- Home
- /
- अन्य खबरें
- /
- सम्पादकीय
- /
- जोशीमठ की जल–प्रलय का...
जोशीमठ के ऊपर बर्फीले पहाड़ के गिर जाने से जून 2013 में केदारनाथ धाम के ऊपर बादलों के फट जाने से हुए भंयकर विनाश की याद ताजा हो गई है। प्रकृति की उस विनाशलीला का सीधा सम्बन्ध मनुष्य के भौतिक विकास की असीमित लालसा में अपने भोग-विलास की गतिविधियों के लिए प्राकृतिक शक्तियों को प्रत्यक्ष चुनौती देना था। उत्तराखंड की मनोरम शान्त घाटियों में भौतिक विकास के नाम पर जिस तरह प्राकृतिक स्रोतों के दोहन का दौर पिछले दो दशकों से चल रहा है उसे किसी भी स्तर पर पर्यावरण सन्तुलन के दायरे में नहीं रखा जा सकता है। जोशीमठ जन प्रलय के पीछे मुख्य कारण पहली नजर में यही दिखाई पड़ रहा है क्योंकि मशीनों की कर्कश आवाज के बीच प्रकृति की सुरीली ध्वनि को समाप्त करने का प्रयास मनुष्य ने ही अपने भौतिक सुख-साधन जुटाने के लिए किया है। इस भौतिक भागमभाग में जोशीमठ जल प्रलय में डेढ सौ से अधिक मनुष्यों की जान जाने की हकीकत यह बताती है कि विज्ञान को प्रकृति के समक्ष किसी विरोधी के रूप में रखा जा रहा है। जबकि विज्ञान व प्रकृति के बीच सामजस्य स्थापित करके ही हम सम्यक विकास कर सकते हैं।