सम्पादकीय

जीत के मायने

Subhi
22 July 2022 5:43 AM GMT
जीत के मायने
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देश के पंद्रहवें राष्ट्रपति के लिए हुए चुनाव में तस्वीर साफ हो चुकी है और अब द्रौपदी मुर्मू इस पद पर चुने जाने के साथ ही प्रथम नागरिक के तौर पर जानी जाएंगी। मतों की गिनती के बाद जैसा नतीजा सामने आया, उससे साफ है कि द्रौपदी मुर्मू का पक्ष हर स्तर पर भारी रहा।

Written by जनसत्ता: देश के पंद्रहवें राष्ट्रपति के लिए हुए चुनाव में तस्वीर साफ हो चुकी है और अब द्रौपदी मुर्मू इस पद पर चुने जाने के साथ ही प्रथम नागरिक के तौर पर जानी जाएंगी। मतों की गिनती के बाद जैसा नतीजा सामने आया, उससे साफ है कि द्रौपदी मुर्मू का पक्ष हर स्तर पर भारी रहा। हालांकि उनके प्रतिद्वंद्वी के रूप में यशवंत सिन्हा ने इस लड़ाई में टक्कर देने की कोशिश की और इसके लिए उन्होंने अपने स्तर पर अलग-अलग राज्यों और राजनीतिक दलों से संपर्क में कोई कमी नहीं छोड़ी। पहले ही द्रौपदी मुर्मू के पक्ष में एकतरफा रुख दिखने के बावजूद यशवंत सिन्हा ने 'अंतरात्मा की आवाज' का हवाला देकर वोट देने की अपील की थी।

इसके अलावा, उन्हें क्रास वोटिंग की भी उम्मीद थी। मगर आखिरकार उनके पक्ष में अपेक्षित मत नहीं आ सके। इसके समांतर, द्रौपदी मुर्मू ने भी अपने पक्ष में स्पष्ट समर्थन के बावजूद वोट के लिए व्यापक पैमाने पर राजनीतिक दलों और नेताओं से संपर्क किया। अब इस सबका असर उनकी जीत के रूप में सामने है। यों मतगणना के दूसरे चक्र के बाद ही यह स्पष्ट हो गया था कि नतीजा द्रौपदी मुर्मू के पक्ष में आने जा रहा है, मगर तीसरे चक्र की मतगणना में राष्ट्रपति बनने के लिए जरूरी पचास फीसद वोट हासिल कर लेने के बाद उनकी जीत की घोषणा हो गई।

द्रौपदी मुर्मू को भाजपा नीत राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन ने अपनी ओर से राष्ट्रपति पद के लिए उम्मीदवार बनाया था और उन्हें कुल सत्ताईस पार्टियों का समर्थन प्राप्त था। इस समर्थन के बूते उनके पास साढ़े छह लाख मूल्य से ज्यादा के वोट पहले ही हासिल थे, जो जीत के लिए जरूरी संख्या से ज्यादा थे। लेकिन चुनाव के बाद ऐसी खबरें भी सामने आर्इं कि उनके पक्ष में कई अन्य पार्टियों के प्रतिनिधियों ने भी क्रास वोटिंग की। यानी राजग उम्मीदवार के रूप में द्रौपदी मुर्मू ने अपने पक्ष में जरूरी वोट होने के अलावा एक तरह से अन्य दलों से जुड़े प्रतिनिधियों का भी समर्थन हासिल किया।

इसे एक अच्छा और सकारात्मक राजनीति का संकेत इसलिए भी कहा जा सकता है कि देश की प्रथम नागरिक के रूप में उन्हें व्यापक स्तर पर सभी वर्गों का समर्थन मिला। हालांकि यशवंत सिन्हा के रूप में उनके सामने विपक्ष की ओर से एक प्रतिद्वंदी का होना भी लोकतांत्रिक खूबसूरती का परिचायक रहा, जिन्होंने अपनी ओर से मैदान में अपनी उपस्थिति बनाए रखी।

अब नतीजों की घोषणा के बाद अगले कुछ दिनों में राष्ट्रपति पद पर द्रौपदी मुर्मू के शपथ ग्रहण के साथ ही यह प्रक्रिया पूरी हो जाएगी, लेकिन इस चुनाव की अहमियत विशेष रूप से दर्ज की जाएगी। दरअसल, इस चुनाव पर समूचे देश में नजर इसलिए भी थी कि क्या चुनाव के बाद देश में राष्ट्रपति पद पर पहली बार एक आदिवासी महिला का चुनाव हो सकेगा।

सांस्कृतिक-सामाजिक और धार्मिक विविधताओं से भरे देश में यह एक स्वाभाविक जिज्ञासा थी कि सर्वोच्च पद पर भी क्या हाशिये के तबकों और खासतौर पर आदिवासी समुदाय के बीच से किसी शख्सियत के दिखने की उम्मीद पूरी होगी। यह छिपा नहीं है कि आजादी के सात दशक बाद भी वंचित तबकों को प्रतिनिधित्व और भागीदारी हासिल करने के लिए कई स्तरों पर संघर्ष से गुजरना पड़ता है। अब द्रौपदी मुर्मू को राष्ट्रपति पद के लिए चुन लिए जाने के बाद यह कहा जा सकता है कि देश ने अपने लोकतांत्रिक स्वरूप को दिनोंदिन मजबूत किया है और इसमें सबकी सहभागिता सुनिश्चित करने की ओर ठोस कदम बढ़ाए हैं।


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