ़ वर्ल्ड टेस्ट चैंपियनशिप के फाइनल में हार के बाद आलोचकों (जिसमें ये लेखक भी शामिल थे) ने कहना शुरु कर दिया कि भले ही कोहली भारत के लिए टेस्ट क्रिकेट में सबसे ज़्यादा मैच जीत चुके हों, लेकिन उनकी विरासत के नाम पर ऑस्ट्रेलिया में एक टेस्ट सीरीज़ के अलावा कुछ नहीं था।
अब अचानक ही कोहली ऑस्ट्रेलिया और इंग्लैंड में टेस्ट सीरीज़ जीतने का कमाल दिखाने वाले भारत ही नहीं एशिया के पहले कप्तान बनने वाले हैं। इतना ही नहीं इस साल के अंत में टीम इंडिया को साउथ अफ्रीका का दौरा करना है, जहां एक कमज़ोर से दिख रहे शेर को उसके मांद में मात देना अब असंभव नहीं दिखता है। अगर ये मुमकिन हो गया तो बस 2023 में न्यूज़ीलैंड में टेस्ट सीरीज़ जीतना ही कोहली के लिए फाइनल फ्रंटियर बन सकता है।
अगर पटकथा इसी अंदाज़ में चलती रही तो SENA (South Africa, England, New Zealand और Australia) मुल्कों में टेस्ट सीरीज़ जीतने वाले कोहली, एशिया के ही नहीं इतिहास के पहले कप्तान बन सकते हैं। वैसे भी कोहली के नाम सेना मुल्कों में सबसे ज़्यादा टेस्ट जीतने का रिकॉर्ड बन चुका है जो मौजूदा समय में एशियाई कप्तानों के लिए वर्ल्ड कप जीतने के बराबर माना जाता है। ऐसा तो क्लाइव लॉयड की अपराजेय टीम को भी करने का मौका नहीं मिला था। भला इससे बड़ी विरासत और क्या हो सकती है?
आज कोहली या उनके चाहने वाले ऐसा सोचते हैं तो ओवल टेस्ट की जीत उसकी वजह है। वरना यह टेस्ट हारते या ड्रॉ होता तो शायद इंग्लैंड में सीरीज जीतने का सपना पूरा नहीं होता औऱ बाकि के सपने तो आप देख भी नहीं सकते।
पिछले 42 सालों में टीम इंडिया ने विदेशी ज़मीं पर पहली पारी में इतने ज़्यादा रन (99) की बढ़त गंवाकर टेस्ट मैच जीता नहीं था। इससे पहले लॉर्ड्स में आखिरी सत्र में छह विकेट लेकर भारत ने जो मैच जीता उसकी भी मिसाल विदेशी ज़मीं पर टीम इंडिया ने कभी नहीं दिखाई थी।
ऑस्ट्रेलिया में एडिलेड में 36 रन पर ऑलआउट होने के बाद ये टीम ऐसा पलटवार करती है कि सीरीज़ जीतती है, इंग्लैंड में हैडिंग्ले में 78 रन पर ऑलआउट होने के बाद ये टीम ऐसा पलटवार करती है कि इसने क्रिकेट में संवेग के नियम को झूठा साबित कर दिया है जिसे अब तक पत्थर की लकीर के बराबर का दर्जा हासिल हुआ करता था।
चलते-चलते आखिरी बात-
अक्सर महान टीमों की महानता का आकलन इस बात से होता है कि उस टीम की सबसे कमज़ोर कड़ी क्या है। बल्लेबाज़ी में इस टीम की सबसे कमजोर कड़ी अंजिक्य रहाणे हैं, जिनके टेस्ट करियर को इतिहास कमज़ोर करके नहीं आंक सकता है। गेंदबाज़ी में इस टीम के लिए कमज़ोर कड़ी शार्दुल ठाकुर दिखते हैं जिन्होंने बेशकीमती विकेट लेकर मैच का पासा ही पलट डाला। स्पिन गेंदबाज़ी में रविंद्र जडेजा को 227 टेस्ट विकेट लेने के बावजूद एक ऑलराउंडर ही ज्यादा माना जाता है।
अब आप खुद सोचिए कि अगर कोहली इतने अहम टेस्ट से पहले ईशांत शर्मा, अश्विन और मोहम्मद शमी के बगैर मैदान में उतर सकते हैं तो टीम इंडिया के पास क्रिकेट संसाधनों की नैसर्गिकता के मामले में कोई जोड़ नहीं है।
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